काव्य रंगोली आज के सम्मानित सफल रचनाकार
अर्चना द्विवेदी अयोध्या उत्तर प्रदेश
पति :श्री कामेश्वर प्रसाद दूबे
मलिकपुर,पोस्ट डाभासेमर अयोध्या, उ0प्र 224133
मो नं .8004063262
- जन्म तिथि 19 जुलाई
- शिक्षा: परास्नातक (अंग्रेज़ी)
- व्यवसाय:अध्यापन
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एक बेटी का दर्द
1-हर रूठी नजरों का सामना,
मैं कैसे करूं?कुछ तो बोलो।
क्या बेटी होना है गुनाह??
विष बंध रूढ़ियों को खोलो।
महकी जब उपवन में तेरे,
खुशियाँ न मंगलगान कहीं
चेहरे पर खींची दुःख रेखा,
होठों पर थी मुस्कान नहीं।
मन निश्छल है, तन कोमल है,
मेरे हृदय संग तुम भी हो लो।
कुलदीप नहीं तेरे आँगन की,
यह बात अखरती है तुमको।
दो कुल में उजाला है मुझसे,
एहसास नहीं है क्या तुमको।
यह लिंगभेद की मलिन सोच
पावन गंगा में अब धोलो।
जब सूरज भेद नहीं करता,
अपनी किरणें फैलाने में।
ईश्वर दो सोच नहीं रखता ,
अपनी कृपा बरसाने में।
फ़िर मानव की औकात है क्या?
इस नियम पे कुछ खुद को तोलो।
(अर्चना द्विवेदी)
अयोध्या उत्तरप्रदेश
2
सच्चा सुख
सच्चे सुख की अनुभूति मिले
मेहनत की रोटी खाने में।
बहुमुल्य सा ये अपना जीवन
क्यों व्यर्थ करें अलसाने में।
प्यासे की प्यास बुझाने को,
कभी कूप नहीं चलकर आते।
एक बूँद का मूल्य समझ आता,
जब हम खुद ही चलकर जाते।।
होती है अति लघु काया पर,
चींटी मेहनत से न डरती ।
कब रोक सकी पथ बाधाएं,
संकल्प सदा दृढ़ ही रखती।।
न चमके क़िस्मत जादू से,
न होते करिश्में पल भर में ।
जिस उर में लौ हो मेहनत की,
वही जीवन में आगे बढ़ते ।।
जो वक़्त के सम्मुख झुक जाए,
मेहनत का फल कहाँ वो पाता।
न चख पाता मृदु स्वाद कभी,
जो अथक परिश्रम से आता।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
3-
प्रकृति का भेद
चाँद बिखेरे धवल चाँदनी
करने को श्रृंगार निशा का।
दिनकर चलता रहे अनवरत
करने को पहचान दिशा का।।
नदियाँ करती हैं ध्वनि कल कल
सागर बीच समा जाने को।
उपवन अलि की बाट जोहता
कोंपल नई खिला पाने को।।
पतझड़ स्वयं बियाबां होता
ऋतु मधुमास सुघर करने को।
मौत अनोखे रौब दिखाती
जीवन सत्य पे मर मिटने को।।
खो के अपना अस्तित्व गगन में
तारक हिय में खुशियाँ पाते।
टूट बिखरना हित औरों के
खुद ही मिटकर सदा सिखाते ।।
हृदय जीत लेती मृदु बोली
परम शत्रु बनते हितकारी।
प्रेम भाव हो मन से मन का
अवनी स्वर्ग सी हो सुखकारी।।
साँसों का संगीत मधुर सुन
चंचल काया यूँ लहराती ।
इक दूजे पर सब हैं आश्रित
प्रकृति हमें यह भेद बताती।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
4-
तुम पर गीत लिखूँ
सोचती हूँ आज तुम पर गीत मैं लिखूँ,
तुम हो हृदय के सच्चे मनमीत मैं लिखूँ।
रस छंद अलंकारों से श्रृंगार खूब करूँ ,
धुन नई नवल ताल सच्ची प्रीत मैं लिखूँ।।
चंदा सा शीतल तेरा व्यवहार मैं लिखूँ ,
सूरज सा प्रखर जिन्दगी का सार मैं लिखूँ।
पर्वत सा अटल धैर्य उर लहरों सी उमंगे ,
सारे उदधि से गहरा तेरा प्यार मैं लिखूँ।।
संजीवनी से दृग का प्रतिमान मैं लिखूँ,
दीपक की रोशनी सा तुम्हें जान मैं लिखूँ।
वाणी से बरसती हुई रसधार सुधा की ,
मरु की तपिश में बूँद का वरदान मैं लिखूँ।।
गर्मी की दुपहरी की सुखद छाँव मैं लिखूँ,
खुशियों में थिरकते हुए दो पाँव मैं लिखूँ।
तुम हो कदम्ब डार मैं लिपटी हुई लता ,
सब जीतकर भी हारने का दाँव मैं लिखूँ।।
तीरथ से पावन उर का उद्गार मैं लिखूँ ,
वृषभानु की लली का तुम्हें प्यार मैं लिखूँ ।
उपमान फीके पड़ गये पाऊँ नया कहाँ ,
जीवन के हो अनमोल से उपहार मैं लिखूँ।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
5
सच्ची सुंदरता
नहीं काम की वो सुंदरता
रंग लगा हो उथलेपन का ।
व्यर्थ है वो सारी आकुलता
जिसमें मर्म न अपनेपन का।
अर्थ न कोई प्रेम भाव का
कवच चढ़ी हो नफ़रत की।
नहीं मिलेगी उसको मंज़िल
चाह जिसे हो ग़फ़लत की।।
क्या करना इस सुंदर तन का
लुभा सके जो केवल ही तन।
मन से मन का तालमेल हो
तभी सफल होगा ये जीवन।।
कल न रहेगा तन ये सुंदर
पर सुंदर मन साथ रहेगा।
एकाकीपन का बन साथी
अंतिम क्षण तक साथ चलेगा।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
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