जयश्री श्रीवास्तव जया मोहन  प्रयागराज

मुट्ठी भर खुशी 
भोर की किरण फूट रही थी ।रघु चादर ताने सो रहा था।बुधिया ने गुहारा दिन चढ़ गाओ काम पे नई जाने का।ऊँ ऊँ ऊँ कर करवट बदल रघु सोता रहा ।उठो घाम होरहो है। अरी ते जाने आज से काम पे नई जाने काहे की सरकार ने पूरो शहर बन्द करा दाओ।काहे का  कहूँ दंगा हो गाओ।
नही एक कीड़ो बीमारी फैला रहो है कॅरोना जैऐसे लोक डाउन हो गाओ।कोनहुँ घर से बाहर जा पाहे।ओ मोरी भूमानी माई। जे तो आफत आ गई।जब काम न हूहे तो हम मजूर खाहे का। 
रघु दातुन कर आया बुधिया ने काली चाय बना दी बासी रोटी संग चाय पी रघु बोला सब बन्द हो गाओ।काहे के दिनन के लाने मैं का जानो।दो दिन कटे राशन खत्म ।सुना  बाहर गरीबो को राशन मिल रहा है जा बुढ़िया ले आए।अब रोज़ कोई न कोई संस्था भोजन राशन देती ।खाने का जुगाड़ हो जाता।रघु इन दिनों शराब नही पी रहा था।घर पर बुधिया से बतलाता इससे पहले ध्यान न देता रोज़ पैसे को लेकर शराब लिए मारपीट होती।बुधिया खुश थी जिस बेटे को कभी रघु ने नही खिलाया उसे प्यार करता। अरे बुधिया तै कैसी हो गई एकदम हाडिली अब आ मोखो देखबे की खबर आई। रघु रोज़ सपने बुनता अब मैं कबहु नशा न करिहो।दुइ पैसा बचाहो अपने मुन्ना के लाने।आँचल पसार बुधिया कहती भगवान भौत दिनन में जा खुशी दई।अब न छिनहो।जब से ब्याह कर आई रघु की नशे की लत के कारण सुख न पाई ।सास ससुर ने अलग कर दिया जो चांदी के गहने गुरिया थे बिक गए ।रघु अच्छा मिस्त्री था पर जो कमाता नशे में उड़ाता।
पैसे की कमी है पर प्यार से रह रहे है।
बुधिया बाहर निकली कूड़ा फेकने तो सुनी आज से सरकार ने शराब की दुकान खोल दी। हे प्रभु जो का करदो। रघु आया बर्तन उठा कर झोले में भरने लगा जे का कर रहे हो।बेचन जा रहा हूं ।काहे मोय नशा फाटो है
नही दोउ चार तो बासन है मैं न ले जान देहो।हट जा मोरे सामने से। झोला छीनने पर रघु ने धक्का दे दिया दीवार से बुधिया का सिर टकराया खून बह निकला रघु चला गया।खूब पीकर लडखडाते हुए आया।दूसरे दिन चावल बेच आया अब कुछ भी नही था खाने को मुन्ना रो रहा था।बुधिया ने सोचा क्या करूँ क्या नशे की दुकानें हमेशा को बंद नही हो सकती।
बच्चे का रोना सुन पड़ोस की बूढ़ी माई आई का बुधिया काय रो रहो मौडा।भूखों है।मैं सूखी रोटी व नमक ले आई। पानी मे भिगो कर मुन्ना को खिलाया।तै खाले नही माई भूख नही। माई चली गई।बुधिया ने एक कठोर निर्णय ले लिया भूख गरीबी से बचने के लिए
द्वार बंद कर बच्चे को पेट से बांध कर  आग लगा ली।पर  माई ने देखा गुहार लगाई सबने आग बुझाई।तुरत अस्प्ताल ले गए।एक लड़का भाग कर ठेके पर गया।रघु जल्दी चलो तोरी लुगाई ने मुन्ना संग आग लगा लई।का कहत हो रघु बदहवास भागा देखा पुलिस बुधिया से पूछताछ कर रही है क्यों लगाई आग पति के कारण ।कमज़ोर आवाज में बोली नही अपने आप लग गई ।कैसे चूल्हे से पर वो तो बुझा था।हाँ साहब पड़ोस से आग लाई हती जराबे के लाने ऊसे। 
पास पहुँच कर बुधिया का हाथ पकड़ रोने लगा मोरे कारण भयो सब।कसम खात हो कबहु न नशा करिहो बस तै अच्छी हो जा।रामधई सच्ची कह रहे। हौ हौ।
बुधिया तो बच गयी पर मुन्ना नही । रघु से लिपट कर वो रो रही थी ।देखो जो नशा कितनो बुरो है हमार गोद सुनी कर दई।
माई ने समझाया का करिहो अब धीरज धरो । बुधिया बोली प्रभु अब न छीनना दी हुई खुशी बेटे को खोकर मिली है
आज रघु के घर बेटी आयी है।रघु अब नशे से मुक्ति पा चुका है।सच ही किसी ने कहा है होश में आता है इंसा ठोकरे खाने के बाद।


स्वरचित
जयश्री श्रीवास्तव
जया मोहन 
प्रयागराज
08 ।05,2020


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