काव्य रँगोली आज के सम्मानीति सफल रचनाकार 2

रचना सक्सेना प्रयागराज


नाम --रचना सक्सेना
माता--स्व.सरोज सक्सेना
पिता--श्री सूरज प्रसाद   
         सक्सेना
पति--संजय सक्सेना
पता--101/174-A 
         Alopibagh
         Allahaba
         (U.P)Pincode-
          211006


2..जन्मतिथि--- 27/5/1969
3..शिक्षा-- एम.ए,बी.एड,संगीत प्रभाकर (सितार) 
4..कार्यक्षेत्र/व्यवसाय--- गृहणी
5..रुचि---सिलाई कढ़ाई, पेंटिंग, एवं गद्य पद्य लेखन
6..निवास स्थान---प्रयागराज, उ0प्र0
7..मोबाइल नं---7376290559 
8..ई-मेल---rachnasaxena13@gmail.com
9..ब्लॉग---जीवन एक पहेली
10..फ़ेसबुक पेज (फेसबुक पेज)कवि और कविता
https://www.facebook.com/rachnasanjaisaxena/
(फेसबुक पेज) कथा कहानी 
https://www.facebook.com/%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80-1198711686848686/
11..लेखन विधा---गद्य - लघुकथा और कहानी
पद्य - छंद मुक्त रचनाएं, गीत और गजल 
12..प्रकाशित कृतियाँ--- एकल और साझा 
एकल - सृजन समीक्षा, द्वंद, किसकी रचना
साझा संकलन- (पद्य) भारत के प्रतिभाशाली हिन्दी रचनाकार, 
भारत की प्रतिभाशाली हिन्दी कवयित्रियां, काव्य अमृत, 
(गद्य) नई सदी की लघुकथाएँ, मित्रता: एक सम्बल, घर को सजाती सवारती लघुकथाएँ
एवं अनेक पत्र पत्रिकाओं मे कविताओं एवं लघुकथाओं का प्रकाशन - रुपायन, काव्य रंगोली, प्रेरणा, अनन्तिम, प्रेरणा-अंशु, पंखुड़ी, हिन्दी सागर, गुफ्तगू, हिन्दोस्तान समाचारपत्र, रुहेलखण्ड प्रकाश हिन्दी साप्ताहिक, प्रतिक्षण टाइम्स बहराइच, कायस्थ रश्मि बरेली,लोकजंग समाचार पत्र ज्ञान सवेरा शाहजहांपुर का, और मेरठ का विजय टाईम्स दर्पण 


13..प्राप्त सम्मान--1- जे0एम0डी0 पब्लिकेशन्स द्वारा नारी गौरव सम्मान, प्रतिभाशाली रचनाकार सम्मान, और काव्य अमृत सम्मान 
2- काव्य रंगोली पत्रिका लखीमपुर द्वारा काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान 2017, साहित्य गौरव सम्मान 2018 एवं नारी रत्न सम्मान 
3- साहित्य एवं सांस्कृतिक मंच (हिन्दी साहित्य शोध अकादमी,राजस्थान) द्वारा फेसबुक साहित्य पहेली क्रमाँक
-अंतराशब्द शक्ति द्वारा women आवाज सम्मान 
काव्य मंजरी समूह द्वारा नारी भूषण सम्मान
4- गुफ्तगू साहित्यिक संस्था प्रयागराज द्वारा बेकल उत्साही सम्मान 2019 
5- राष्ट्रीय रामायण मेला प्रयाग द्वारा काव्य-प्रवीण सम्मान से सम्मानित 
-शहर समता मंच इलाहाबाद द्वारा शहर समता समाचार पत्र कें कवि और कविता विशेषांक रचना सक्सेना पर आधारित अंक का लोकार्पण
14- आकाशवाणी पर काव्यांजली के अन्तर्गत काव्यपाठ
15- शहर के अनेक साहित्यिक मंचों और संस्थाओं से संबद्ध
16-जिले स्तर पर अनेक कवि सम्मेलनों में सक्रीयता
17- महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई की अध्यक्ष एवं शहर समता विचार मंच की साहित्यिक संयोजक


प्रकाशित पुस्तकें


एकल पुस्तकें


1- किसकी रचना
(गुफ्तगू प्रकाशन)
2-द्वन्द
3- सृजन समीक्षा


साझा संकलन


1- भारत के प्रतिभाशाली हिन्दी रचनाकार, 
2-भारत की प्रतिभाशाली हिन्दी कवयित्रियां,
3- काव्य अमृत,
4- नई सदी की लघुकथाएँ, 
5- मित्रता: एक सम्बल, 
6- घर को सजाती सवारती लघुकथाएँ
7-बज्म-ए-हिन्द


मेरी 5 कविताये


*लो चल पड़ी कलम*


दर्द गहराया आँखों में-
लो चल पड़ी कलम।


कभी माँ कभी बेटी, 
कभी पत्नी कभी बहन, 
दिखी सिसकियाँ लेती - 
अंदर उठी दहन। 


लो चल पड़ी कलम।


कभी अपने कभी पराऐ, 
कभी रिश्ते कभी नाते, 
यादें हिचकियाँ लेती - 
ऐसी लगी लगन। 


लो चल पड़ी कलम।


कभी घर कभी बाहर, 
कभी गाँव कभी शहर, 
डगमगाती किश्तिया़ देखी - 
फिर से उठी अगन। 


लो चल पड़ी कलम।


कभी आँधी कभी तूफान, 
कभी सूखा कभी गीला, 
उजड़ी बस्तियाँ देखी - 
सह न सकी जलन


लो चल पड़ी कलम।


रचना सक्सेना 
प्रयागराज 



अखबार


तुम्हारे अस्तित्व के, 
झरोखों से-
झाकतीं हूई, 
हर सुबह, 
कल की सच्ची तस्वीर को-
आज भी ढ़ूढ़ती है, 
तुम्हारें हर पन्नों पर, 
लेकिन छोटे बड़े अक्षरों से-
सवरा तुम्हारा आईना, 
अब झूठ लगता है, 
क्योकि - 
ऐसा लगता है कि, 
अब तुम भी बदल गये हो - 
लग गया है एक मुखौटा-
जमाने की गर्म हवाओं का-
इसीलिये तुम हम हो गये, 
और हम तुम में बदल गये। 
पड़ोसी की छोटी सी खबर 
एक वाट्सऐप से एक मिनट में 
फैल जाती है सारे जमाने में - 
और तुम सच्ची खबरों पर भी, 
पर्दा डाल कर - 
महत्वपूर्ण बिम्बों कों, 
आम बना देते हो, 
शायद, 
बिक गये हो - 
और मैं आधुनिकता की दौड़ में - 
दौड़ती हुई, 
एक अखबार बन गयी। 


रचना सक्सेना 
मौलिक 
प्रयागराज



संवेदनाएँ मुहारे से-  बुहर-सी गयी हैं, 
एहसासों की अर्थी अब उठ चली है।
चिता जल रही है धुँआ उठ रहा है, 
पता नहीं काफिला किधर चल पड़ा है? 
मौन हैं हम- आँसू बहाते नहीं है, 
किसी घाव पर मल्हम लगाते नहीं है।
मतलब, बस अपने से- मतलब रखना, 
स्वार्थ को अपने ही आँचल में बंँधना।
इस आँचल में सारी खुशियाँ हमारी, 
छोड़ दी है, रीति- "वह सारी पुरानी।" 


-रचना सक्सेना
प्रयागराज 
मौलिक


सूरज बनना कठिन बहुत है


पहले आग मे जलना होगा
जल जलकर फिर तपना होगा
तपकर भी नही मरना होगा
जिंदा, जल कर रहना होगा


           सूरज बनना कठिन बहुत है


दिन भर सूरज घूम रहा है
जल जल खुद से जूझ रहा है
क्या उसको यह सूझ रहा है
गजब, पहेली बूझ रहा है


            सूरज बनना कठिन बहुत है    


लपटों मे लिपटा वह हरदम
जल जल ताप को सहता हरदम
निराजल उसका ब्रत हरदम
फिर भी, चुप रहता वह हरदम


          सूरज बनना कठिन बहुत है


मोह माया छोड़ी इस तन की
अहंकार भी छोड़ी मन की
चिंता सारे वायुमंडल की
कामना करता सबके मंगल की


           सूरज बनना कठिन बहुत है


रचना सक्सेना
प्रयागराज


मूल तत्व है गुरू


संपूर्ण ब्रमांड ,
स्वयं मे एक ज्ञान है।
और हम मात्र एक जीव नही-
इस ब्रमांड का ही एक अंग है ।
लेकिन हम नही खोजते ,
इसमे ...
क्या ,क्यो ,और कैसे ,
से उत्पन्न प्रश्नो को -
एक अविरल गति से ,
बहते चले जाते है।
पानी के बहाव की तरह,
और सागर तट पर पहुचते ही-
श्वांसो की डोर छोड़कर,
समर्पित कर देते है ।
बस यही तक ,
सीमित है हमारा जीवन।
हम जीव है ,
और चाहते भी है ,
ब्रमांड मे सम्माहित होना ।
मोक्ष को व्याकुल हैं आत्मा,
लेकिन जीवन की गति -
समेटे है खुद को ,
चाहते हो तो ढ़ूढ़ो -
अपने हर प्रश्न का जवाब,
इस हवा, पानी ,जमीन ,आसमान,
आँधी, तूफान, पर्वत ,नदी,
पेड़ ,फूल, फल ,काँटे,
जीव -जन्तु ,पशु -पक्षी
और इन सब ऋतुओ से ।
तुम्हारे हर प्रश्न का जवाब,
इसी मे निहित है।
मिल जाऐगा इनसे ही ,
अनंत ज्ञान और ज्ञान का सार,
जो तोड़ देगा -
तुम्हारे भीतर के संशय को,
तुम्हारी अज्ञानता की जंजीरो को।
और उस लक्ष्य व उदेश्य का-
स्पष्टीकरण करके ,
स्वयं ब्रह्म मे विलीन कर देगा ।
लेकिन इस प्रकाश का ,
मूल तत्व है गुरू -
बिना उसके प्रकृति का ,
हर तत्व एक चिंता है ,
चिंतन नही ।


रचना सक्सेना 
प्रयागराज


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...