श्रृंगार रस पर मेरी
कविता- मुरली मनोहर
विधा- दुर्मिल सवैया छंद।
सिर मोर किरीट मनोहर सी, छवि साँवरिया अति शोभित है।
घन बीच जु दामिनि दंत छटा, मुख बिंब सुचंद्र सुशोभित है।
सिर बाल घटा मुख में बिखरे, शुभ कानन कुंडल शोभित है।
अधराधर बाँसुरी धारण ज्यों, मुख पुष्प अली मन मोदित है।।
कटिबंध मनोहर पैजनि पाद, निहार रहे पथ श्याम हरी।
छवि श्यामल मोहन मोहक सी, पटपीत धरे गलमाल धरी।
मधु सी मुसकान मनोहर है, हरि सुंदरता अति प्रेम भरी।
यमुना तट श्याम खड़े दरसे, मुरलीधर राधिक ध्यान धरी।।
डॉक्टर धारा बल्लभ पांडेय 'आलोक'
अल्मोड़ा, उत्तराखंड।
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