परिचय डॉ अर्चना प्रकाश का जन्म ग्राम परौरी जिला उन्नाव में हुआ।गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय से विद्यार्जन शुरू किया तो शिक्छा के उच्चस्तरो को प्राप्त करते हुए एम ए , बी एड , व एम डी एच् होम्यो की उपाधि प्राप्त की । ग्रहणी के दायित्वों के साथ कान्वेंट विद्यालयों में प्रधानाचार्या के पद को सुशोभित किया है । सार्थक लेखन सन 2000 से शुरू हुआ । पहली पुस्तक अर्चन करूँ तुम्हारा 2008 में प्रकाशित हुई ।अब तक आपकी कविता कहानी व भक्ति काव्य की सोलह किताबे प्रकाशित हो चुकी है।विभिन्न संस्थाओं से अब तक लगभग पैंतालीस पुरस्कार प्राप्त हो चुके है ।सन 2020 के चार पुरस्कार लॉक डाउन में रुके हुए है ।
कविताएँ -
1- लॉक डाउन -;
लॉक डाउन सुना रहा , मौन का सम्वाद हमें । सड़को पर बिखरे सन्नाटे ,
बाजार मॉल्स आहट को तरसे !
ऑफिस चौराहे सुनसान ,
हर तरफ पुलिस परेशान !
गोमती लेती उबासियां ,
नावों पतवारों का इंतजार !
पार्क स्टेडियम भी वीरान,
रेल पटरियां पूछे स्टेशन से ,
कब गूंजे गी रेल सीटियां ?
हो गा कब मुसाफिरों का आगाज ?
सुनहली सांझ में भी ,
प्रेमियों की जिंदादिली क्यू मौन ।
ये सब करते मुखर सम्वाद ,
सन्नाटे देते है नई उम्मीदें.
ये जगाते है नए विश्वास ,
दौड़ेगा फिर से ये देश ,
विजय की हो गी झंकार !
देश का हर कोना गुलशन हो गा ,
कोई न कहीं बंदिश हो गी !
गाँव शहर फिर दौड़ेगा ,
हर चेहरे पर खुशियां होंगी ।
अर्चना प्रकाश
कविता -2
सैन्य वेदना ;
तपती रेती सा मन ,
दहके अंगारो सा मन !
कब तक सहते रहेंगे ,
जेहादी के थप्पड़ !
सैनिक हम भारत माँ के ,
सत्ता ने दी है लाचारी !
हाथों में शस्त्र लिए , पत्थरबाजों से पिटते ।
दो कौड़ी के आतंकी ,
वर्दी अपमानित करते ।
अजब वेदना सेना की ,
मजबूरी मर मर जीने की ।वीर जवानों की निराशा ,
फूटेगी बन कर ज्वाला ।
जागेगा जब शूर वीर देश का ,
जेहादी बच न पाएंगे ।
सत्ता के भूखे जेहादी कश्मीर न तुम पाओगे ,
ये सैनिक है भारत माँ के ,
कश्मीर है इनकी आन!
कश्मीर है भारत की शान ।
अर्चना प्रकाश लखनऊ
कविता -3
युद्ध के अभियान में ;
नारियां अब चल पड़ी हैं यद्ध के अभियान में ।
हौसलों के तरकश धरे ,
रूढ़ियों पर सर सन्धान है बन्दिशों की ओढ़नी ले ,
सुलगते प्रश्न मन मे भरे ।।
बेड़ियों के जख्म है पाँव में ।
ठोकरों से हो निडर अब ,
बढ़ रहीं मान के संग्राम में !
नारियां अब चल पड़ी है , युद्ध के अभियान में ।।
अस्मिता के दंश गहरे ,
दर्द देते कुटिल चेहरे ।
जीवन के इस हिसाब में ,
बदले नियम गुणा भाग के,
रुके गा नहीं अब ये समर ,
सपनों की बुलन्द कमान में ।
नारियां अब चल पड़ी है ,
युद्ध के अभियान में ।
साथ कोई हो न हो ,
रिश्तों की सांकल न हो ।
छल छद्मद्वेष व्यूह तोड़े ,
राहें कठिन से मुँह न मोड़े,
त्योरियों पर सिंहनी की शान है ,
कोमल उमंगें ढली चट्टान में ।
नारियां अब चल पड़ी है ,
युद्ध के अभियान में !
डॉ. अर्चना प्रकाश
कविता - 4,
अभावों में ;
अभावों में भाव बहुत हैं , निर्धनता में आस बहुत है । निम्न मलिन बस्तियों में , स्वप्निल पंख उड़ान बहुत है। सोने चांदी के सिक्कों में , अपनेपन का राज़ बहुत है । फ़टे चीथड़ों में पलने वाले , इस युग में गोपाल बहुत है ।जर्जर वृद्ध अस्थियों में , अतीत का अभिमान बहुत है ।पीड़ाओं के सागर में , खुशियों की आस बहुत है । उजड़े वीरान खण्डहरों में , सुन लो तो चीत्कार बहुत है ।बच्चों की अटपट बोली में , सच्चे मन का प्यार बहुत है ।मैली अधनंगी नारी में , सुंदरता का सार बहुत है । अर्चना प्रकाश लखनऊ
कविता 5 -
दिल वालों की बस्ती में -; दिल वालो की बस्ती में ,
ऊँचे लोगों का काम नहीँ । सरस् विनोदी बतकही में , कसमें वादों का नाम नहीँ । सीधी सरल जिंदगी में , सोने चांदी का काम नहीँ । प्यार के हर पैमाने पर, ऊँची हस्ती नाकाम रही ।
टूटे सपनों की बस्ती में , उम्मीद की नन्हीं आस रही । कुछ बातें लोगों से आयीं , इन बातों के सिर पैर नहीँ । मुद्दतों में दिल मिलते है ,
ये मंजिल आसान नहीँ । जिस जग में रहते हम , छल प्रपंच बिन शाम नहीँ ।
अर्चना प्रकाश लखनऊ ,
मो 9450264638 ।
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