डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"गदहों के पास भी स्वर होता है"


               (वीर छंद)


यह दुनिया कितना  स्वरदार,स्वर से भरा समूचा मण्डल.,
एक-एक सी है आवाज, सबकी अपनी बोली-भाषा.,
ऐसी कोई नहीं है वस्तु, जिसमें उसका छिपा न स्वर हो.,
सब आपस में करते बात, एक-एक सी बातें होतीं.,
सबमें आपस में है प्रीति, सब केन्द्रित हैं इक-दूजे पर.,
स्वर में सबके रहता प्राण, यही अस्मिता का लक्षण है.,
अस्तिमान सारा भूलोक, चाहे स्थावर या जंगम हो.,
चाहे भूचर नभचर होय, अथवा हो वह जलचर प्राणी.,
सब में रहता स्वर का वास, सब अपने स्वर के स्वामी हैं.,
अपने-अपने स्वर पर दंभ, करता सारा जीव जगत है.,
सब अपने स्वर के उस्ताद, कहते फिरते लोक धरा पर.,
कोई नहीं किसी से हीन, कभी समझता है अपने को.,
सब अपने स्वर का सम्मान, करते फिरते सतत थिरकते.,
सभी मनाते हैं स्वर-पर्व, सब मस्ताने सभी निराले.,
सब में छाया हुआ उमंग, मना रहे होली दीवाली.,
गाते सब फागुन के गीत, ढोल-मजीरा लिये हाथ में.,
सब अपने स्वर के सम्राट, चींटी चीलर चील्ह चिरैया.,
ज्ञानी हो अथवा मति मंद, सबके अपने-अपने स्वर हैं.,
स्वर का मत पूछो कुछ  हाल, गदहे को भी स्वर होता है।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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