नीरजा 'नीरू'
स्थान - लखनऊ
रुचि - कविता लेखन
शैक्षिक योग्यता- स्नातकोत्तर
व्यवसाय - अध्यापन ( प्रवक्ता )
साझा संकलन - भाव कलश, दस्तक ,नीलांबरा
सम्मान - उड़ान साहित्य रत्न सम्मान
विभिन्न काव्य मंच पर प्रतिभागिता
काव्य रंगोली सहित बहुत सी पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
द्वार पर तेरे खड़े हैं
~~~~~~~~~~
द्वार पर तेरे खड़े हैं ,माँगते वरदान हैं
दो हमें सद्मार्ग भगवन ,हम बड़े नादान हैं
बीच भव में ही फँसी है ,डगमगाती जिंदगी
अब उबारे तू हमें जो ,कर रहे हैं बंदगी
पाप में डूबे रहे हम ,पुण्य से अंजान हैं
दो हमें सद्मार्ग भगवन हम बड़े नादान हैं
बैर ईर्ष्या में रहीं रत, पीढ़ियाँ दर पीढ़ियाँ
प्रेम की भाषा न जानें ,बंद मन की खिड़कियाँ
एक दूजे को मिटातीं ,क्यूँ बनी हैवान हैं
दो हमें सद्मार्ग भगवन ,हम बड़े नादान हैं
द्रव्य के जालों में फँस कर ,हम सदा उलझे रहे
मोह माया में फँसे फिर ,अदबदा उलझे रहे
ढूँढते हम छद्म सुख को ,बन रहे शैतान हैं
दो हमें सद्मार्ग भगवन ,हम बड़े नादान हैं
छल कपट के द्वार को तज ,त्याग को हम जी सकें
धैर्य की प्रतिमूर्ति बनकर ,क्रोध को हम पी सकें
प्राण आएं काम जग के ,बस यही अरमान हैं
दो हमें सद्मार्ग भगवन ,हम बड़े नादान हैं
जग में फैली कालिमा को ,तेज से हम धो सकें
बीज सारे प्रेम के ही ,हम धरा में बो सकें
छोड़ सारे अवगुणों को , बन सकें इंसान हैं
दो हमें सद्मार्ग भगवन ,हम बड़े नादान हैं
_ नीरजा'नीरू'
" सहमे हैं आँखों में आँसू "
~~~~~~~~~~~~~~~
कागज कलम कहाँ से लाएँ
जब रोटी के ही लाले हैं
सहमे हैं आँखों में आँसू
अब देख पाँव के छाले हैं
मन्दिर मस्जिद सब ही छाना
पर दिखा नहीं भगवान वहाँ
गीता और कुरान बाँचता
पग पग पर ही हैवान वहाँ
सोने के हैं ढेर चिढ़ाते
बढ़ रुपयों के अंबारों को
दर नौनिहाल भूखे मरते
पर शर्म नहीं दरबारों को
सूखे सूखे खुद ही प्यासे
दिखते सब ही पौशाले हैं
सहमे हैं आँखो में आँसू
अब देख पाँव के छाले हैं
रक्षक ही भक्षक बन बैठा
फिर कैसे हो अब न्याय कहीं
न्यायालय के चक्कर काटे
पीड़ित ही तो हर बार यहीं
शेरों की खालें ओढ़ ओढ़
गीदड़ ये शान से घूम रहे
न्याय तंत्र की लचर व्यवस्था
की शह पाकर ही झूम रहे
विधि की देवी निकले कैसे
जब दरवाजे पर ताले है
सहमे हैं आँखों में आँसू
अब देख पाँव के छाले हैं
प्राणों की बाजी खेल रहे
वे प्राण हथेली पर धर कर
जनता को बैठे चूस रहे
ईमान जेब में ये भर कर
वादे ही वादे करते हैं
जब-जब चुनाव सर पड़ते हैं
बिन वादों के ही खेल जान
वो रिपु दर कीलें गड़ते हैं
सूखी रोटी पर हैं निर्भर
जो भारत के रखवाले है
सहमे हैं आँखों में आँसू
अब देख पाँव के छाले हैं
है कचरा किस्मत गर अपनी
तो किस्मत को ललकारेंगे
हों राहें दुर्गम ही कितनी
हर बाधा को पुचकारेंगे
लेकर हम कर्मों का थैला
अब राह नदी की मोड़ेंगे
यूँ किस्मत के हाथों में अब
और न किस्मत को छोड़ेंगे
गर हैं गरीब तो गम कैसा
हम नौनिहाल मतवाले है
सहमे हैं आँखों में आँसू
अब देख पाँव के छाले हैं
_नीरजा'नीरू'
विधाता छंद आधारित गीत :
~~~~~~~~~~~~~
जगत में लौट गर आऊँ ...
~~~~~~~~~~~~~
जगत में लौट गर आऊँ ,धरा फिर से यही पाऊँ
सुनहली धूप की किरणों ,सुनो ये बात बतलाऊँ
निलय मेरा ठिकाना है ,सुखद सी छाँव का हर दम
घनेरी प्रीत का सरगम ,गमों का है सदा मरहम
जरा आँचल तले वो ले ,जहाँ के गम भुला जाऊँ
सुनहली धूप की किरणों ,सुनो ये बात बतलाऊँ
नदी की करवटों में है ,रवानी जिंदगानी की
गगनचुम्बी नगों में है ,कहानी नौजवानी की
सदा बसता तुहिन में जो ,वही संगीत फिर गाऊँ
सुनहली धूप की किरणों ,सुनो ये बात बतलाऊँ
सिवइयाँ ईद गर देती ,दिवाली रोशनी बोती
खुशी के रंग में डूबी ,हुई होली सदा होती
यहाँ अरदास कर पावन ,दुखों का गढ़ सदा ढाऊँ
सुनहली धूप की किरणों ,सुनो ये बात बतलाऊँ
सुबह मंदिर बजे घंटी ,उषा सबको जगाती है
अजानो की धुनों से मिल ,नया सरगम सुनाती है
जहाँ बुद्धा दिखाते हैं ,वही फिर राह अपनाऊँ
सुनहली धूप की किरणों ,सुनो ये बात बतलाऊँ
यहीं मैं जन्म लूँ फिर से ,यही माटी बिछौना हो
असुर को ढेर कर पाए ,वही फिर से खिलौना हो
तिरंगे का सदा परचम ,गगन में दूर लहराऊँ
सुनहली धूप की किरणों ,सुनो ये बात बतलाऊँ
_नीरजा 'नीरू'
विष्णुपद छंद आधारित ...
~~~~~~~~~~~~~
तर्क लगाओ जो ...
~~~~~~~~~
सच का मुखड़ा जीते हरदम , देर भले ही हो
झूठा मुखड़ा हर पल नत हो ,न्याय कभी भी हो
इसी लोक में मिलता है फल ,मानव कर्मों का
दूजा कोई लोक कहीं है ,भ्रम है धर्मों का
अन्तर्मन से सोचें जो हम ,तर्क करें खुद से
मिल जाएंगे प्रश्नों के हल ,जो हैं अद्भुत से
कहाँ छिपा है ईश्वर मानव ,ढूँढ न पाया है
धर्मो के आडम्बर ने बढ़ ,जाल बिछाया है
मारें काटें पोथी पढ़ पढ़,नाम उसी का लें
समझें क्या वो मर्म धर्म का ,खुद को धोखा दें
ईश्वर क्या बहरा बन बैठा ,क्यूँ आवाजें दो
ईश्वर क्या अँधा बन बैठा ,खुद ही देख न लो
पत्थर पे रगड़ोगे माथा ,क्या देगा तुमको
चिल्लाओगे बार बार भी ,कहाँ सुनेगा वो
खोलो ज्ञान चक्षु तुम अपने ,तर्क लगाओ जो
पा जाओगे खुद में उसको ,सच अपनाओ तो
_नीरजा'नीरू'
चलो इंसान हो जाएँ
~~~~~~~~~~
धरा का थाम कर आँचल,गगन की शान हो जाएँ
न हिंदू हों न मुस्लिम हों ,चलो इंसान हो जाएँ
रहे तेरे न मंदिर में ,रहे मेरे न मस्जिद में
खुदा बसता दिलों में है,कभी समझे न हम जिद में
ज़रा सा झाँक लें भीतर, सही अनुमान हो जाएँ
न हिंदू हों न मुस्लिम हों ,चलो इंसान हो जाएँ
रगों में रक्त जो बहता ,दिखे वो एक जैसा है
कहीं काला न पीला है,लगे वो तप्त रवि सा है
इसे आधार मानें तो ,नई पहचान हो जाएँ
न हिंदू हों न मुस्लिम हों , चलो इंसान हो जाएँ
यहाँ का तू न मालिक है ,यहाँ का मैं न मालिक हूँ
बचा क्या शूरमा कोई ,यही सच सार्वकालिक है
करें हम कर्म सब पावन ,यही अरमान हो जाएँ
न हिंदू हों न मुस्लिम हों ,चलो इंसान हो जाएँ
सभी अवतार से बढ़कर ,मनुज का रूप है होता
इसी में देव है बसता ,यही है दैत्य को ढोता
बढ़ा कर दैत्य गुण को हम ,नहीं शैतान हो जाएँ
न हिंदू हों न मुस्लिम हों ,चलो इंसान हो जाएँ
_नीरजा'नीरू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें