डॉ सरोज गुप्ता
अध्यक्ष हिन्दी विभाग,
पं दीनदयाल उपाध्याय,शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय
सागर म प्र
पिनकोड -- 470001
कविताये
1--जन्मदात्री मां
डॉ सरोज गुप्ता, सागर म प्र
जन्मदात्री माँ !एक विश्वास है श्रद्धा है भक्ति है ।
जन्मदात्री माँ !सारा जहां है एक सम्पूर्ण सृष्टि है।
जन्मदात्री माँ !स्नेहरुपा है, वाग्मी,लक्ष्मी, अन्नपूर्णा है।
जन्मदात्री माँ! त्रिपुरमालिनी है, कल्पवृक्ष, कामधेनु है।
जन्मदात्री मां ! के बिना सारा संसार, आधा है अधूरा है।
जन्मदात्री माँ !के आँचल में बस प्यार ही प्यार समाया है ।
इस प्यार को माँ जब-जब जितना जितना लुटाती है ।
मां का प्यार हजारों-हजार गुना बढता ही जाता है ।
जन्मदात्री माँ ! हर बच्चे की किस्मत है, जिंदगानी है।
जन्मदात्री माँ!से सारा जहाँ जगमग है, खुशहाली है।
माँ के रहते घर की सारी अलायें बलायें हट जाती हैं।
जन्मदात्री माँ ! की यादों से पुस्तकें भी कम पड़ जाती।
जन्मदात्री माँ है तो हम हैं, माँ के बिना ये दुनिया कम है ।
जन्मदात्री माँ ! है खुशियों का पिटारा, जीवन में न गम हैं।
दोनों माँएं (सास माँ-जन्मदात्री माँ)रहें स्वस्थ व प्रसन्न ।
उनकी सेवा करते बीते, जीवन में न हो कभी खिन्न मन।
2--आज हुए असहाय हाय हम!!
डॉ सरोज गुप्ता सागर म प्र
आज हुए असहाय हाय हम!!
जबतक मां का हाथ था सिर पर ,तब तक वेपरवाह रहे हम,
अब इस संघर्षी जीवन के ,एक नये अध्याय बने हम,
आज हुए असहाय हाय हम!!
कितना प्यार दुलार दिया मां!संस्कारों का संसार दिया मां।
आफत, मुश्किल दूर हटाती,हंसते, जीते मिसाल बने हम।
आज हुए असहाय हाय हम!!
जन्म दिया मां तूने हमको,पाला-पोसा बढ़ा किया मां।
वात्सल्य उड़ेला,ममत्वसहेजा,एकझलक मोहताज हुए हम।
आज हुएअसहाय हाय हम!!
पिताजी सदा व्यस्त रहते थे,सपने कुछ बुनते रहते थे,
घर में आए कोई मुसीबत, मां के रहते छोटे सदा रहे हम।
आज हुएअसहाय हाय हम!!
छोटा घर, छोटा-सा आंगन,सारा घर तुलसी का उपवन,
दुनिया का सब पाठ पढ़ाया, श्रेष्ठ काव्य के ग्रंथ बने हम।
आज हुए असहाय हाय हम!!
3--मां के बिन
डॉ सरोज गुप्ता सागर म प्र
मां के बिन घर की देहरी छूटी ,बचपन छूटा ,
छूटा सखियों के साथ के सुनहरा सफर।
भाई बहिन का झगड़ा छूटा,
छूटाअतीत की यादों का सफर ।
पूरी दुनिया है साथ ,पर नहीं है मां के आशीष का आंचल।
मां के साथ बिताए उन पलों के छूटने की पीड़ा को कैसे करें वयां।
मां के बिना अधूरी धरती ,अधूराआकाशऔर सारा जहां ।
पूरी दुनिया है साथ ,पर नहीं है मां के आशीष का आंचल।
मां के साथ बिताए उन पलों के छूटने की पीड़ा को कैसे करें वयां।
मां के बिना अधूरी धरती ,अधूराआकाशऔर सारा जहां
4--- मां का महाप्रयाण
डॉ सरोज गुप्ता सागर म प्र
दिव्य ,भव्य शाश्वत आत्मा ने ,स्वर्गलोक महाप्रयाण किया।
अपनों से मिलने वह आयी,सबको स्मृति में झकझोर दिया।
हम जारहे हैं,कहकर,वात्सल्यमयी थपकी दे मोह छोड़ा।
आहट,घबराहट से भरकर,आत्मशक्ति ने सबसे मुंह मोड़ा।
उससमय लगा ये आत्मिकसुख,उसे आज़भी हम हैं संजोए।
क्या था, कैसा था ये, अतृप्त मिलन ,हाय! बाद में पछताये।
घबराहट का कारण, रहस्य, काश! उससमय समझ पाती।
इत्मिनान से बोलती,कुछ कहती ,कुछ सुनकर उन्हें भेजती।
ब्रम्हवादिनियों की तरह यमराज,गणों के पीछे पीछे जाती।
जीवन और जगत के बन्धन से मुक्त होने का उपाय पूछती
आत्मशक्ति बलिष्ठ थी,श्रेष्ठशाश्वत,परमशान्ति में मगन थी ।
आत्मशक्ति अनन्त ब्रह्माण्ड में,सुखमय विलीन हो गयी थी।
यम गण सुंदर,सौम्य ,सुसज्जित स्वर्गिक,रथ लिए खड़े थे।
आत्मशक्ति को यमगणों ने वैतरणी के दिव्य दर्शन कराये।
मलयसमीर हिमगिरि की परिक्रमा करा,भव्यलोक दिखाया। परमेश्वर में आत्मा को विलीन कर, परमानंद प्राप्त कराया।
जग नश्वरता का रहस्य बताने, बारहवीं तक भव में छोड़ा।
पंचतत्व की नश्वर काया को,अंतिम क्रिया दर्शन करवाया।
ममता का सागर,अमृत की गागर, मां करुणा का अवतार।
मां जीवन है, संजीवन है ,मां की महिमा अपार।
मां चंदन है,जगवंदन है, मां से ही सारा संसार।
पुत्र-पौत्र, बन्धु-वान्धवों की ममता मिले अपरम्पार ।
नदी की धारा मिली सागर में, सतत् प्रवहमान होने।
मिलन के मेघ मंडराये ,स्वयं ही सिन्धु में मिलने।
हृदय की रिक्तता, भव्यता ,उमड़े शतशत सजल जलधर ।
मन नमन,प्रणम्य प्राण ,नयन भर अम्बर उपलब्ध हुआ।
वेदना मन की ,व्यथा तन की ,पुण्य प्रबल भाग्य खुला
डॉ सरोज गुप्ता
अध्यक्ष हिन्दी विभाग
पं दीनदयाल उपाध्याय, शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय सागर म प्र
पिनकोड-470001
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