डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

मेरी 5 कविताये


वर दे वर दे मातृ शारदे"
            (चौपाई)


कृपा करो हे मातृ शारदे।
वर दे हे ममता माँ वर दे।।


अभिनन्दन स्वीकार करो माँ।
वन्दनीय हे वन्दनीय माँ।।


सोच समझ हे माँ विकसित कर।
दया सिन्धु हे माँ करुणाकर।।


सबको सम्मति दे हे माता।
हे सुखदाता ज्ञान प्रदाता।।


वेद निपुण हम बनें जगत में।
रहें हम प्रसन्न नित्य स्वगत में।।


बैठी संग रंग भर उर में।
रहो अनवरत अन्तःपुर में।।


सेवा का अवसर दो माता।
सुन्दर सत्व भाव दे दाता।।


शंकाओं को दूर करो माँ।
विपदाएँ भरपूर हरो माँ।।


दल-बल लेकर घर में आओ।
अत्युत्तम रचना बन जाओ।।


वीणापाणी हंसवाहिनी।
संकटहरण शांतिदायिनी।।


हर विकृतियाँ प्रिया अमृता।
भक्तिदायिनी हे माँ ललिता।।


हम मानव को शुभ मधु वर दे।
सदा प्रणम्या  शक्ति शारदे।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


"कविता हथौड़ी चलाकर नहीं बनती है "


कविता पर हथौड़ी मत चलाओ,
यह लोहा नहीं है।


कविता निरन्तर प्रवाह है,
भावों का बहाव है।


कविता लिखी नहीं जाती,
यह स्वतः लिख उठती है,
अपने आप बह जाती है।


गंगा अपने आप बही हैं,
भगीरथ तो निमित्त थे।


भगीरथ भी चाहिये,
भागीरथी भी चाहिये,
एक साधन तो दूसरा साध्य है,
एक आराधक तो दूसरी आराध्य है।


कविता भी गंगा की तरह ध्येय है,
गेय और अगेय है,
अत्यंत पावनी है,
मधुर फलदायिनी है।


कविता निकलती है,
सुमुखी युवती  की तरह सजती है ,
दुल्हन की तरह खिलती है,
हमेशा निज रूप में चमकती चहकती है,
इत्र की तरह महकती है,
चंचल चितवन से चित -चोरी करती है।


कविता  मूलतः अदेह है,
अभिव्यक्ति में सदेह है।


यह देही है,
साक्षात वैदेही है,
कवि सुता है,
सदा पूजिता है।


इसे कुरेदना मत,
मात देना मत,
यह परम स्वतंत्र है,
आत्मा का कोमल तंत्र है,
स्वाधीन है,
दया और करुणा की सहज वीन है,
परम प्रवीण है,
जीवन का लोक मत है,
सर्व सम्मत है।


इसे वांधो मत,
रहो ध्यानरत,
कभी तो आएगी,
पूरे ब्रह्माण्ड में तहलका मचाएगी।


इसे पीटकर नहीं पाया जा सकता है,
मनो-आत्मिक सहजता से जाना जा सकता है।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


"आध्यात्मिक सन्देश:बुद्ध सन्दर्भ"


            (दोहा )


जन्म नाम सिद्धार्थ ही, कर्म नाम है बुद्ध।
आजीवन करते रहे, विकृतियों से युद्ध।।


मन को माने अति अहं, किये मन-मनन शुद्ध।
मन को जीते प्रेम से, किये वृत्ति अवरुद्ध।।


बुद्धिवाद का ध्वज लिये, फहराइये चहुँओर।
बुद्धि मान्य हर वस्तु का, बने प्रचारक घोर।।


सकल विश्व एकीकरण, में था अति विश्वास।
चाह रहे थे हो नहीं, कोई मनुज निराश।।


आशामयी हो जिन्दगी, आशा का संसार।
आशा की बुनियाद पर, टिके विश्व-परिवार।।


हो सबमें संवेदना, करुणा -सिन्धु प्रवाह।
प्रीति परस्पर की रहे, हर मानव में चाह।।


दया भाव सरिता बहे,हर मानव में नित्य।
सुख-दुःख में सम भाव ही, हो दुनिया में स्तुत्य।।


जैसा जो जिस रूप में, कर उसको स्वीकार।
बदलो खुद को बन सहज, तत प्रतिकूल नकार।।


जीना सबके लिये, है गौतम का धर्म।
इसी भावना में बसे, मानवता का मर्म।।


गौतम बुद्ध विशाल वट, सबके छायाकार।
सकल जगत को हैं दिये, इक छत का उपहार।।


काम क्रोध मद लोभ को, कर विनष्ट बन बुद्ध।
आत्म बोध के जागरण ,से कर जग को शुद्ध।।


सुन्दर संस्कृति सभ्यता, का बन रचनाकार।
जग को अपना प्रिय समझ, रहना नित्य उदार।। 


रहो समर्पित विश्व प्रति, रख सेवा का भाव।
जीना सीखो नित्य नव, हर दुखिया का घाव।


सत्य अहिंसा प्रेम ही, असली है उपचार।
गौतम के इस भाव का ,करते रहो प्रचार।।


गौतम हैं सामान्य नहिं, गौतम दिव्य विचार।
बुद्ध पूर्णिमा ही करे, धरती का उद्धार।।


बुद्ध बनो अति शुद्ध बन, पावनता स्वीकार।
शुचिता के संसार का, करो नित्य विस्तार।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


"जल्दी भागेगा कोरोना?? "


             (वीर छंद)


क्या लगता है यह आसार, जल्दी भागेगा कोरोना?
लगातार बढ़ रहा है सार, थम जाने का नाम न लेता.,
इसमें छिपी है कितनी शक्ति, दौड़ रहा यह चौतरफा है.,
बहुत घिनौना इसका भाव, छुआछूत का अतिशय प्रेमी.,
नहीं किसी से है परहेज, चाहे जो भी धर्म-जाति हो.,
सारे मानव एक समान, साम्यवादिनी नीति पापमय.,
सारा जग इससे बेहाल, माँ दुर्गा भी चुप बैठी हैं.,
कैसे कम हो इसका वेग, कैसे होगा नष्ट निशाचर.,
दवा कर रही नहीं है काम, खोज चल रही 'इंजेक्शन ' की.,
कब तक होगा अनुसंधान, राम भरोसे नैय्या सबकी.,
' सोशल डिस्टेंसिंग ' का हाल, मत पूछो तो सबसे अच्छा.,
कितना गजब है इसका हाल, मयखाने के देख सामने.,
कोरोना हो गया है फेल, दिखलाई देती शराब बस.,
इसका होगा क्या अंजाम, यह भविष्यकालीन प्रश्न है.,
इस मंजर को देख प्रसन्न, बहुत हो रहा कोरोना है.,
मय-क्रेताओं की इस भीड़,   से अति उत्साहित कोरोना.,
मन ही मन भरता मुसकान, कोरोना का भाग्य जगा है.,
'डिस्टेंसिंग' का खस्ताहाल,कोरोना का प्राणवायु है।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


"उत्तम सृजन "


(दोहावली)


उत्तम सृजन समझ उसे, जिसमें सुन्दर भाव।
बरगद बन देता सकल, जग को शीतल छाँव।।


करता उत्तम सृजन ही, निर्मलता से प्रीति।
सुन्दरता ही केंद्र अरु, मानववादी नीति।।


उत्तम सृजन सराहता, सुन्दरता की चाल।
मस्ताने अंदाज में, करता नृत्य कमाल।।


बोधगम्य रचना सुघर, स्वर्गिक शुभ संकेत।
कवि कबीर के शव्द हैं, तुलसी का है खेत।।


निज उर में पलता सतत, उत्तम सृजन महान।
आत्मबोध का जलद बन, सींचत सकल जहान।।


सुखमय रचना धर्म ही, उत्तम का सन्देश।
मातृ -भूमि से प्रेम का, देता शुभ सन्देश।।


उत्तम सृजन सराहिये, निर्विकार यह लोक।
इसमें शिव संवाद प्रिय, लिपि बद्धित शुभ श्लोक।।


नहीं देह इसको समझ,इसमें जनक विदेह।
वैदेही श्री जानकी, का यह रघुवर गेह।।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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