दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश
शिक्षा -स्नातक, बीटीसी
व्यवसाय - अध्यापन
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1- मजदूरों की मजबूरी
मजदूरों की मजबूरी का खेल निराला है,
डट जाए कर्तव्य पथ पर सब कर जाता है।
प्रतिपल भीग पसीने से
कांटों में राह बनाता है
खेतों से खलिहानों तक
नई इबारत लिखता जाता है।
परिवारों के लालन - पालन में
गांवों से शहरों की बाट बनाता है
अपने शिल्पी खून पसीने से
मंजिल दर मंजिल बनाता है।
मजदूरों की मजबूरी का खेल निराला है,
डट जाए कर्तव्य पथ पर सब कर जाता है।
हांक हांक कर रिक्शा गाड़ी
पसीने से तर-बतर होता जाता है
पत्थर कोयला तोड़कर लाख बना
भठ्ठों पर पसीने से ईंट पकाता है।
कहाँ देखकर जीवन संघर्षों की मेहनत कश
सूरज अपनी तपिश से ठंडी बयार चलाता है
मजदूरों के नितनव शिल्पों के बदले
कौन पुरस्कृत कर उत्साह बढ़ाता है
पत्थर बनकर दु:ख दर्द झेलता
व्याकुल हो तिरस्कारों में मन बहलाता है।
ऊंचे रख सदा इरादे साहस कभी न खोता है
गिरकर उटता उठकर चलता सांसों से प्यास बुझाता है।
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश ।
2 - तुझको नमन हे ! पृथ्वी माता।।
तेरे सुमन से जग विख्याता
तुझको नमन हे ! पृथ्वी माता।।
स्वच्छ सांची से तन-मन को,
पुलकित करने वाली है
तेरी ममता की छावों में
हरे भरे वृक्षों कि
शोभा बड़ी निराली है
जल जीवन तेरा सबको भाता
तुझको नमन हे ! पृथ्वी माता।।
शस्य श्यामला धरा कहीं पर
कहीं पर्वत और पठार है
तेरी गोदी में श्रीराम का तीरथ
तूँ सबसे बड़ी ममता सी कीरत
तेरे दिये समीर से सब जन
जग में जीवन की प्यास बुझाता
तुझको नमन हे ! पृथ्वी माता।।
भले आसमाँ अनेक रंग धरे
तुझको ही सब सुहाता है
कौन सा जीव किस तरह बने
तूँ जननी बन जन्माती है
"व्याकुल" विनय करता है
करें न हम तुझको खंडित
यह स्वच्छ भाव मन में आता
तुझको नमन हे ! पृथ्वी माता।।
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
3- पुस्तक को भूलना नहीं।।
भूलो सभी को मगर
पुस्तक को भूलना नहीं।।
भूलो सभी को मगर
पुस्तक को भूलना नहीं।
परोपकार अगणित हैं इसके
इस ज्ञान को भूलना नहीं
अमिय पिलाती है हमें
जग में कालकूट घोलना नहीं
पुस्तक को भूलना नहीं ।।
श्री कृष्ण ने गीता दिया
दिगदिगांत के लिए किया नहीं
परिवर्तनों की प्रविधियाँ हो रही
संदेह की गुंजाइश दिया नहीं
विद्वता की राह को प्रशस्त कर
आत्मज्ञान को भूलना नहीं
पुस्तक को भूलना नहीं ।।
पूरे करो अरमान अपने
क्षितिज सा दान भूलना नहीं
लाखों कमाते हो भले
अभिज्ञान को भूलना नहीं
ज्ञान बिन सब राख है
इस मद में फूलना नहीं
पुस्तक को भूलना नहीं।।
जैसी करनी वैसी भरनी
इसके न्याय को भूलना नहीं
संस्कृति का आध्यात्म है
इसे कभी छोड़ना नहीं
कलम का सिपाही बनाती
इसके मान को भूलना नहीं
पुस्तक को भूलना नहीं।।
सरस्वती का चिरकाल तक वास इसमें
"व्याकुल" ज्ञान - वन्दना भूलना नहीं
भूलो सभी को मगर
पुस्तक को भूलना नहीं ।।
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश
4- मैं स्वयं से संवाद करता हूँ..
मैं,
स्वयं से संवाद करता हूँ
कभी - कभी किसी
विशेष मुद्दे पर
गम्भीर वाद - विवाद करता हूँ
हो गयी जो गलतियां अतीत में
उनका पश्चाताप करता हूँ
मैं,
स्वयं से संवाद करता हूँ ।
मेरा साथी अपना
बातें मैं
इससे दिनरात करता हूँ
अपनी आत्मा का बनूँ दर्पण मैं
पारदर्शी हो मेरा अस्तित्व
ऐसा अडिग प्रयास करता हूँ
मैं,
स्वयं से संवाद करता हूँ ।
कदाचित विचलित होऊँ
समय के विलोम प्रभाव से
इस हेतु बनाने को सम्बल
अपने पौरूष का
स्वयं से वादाकार करता हूँ
मैं,
स्वयं से संवाद करता हूँ ।
जीवन, के ख़ौफ़ ने सड़कों को
वीरान कर दिया
समय चक्र ने ज़िंदगी को
हैरान कर दिया
सामाजिक विसंगतियों के
आतंक से "व्याकुल"
स्वयं को दो-चार करता हूँ
मैं,
स्वयं से संवाद करता हूँ।
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
लक्ष्मीपुर - महराजगंज, उत्तर प्रदेश
5-एक सच्चा कवि हूँ....
एक सच्चा कवि हूँ
खुशबू को छोड़ सभी हूँ
गोबर जैसा पोताड़ा हूँ
जंधिये का नाड़ा हूँ
कविता का बिगाड़ा हूँ
रवि की पकड़ से दूर का सभी हूँ
एक सच्चा कवि हूँ।।
झूठ बोलता नहीं
सच्चाई मेरा रास्ता नहीं
साहित्य से कोई वास्ता नहीं
उट - पटांग कविताओं का जन्मदाता हूँ
प्रतिभा का समेशन कर बना कवि हूँ
बाथरूम से निकला अभी हूँ
एक सच्चा कवि हूँ ।।
बे पेदीं का लोटा हूँ
टूटे हुए सोल का फटा हुआ जूता हूँ
प्रत्येक कविता का सर्जरी कर
मार्ग से भटका देता हूँ
कविता - लिख सुनाने का चेष्टा करता हूँ
साहित्य का सफोकेटा हूँ - 2
ये मेरी पुरानी बिमारी है
मैं डाक्टरों के लिए परेशानी हूँ
इस देश में पागल खाने हैं कम
पागल हैं ज्यादा
इसीलिए कविता करने पर हूँ आमादा
काव्य - दंगल का कभी
न दूर होने वाला डिफेक्ट हूँ
आधुनिक कवि के
चरित्र में हमेशा परफेक्ट हूँ
इस कारण
माइन्ड का दिल से कनेक्श नहीं
प्रेम-पूजा, साहित्य सेवा
भक्ति - साधना से दूर टेन्शन हूँ
साहित्यिक समाज को
चालने वाला दिमक भी हूँ
एक सच्चा कवि हूँ।।
प्रत्येक मजबूत दिवार का कमजोर बेस हूँ
न साहित्य जानता हूँ
न साहित्यितक कवि हूँ
बचा हुआ शेष हूँ
और प्राचीन साहित्यिक असभ्य
कवियों का अवशेष हूँ
देखो अगर ध्यान से
मैं साहित्यिक सफोकेशन हूँ
कविता का हेजीटेशन हूँ
कवि - मंच पर रहता परमानेन्ट हूँ
श्रोताओं के लिए एक्सीडेन्ट हूँ
बिलीव मी
मैं साहित्यिक डिफाल्टरों के लिए
सफाईस एनारकी हूँ
एक सच्चा कवि हूँ।।
मुझसे मिलना है या मेरा पता चाहिए
तो जिला है पातालपुर
जहर डाकखाना
डाकखाने से सीधा आगे आइये
आके खाइये और चाय की तरह पी जाइये
कविता रूपी जहर डाकखाना
सीधा - सीधा कवि हूँ
या भईया हूँ पागल लोक का
कहते हैं मेरा नाम है कवि व्याकुल
निवासी हूँ कविरूपी यमलोक का।
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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