नाम जयश्री श्रीवास्तव
जया मोहन
पूर्व सहायक सचिव
माध्यमिक शिक्षा परिषद
क्षेत्रीय कार्यालय
प्रयागराज
बाल कहानी ,बाल कविता , कहानी संग्रह ,कविता संग्रह ,लघु कथा संग्रह की 26 किताबें प्रकाशित
विभिन संस्थाओं से सम्मानित
गगन स्वर साहित्यक संस्था गाज़ियाबाद द्वारा सरस्वती रत्न सम्मान,महादेवी रत्न सम्मान पद्मश्री गोपालदास नीरज जी द्वारा,मानव भूषण सम्मान माननीय कपिल सिब्बल जी द्वारा,गिरिराज सम्मान, गुगुनराम सामाजिक साहित्यिक संस्था द्वारा बाल गीत झुनझुना के लिए भिवानी हरियाणा में सम्मानित,अभिनव कला परिषद भोपाल द्वारा शब्द शिल्पी ,अग्निशिखा मंच से शब्द साधक,कलमपुत्र संस्था मानद उपाधि आध्यातिमक काव्य श्री ,आध्यात्मिक साहित्य शिरोमणि,अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी संस्थान की मानद उपाधि साहित्य श्री,साहित्य शिरोमणि,उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री द्वारा गंगा रत्न सम्मान आदि विभिन संस्थाओं से सम्माननित।बाल पत्रिका देवपुत्र वा किलकारी में बाल कहानियां प्रकाशित।विभिन्न पत्र पत्रिको में गीत कहानी लघु कथा प्रकाशित।आकाशवाणी प्रयागराज द्वारा कहानी गीत परिचर्चा बाल कहानियों का प्रसारण
1
हसरत
कानो में बज रही ढोलक
की थाप आ रही थी
शायद किसी घर मे
नवजात शिशु के आने पर
बधाई गाई जा रही थी
बस मन उड़ चला विचारो
के पंख लगा कर
कितना सुख होता है
किसी नन्हे के घर आने पर
परिवार के बढ़ जाने पर
बाबा दादी उमंगों के
झूले पर झूलेंगे
पापा मम्मी अपने नन्हे
को देख कर फूलेंगे
मन संतोष से भर उठेगा
जीवन मे बस सब कुछ
पा लिया
नन्हे के बढ़ने के साथ ही
मुसीबते भी बढ़ती जाएगी
पहले संस्कार फिर फीस की
मार कमर तोड़ती जाएगी
पढ़ाई के लिए बिक जाएगा घर
पर नन्हा बन जायेगा इंजीनियर
माँ बाप हो जायेगे बूढ़े
इस इंतज़ार में नन्हा कमा कर लाएगा
उन्हें फिर खुशियॉ के संसार मे
महाजन का कर्ज उतर जाएगा
अपना घर वापिस फिर आ
जाएगा
पर नन्हा तो नॉकरी पा के
चला गया विदेश
बूढ़े माँ बाप को खुशियॉ की जगह दे गया क्लेश
क्या ऐसी दिन के लिए उन्होंने गाई थी बधाई
की बिन मांगे भोग रहे तन्हाई।
जया मोहन
प्रयागराज
2।
विधा
उसने पूछा तुम किस विधा
में लिखती हो
मैंने कहा मैं तो मन के भावों को कलम से उकेरती हूं
न छंद न दोहा न चौपाई
बस लेखनी लिखती है
वही बात जो मेरे दिल मे आयी
कभी मन जो छोटी सी
बात पर खुश होता है
तो गीतों के बोलो को
शहद में डुबोता है
जब किसी को कष्ट में देख कर मन दुखी होता है
तो लिखा गया गीत स्वाद हीन, सारहीन गमो के रस
में भीगा हुआ होता है
वर्तमान परिस्थितियों में
मनोभावों को बांधना बेमानी है।
मेरे गीत ग़ज़ल लिखने की
यही विधा पुरानी है।
जया मोहन
प्रयागराज
3
चांदनी
चांदनी ही चांदनी
मधुर मस्त चांदनी
देख साज़ बज गए
तार तार हिल गए
एक ताल एक लय
एक ही सी रागिनी
चांदनी।।।।
अकेली थी जो चकोर
भीगी थी नैनो की कोर
आयी मिलन की रात तो
हुई है बड़भागिनी
चांदनी।।।।
चाहतो का उजला रूप
प्यार की हो निखरी धूप
कुवारी थी जो अब तलक
हुई है सुहागिनी
चांदनी।।।।
प्रिय का पाके साथ आज
छेड़ती है मिलन राग
प्रिय के साथ चल पड़ी
हो के अनुगामिनी
चांदनी ही चान्दनी
जया मोहन
4
जब जंगल मे
जब जंगल मे टेसू के अंगारे
उठे
बागों में कुहू कुहू कोयल कुहुक उठे
आमो के पेड़ों पर नई बौर छाई
समझ लो मीत मेरे
फागुन ऋतु आयी
होठ गुनगुनाने लगे
आँख अलसाने लगे
मस्ती सी छाने लगे
मीठे मीठे सपनो ने
ली अंगड़ाई
समझ लो।।।।
शन्नो को बुलाना है
बहू को भिजवाना है
गुझिया का खोवा
कल्लू से मंगवाना है।
सबको समझा रही
घूम घाम ताई
समझ।।।
हाथ पिचकारी ले के
रंग और गुलाल लेके
रंग दे सभी को
देवर ,ननद,हो चाहे भौजाई
समझ लो मीत मेरे
फागुन ऋतु आयी
जया मोहन
5।
गंगा किनारे
गंगा किनारे बसा है मेरा गांव
घनी घनी अमराई और पीपल की छांव
सूरज के उगते ही
जग जाता गांव
याद आ रहा है मुझे वो अपना गांव
चक्की की धुन के साथ
गीतों की लय थिरकती थी
सिर पर गागर लिए
गोरी निकलती थी
पानी भरने के साथ
चूड़ियाँ खनकती थी
चलते समय गोरिया की पायल भी बजती थी
बछिया के रंभाने से
मुनियॉ रानी जगती थी
कंधों पर हल लिए
किसानों की टोली निकलती थी
हाथों में खुरपी लिए रन्नो शीला चलती थी
काम के साथ साथ बतकही
होती थी
रात की चौपाल में ढोलक भी बजती थी
फागुन के आते ही
होली के गीतों से कानो में
मिसरी सी घुलती थी।
जया मोहन
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