काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार 28 मई 2020

प्रदीप कुमार पाण्डेय


              (प्रदीप बहराइची)


▪पता - बड़कागाँव, पयागपुर 


 जन- बहराइच (उ. प्र.) 271871


▪शिक्षा- एम.ए., बी. एड्.


▪सम्प्रति- प्रा वि भूपगंज द्वितीय, वि.ख. पयागपुर,जनपद बहराइच में शिक्षक। 


▪लेखन विधा - गीत, कविता,दोहा मुक्तक व ग़ज़ल। 


▪प्रकाशित कृति - 'आ जाओ मधुमास में' (काव्य संग्रह)आकृति प्रकाशन, दिल्ली 


 ▪प्रकाशित साझा काव्य संग्रह- 'मेरी रचना', 'साहित्य संदल', 'नीलांबरा' व 'प्रांजल नवांकुर' प्रकाशित ।


▪रचना का प्रकाशन- 'पाखी', 'ककसाड़', 'कविकुंभ', 'हिचकी', 'स्रवंति', 'सरस्वती सुमन', 'गुफ्तगू', 'बाल प्रहरी', 'रूबरू', 'व्यंजना', 'काव्य रंगोली', 'डिप्रेस्ड एक्सप्रेस', 'हिमालिनी' (नेपाल देश) आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं ।


▪'अमर उजाला' व 'दैनिक राष्ट्र राज्य' (समाचार पत्र) में रचनाएँ प्रकाशित। 


 ▪'आकाशवाणी लखनऊ' व 'रेडियो रूबरू एफ एम' व 'रेडियो वागेश्वरी एफ एम' से रचनाओं का प्रसारण 


▪ दूरदर्शन लखनऊ पर प्रसारित कार्यक्रम 'साहित्य सरिता' व 'वन्स मोर' में काव्य पाठ। 


▪प्राप्त सम्मान---- 


 'सन्त शिरोमणी गोस्वामी तुलसीदास स्मृति सम्मान' अवधी सांस्कृतिक प्रतिष्ठान, नेपाल द्वारा 


'यू पी महोत्सव 2019' के सांस्कृतिक मंच से सम्मानित 


'अवध ज्योति रजत जयंती सम्मान' अवध भारती संस्थान द्वारा 


'साहित्य श्री सम्मान' अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान, हजारीबाग झारखण्ड द्वारा 


'गुरु गोविन्द सम्मान 2019' काव्य रंगोली साहित्यिक पत्रिका द्वारा 


'पं रविन्द्र नाथ मिश्र सम्मान' अखिल भारतीय साहित्य उत्थान परिषद द्वारा 


'नीलाम्बरा रचनाकार सम्मान' आगमन साहित्यिक संस्था द्वारा 


'दोहा दिवस सम्मान' गुफ्तगू पत्रिका, प्रयागराज द्वारा। 


'मातृत्व ममता सम्मान 2019' काव्य रंगोली साहित्यिक पत्रिका द्वारा 


'काव्योत्सव २०७६ सम्मान' काव्य रंगोली साहित्यिक पत्रिका द्वारा 


'सृजन श्री सम्मान' साहित्य परिषद रा न इं कालेज, बहराइच द्वारा 


'साहित्य भूषण सम्मान 2018' काव्य रंगोली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका द्वारा 


'साहित्य दीप प्रतिभा सम्मान' साहित्य दीप परिवार द्वारा 


'जनचेतना सम्मान' साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा 


सर्वश्रेष्ठ प्रतिक्रिया उपाधि गीतकार साहित्यिक मंच द्वारा 


▪संपर्क सूत्र- 8931015684,9792357494


▪Email- pradeeppandey.payagpur@gmail.com


 


  1- कविता "विवशता"


 


 


उसकी मौत आज भी ज़िंदा है


 


मेरे जेहन में। 


 


 


उखड़ती सांसों के दरम्यान 


 


उसका स्वप्न 


 


उसका लक्ष्य


 


उसका प्यार 


 


उसका परिवार 


 


उसकी जिम्मेदारियां 


 


सब कुछ तार-तार हो रहीं थीं।


 


बेबसी उसके चेहरे पर साफ थी..


 


क्या देख पाऊंगा उस सूरत को 


 


जो पत्नी के गर्भ में है? 


 


और फिर.........उसकी मौत, 


 


आज भी जिंदा है मेरे जेहन में। 


 


 


        2- कविता 'अंतर्द्वंद्व' 


 


सन्नाटे को चीरता रहा


 


अंतर्मन का निःशब्द चीत्कार। 


 


 


बिना किसी आहट के 


 


देती रही दस्तक 


 


मन की विरक्त तरंगें 


 


उस प्रयोजन के लिए 


 


जो मेरे लिए स्वप्न था। 


 


 


बार- बार 


 


मेरे वर्तमान से 


 


टकराने के बाद भी 


 


दब नहीं पा रही थी मुझसे 


 


 अस्तित्व की गठरी। 


 


 


 


     3- 'गीत'


 


सुख सब को नहीं नसीब है। 


यह भूख बहुत अजीब है।।


 


भूख पेट की बढ़ती जाए, 


लोगों से क्या क्या करवाए। 


संबंधों पर दांव लगे हैं,


पल में अपने हुए पराए। 


समझ से बाहर के दृश्य में,


दूर है कौन करीब है। 


यह भूख....................।।


 


भूख बढ़ी है घटी कमाई, 


इससे घर पर विपदा आई। 


दिन ब दिन इस भूख की खातिर,


देह का दुख न दिया दिखाई । 


आखिर में जीवन की घड़ियां, दिखी कि कितनी गरीब हैं ।


यह भूख.......................।।


 


 


 


          4- गीत 


               


 खून धुल गए बारिश में,छींटे अब भी बाकी हैं। 


आग चिता की राख हो गई, चीखें अब भी बाकी हैं।।


 


सपनों का मर जाना तय था, 


अपना हो बेगाना तय था। 


परत जमीं जो उम्मीदों की 


इस तरहा धुल जाना तय था। 


माना कि सब चले गए पर उनका आना बाकी है। 


 


गांवों के सूने हैं रस्ते, 


जीवन देखा इतने सस्ते। 


बच्चों की आंखें अब सूनी 


एक किनारे लग गए बस्ते।


खुशी भरे दिन बीत गये अब दुख के कटने बाकी हैं। 


 


साथ तुम्हारे रंग हुए गुम,


हर पल तन्हा हर पल गुमसुम।


साख़ों के पत्तों सी टूटी, 


हो गई अबला अब तेरे बिन। 


आंखों से है दूर दिख रहा पर धूमिल होना बाकी है। 


 


                 


     5- कविता "धुंधला अतीत"


 


वक्त कितनी जल्दी सफर कर रहा है 


बगैर पंख के ही। 


गुजर गई आधी सदी....


इतनी तेजी से कि 


न तो इसकी भनक ही लगी 


और न ही वक्त ने अपनी कोई निशानी ही छोड़ी। 


 मगर अब तो एक एक पल


सदियों से भी लम्बा लगता है,, 


खुशियों को टटोलना पड़ता है,, 


यादों की हरियाली सूख न जाए


इसलिए सींचना पड़ता है। 


 


एक टूटी- फूटी बैलगाड़ी की तरह 


जीवन की गाड़ी को ढकेल रहा हूं,,,, 


जर्जर हो चुके इसके पुर्जे


आखिर कब तक संभले रहेंगे। 


 


वक्त बहुत ही निकट है.....


जब थम जाएगा मेरा घिसटता कारवां


ढह जाएगी सारी इमारत 


मिट जाएगी सारी इबारत 


न हम रहेंगे न हमारी यादें 


और न ही कोई अमानत.....


फिर कौन जानेगा कि मैं भी था 


इस नश्वर संसार में.....


जो जीवन को क्षणिक जानते हुए भी 


प्यार कर बैठा जिंदगी से


और कायरों की तरह रोता रहा


जब बिदा हो रहा था दुनिया से। 


 


कितना बदनसीब निकला.....


न जिंदगी खुशगवार रही


न मौत ही शानदार रही


फिर भी उम्मीद जिंदा है 


शायद मौत के बाद सुकून मिल ही जाए। 


     


प्रदीप बहराइची 


 ग्रा. बड़कागांव, पयागपुर 


जन. बहराइच, उ. प्र.(271871)


संपर्क 8931015684


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