*गुरु चरणों की कृपा*
******************
मन से गुरू की पूजा करो,
हो जाओगे भव सागर पार,
श्रद्धा भक्ति रखो भावना,
हो जायेगा कल्याण।
गुरु ज्ञान से कर रहे,
हम सब का कल्याण,
मन में निर्मलता रखो,
हो गुरु कृपा से कल्याण।
गुरु है गंगा ज्ञान की,
सुख देते है भरपूर,
जितना गहरे जा सको,
उतने हो मशहूर।
गुरु शरण में ही मिलता है,
शिष्य को सद् ज्ञान,
प्रेम होय गुरु शिष्य में,
जैसे दीपक में तेल।
आखर रचती है लेखनी,
शब्द रहे मन आय,
गुरु कृपा जिसको मिली,
वह शिष्य शब्द दरशाय।
मीठी वाणी बोलिए,
हो जग में गुणगान,
गुरु चरणों में सौंप दो,
यह जीवन की डोर।
गुरु की महिमा क्या बताऊं,
गुरु बिन जीवन सूना है,
गुरु चरणों में यदि प्रेम न हो,
तो मानव जन्म है शून्य।।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
भिलाई दुर्ग छग
🥀छ.ग. दोहा🥀
फदके जेकर तरपवाँ,चिखला हाबय पोठ।
धोलव पहली गोड़ यश,हेरव मन के खोठ।।
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
भिलाई दुर्ग छग
विधा-ताॅंका
विषय-घर
5+7+5+7+7=31
सुरक्षा तुम,
अपनापन प्रेम,
सुखद छाया,
वटवृक्ष सा पूर्ण ,
एहसास हो तुम।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जाने कितने,
सुख दुख के पल,
परिवार के,
साथ मे मिलकर,
आशीष बना साया।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
तुम साथी हो,
हमराज हो मेरे,
अकेलेपन,
उदासी में दुआ हो,
मेरा संसार *घर*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*घर* आंगन,
तुम ही हो स्पंदन,
किलकारीयां,
ममत्व, आशीर्वाद,
के साक्षी बने तुम।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
द्वार तोरण,
शुभोत्सव के साथी,
हर आहट,,
तुमसे टकराती,
हमे छू भी ना पाती।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
परिवार से,
मकान बने *घर*
शुभकामना,
से फलता है *घर*
प्यार में पले *घर* ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
ममता कानुनगो इंदौर
पुत्र धर्म निभाये*
विधा : गीत
(तर्ज: क्या मिलिये ऐसे लोगो से....)
कितनो के पुत्र आजकल,
करते मां बाप की सेवा।
सब कुछ उन पर लूटकर,
खुद बन जाते है भिक्षुक।।
और पुत्र इन सब का,
कैसे अदा करते है कर्ज।
भेज उन्हें बृद्धाश्रम में,
फिर भी कहलाते पुत्र।।
कलयुग की महिमा तो देखो,
बिना फर्ज भी पुत्र बने रहते।
क्या ऐसे पुत्रो को भी,
पुत्रो की श्रेणी में हम रखे।
पुत्र मोह को त्याग करके,
अपने आप में जीना सीखो।
तभी स्वाभिमान से हम,
जिंदगी को जी पायेंगे।।
कितनो के पुत्र आजकल,
करते मां बाप की सेवा।
सब कुछ उन पर लूटकर,
खुद बन जाते है भिक्षुक।।
पुत्र यदि तुम सही में हो तो,
पुत्र धर्म तुम निभाओ।
बनकर श्रवणकुमार जैसे तुम,
माता पिता की सेवा करो।
तभी तुम कलयुग में भी,
सतयुग जैसे पुत्र कहलाओगे।
सेवा भक्ति उनकी करके,
उनके पुत्र बन पाओगे।।
कितनो के पुत्र आजकल,
करते मां बाप की सेवा।
सब कुछ उन पर लूटकर,
खुद बन जाते है भिक्षुक।।
पुत्रवधु को भी कर्तव्य,
पुत्र निभाने नहीं देते।
झूठी शान की खातिर,
रिश्तों से दूर कर देते ।
ऐसे पुत्र और पुत्रवधु को,
उनके बंधन से मुक्त करो।
छीन के उनके हक को,
उन्हें पद से मुक्त करो।।
कितनो के पुत्र आजकल,
करते मां बाप की सेवा।
सब कुछ उन पर लूटकर,
खुद बन जाते है भिक्षुक।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
तुमको जिन्दा....
फिर शूल घौपा माँ की छाती में
पांच पुत्रों का दिया बलिदान
कब तक खूनी खेल खेलेगा तू
कब बाज आयेगा सुअर शैतान
खुद के राष्ट्र की परवाह नहीं है
तू सह रहा है भुखमरी की मार
नहीं है कुत्ते जैसी औकात तेरी
सिंहनी जायों से करता टकरार
बहुत झेल लिए आतंकी हमले
लहूलुहान हुई माता की छाती
हमारे धैर्य की नहीं लो परीक्षा
बदतमीजी अब और न भाती
वसुधैव कुटुम्बकम भाव लिए
हमने तो दुश्मन भी अपने माने
भारत माँ की आड़ में पलकर
तू रहता है कायर सीना ताने
भारत माँ का पावन आंगन
अब हम रक्त बहाने नहीं देंगे
क्षमा भाव न कमजोरी समझो
तेरे दांत विषैले तोड़ हम देंगे
राष्ट्र भक्त हम सिंहनी के जाये
न अपमान सहन कर पायेंगे
अब माँ के दामन में छींट पड़ी
तो तुम्हें जिंदा ही दफ़नायेंगे।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
जय माँ शारदे
पंचचामर छंद
पराग की सुगन्ध ये बिखेरती हवा चली ,
समीर की सुनी पुकार झूमने लगी कली।
अनंग ने किया कमाल पुष्प नाचने लगे ,
हुआ प्रकाश देख के मृणाल पंक में जगे।
संदीप कुमार बिश्नोई " रुद्र "
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
छद्म युद्ध अब बन्द करो,
कायर पाकिस्तानी गद्दारो।।
भारत माँ के वीर सिपाही,
घर मे घुस-घुसकर मारो।।
बहुत हो चुका धैर्य,धर्म अब,
अग्नि बाण का करो प्रहार।
नष्ट करो इसका समूल अब,
प्रचण्ड काल बन करो संहार।।
भ्राति-भाव,बंधुत्व भाव का,
अब अपना रुख बदलो।
जो दंश दे रहे रोज देश को,
उन सर्पो का फन कुचलों।।
फहराओ अब ध्वजा पताका,
पाकिस्तानी धरती पर।
दफना दो कायरो को अब,
उनकी शैतानी धरती पर।।
पाँच वीर शहीद हो गये,
हिन्द देश पर कर सब अर्पण।
आशुतोष,राजेश,अनुज ने।
यज्ञ वेदी मे सर्वस्व समर्पण।।
श्वेत कपोत नही भेजो अब,
ये कायर अत्याचारी है।।
पीछे से आघात कर रहे,
भेड़िये ये व्यभिचारी है।
व्यर्थ नही होगा बलिदान,
गौरव करता देश महान।
हंदवाड़ा की अमर शहादत,
याद करेगा हिन्दुस्तान।।
यही निवेदन देश कर रहा
पाक को अब ना माफ करो।
गर्जन करते टूट पड़ो समर मे,
आतंकियों को साफ करो।।
✍आशा त्रिपाठी
शोर करने से जो तन्हाई चली जाती है।
खूब पढ़ने से भी बीनाई चली जाती है।
***
बात मतलब की करे सिर्फ सभी से कोई।
ज्ञान से उसकी शनासाई चली जाती है।
***
बोलकर झूठ मुहब्बत तो नहीं है होती।
इस तरह इश्क की सच्चाई चली जाती है।
***
बेचकर गहने पुराने भी नहीं कुछ मिलता।
लाभ से ज्यादा तो तुड़वाई चली जाती है।
***
जब गवाहों ने कभी लांघी समय की सीमा।
फिर अदालत की भी सुनवाई चली जाती है।
***
सुनीता असीम
५/५/२०२०
प्रेम में पागल ये आदमी क्यो़ है ,
प्रेम के बस में भगवान क्यों है ,
खाये थे कभी सबरी के बेर ,
राम ने भोगा बनवास क्यों है ,
सब कुछ प्रेम से ही पा लिया है ,
हे प्रभु फिर भक्त आपका भी
आज इतना परेशान कर्मों है ,
कैलाश , दुबे ,
सिसक रहे हम छुप छुपकर
सिसक रहे हम छुप छुपकर,
अब हाथ जले तो क्या रोना।
वह सूरज है रौशन करता,
इस जग का सब कोना कोना।
हम मानव इस देव भूमि को,
तपोभूमि न कर पाऐ।
लेकिन हरियाली धरती की,
बर्बाद सदा करते आऐ।
शुरु हुआ विनाश मनुज का,
सिसक रहे हम छुप छुपकर।
यह सूरज चाँद सितारे सब,
उसकी धुरी पर घूम रहे।
एक सर्वमान शक्ति उसकी,
उसके कदमों को चूम रहे।
घायल हुआ गर्व मनुज का,
सिसक रहे हम छुप छुपकर।
उपलब्धि चाँद पर पहुचे हम,
अस्तित्व उसी का भूल गये।
विज्ञान की सीढ़ी पर चढ़कर,
अपनी शक्ति पर फूल गये।
पथ अवरुद्ध हुआ मनुज का,
सिसक रहे हम छुप छुपकर।
रचना सक्सेना
प्रयागराज
5/5/2020
मौलिक
*मुक्तक*
सोचना है देश का अब किस तरह कल्याण हो,
फूल से सरशब्ज़ सुरभित किस तरह उद्यान हो,
द्वैष,घृणा, वासना,वायरस में कैद है यह जिन्दगी,
किस तरह इन बन्धनों से मुक्त अब इंसान हो।
*कुमकुम "पंकज"*
जनपद गोण्डा।
हमारी विरासत:लाल क़िला
लाल किले की प्राचीरों मैं
छिपे हैं आज कई इतिहास
विरासत की ये सुंदर यादें
स्थापत्य कला का सुनहरा आकाश
मुगल काल से आज़ादी तक
सीना ताने अटल खड़ा
शासन चाहे किसका भी हो
लाल किले का मान बढ़ा
आज़ादी की इसके दर पर
लिखी नई कहानी है
स्वतन्त्रता संग्राम की कहता
सबसे बात पुरानी है
ख्याति इसकी विश्व पटल पर
विश्व धरोहर माना इस पर
सरकारी निगरानी है
थाती है ये हिंदुस्तान की
दिल्ली की शान पुरानी है
बाग-बगीचे और हरियाली
अष्टभुजी वास्तु है निराली
यमुना की छाया मैं देखो
इसकी छवि निराली है
लाल किले ने हर शय लिखी
अनुपम बड़ी कहानी है।
डॉ. निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
[5/6, 6:54 AM] कवि सुनील कुमार गुप्ता: कविता:-
*"संवाद"*
" संवादहीनता से ही साथी,
बढ़ती है-
घुटन जीवन में।
बना रहे संवाद आपस में साथी,
होती नहीं समस्या -
इस जीवन में।
सार्थक संवाद से ही साथी,
मिटते सभी विवाद -
इस जीवन से।
संवाद से मौन रहना बेहतर साथी,
यदि बढ़े विवाद-
इस जीवन में।
संवाद हो गरिमा पूर्ण साथी,
मधुर होते संबंध-
मिलती सफलता जीवन में।
प्रभू कृपा हो संग में साथी,
संवाद-संवाद रहे-
बने न विवाद जीवन में।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःः
06-05-2020
[5/6, 6:54 AM] कवि राजेन्द्र रायपुरी: 😊😊 यही हक़ीक़त 😊😊
दुख के दिन काटे नहीं कटते,
सुख के हवा-हवाई।
स्वाद कसैला घंटों रहता,
पल भर रहे मिठाई।
रात सुहानी पिया साथ जो,
विरह लगे दुखदाई।
लगें पहाड़ बिरह की रातें,
राई सम सुखदाई।
दोस्त बनाते वर्षों लगते,
दुश्मन पल में भाई।
सहज सरल मिल जाए सरिता,
गंगा तो कठिनाई।
झूठ कहे पतियाॅ॑य बिना हिच,
साॅ॑च बहुत कठिनाई।
जाॅ॑चें - परखें, खूब दूध को,
मय को कबहुॅ॑ न भाई।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
[5/6, 7:32 AM] कवियत्री डॉ0 निर्मला दौसा राज: "शराब और शराबी"
वैज्ञानिक युग की ये
तकनीक से भरी दुनिया है
नापा मानव ने पृथ्वी को
छोड़ी न अंतरिक्ष तक कहीं दूरियाँ हैं
फिर भी देखो आम आदमी
उसके पेट की सलवटों मै
अब भी भोजन न मिल पाने की
अथक मजबूरियाँ हैं
आज विज्ञान और धर्म दोनों हारे हैं
लोग अब भी अपनी
परेशानियों के मारे हैं
धर्म, अध्यात्म भी तो
समाज का अटूट हिस्सा है
आज देखिये तो दिखाई देता
सर्वत्र इनका नया किस्सा है
बन्द हैं ईश उपासना स्थल
खुल गए हैं शराब-ए-खाना हैं
चरणामृत अब नहीं कोई लेता
बन्द मन्दिर के हैं कपाट
नहीं कोई खोलता
अब तो मयखानों की दुनिया
आबाद हुई जाती है
अब सरे आम वो
सड़कों पे छलकाई जाती है
कोई देखे समाज का ये
कैसा भयानक मंज़र है
न कोई रोक-टोक
न ही किसी का डर है
अब खुले आम
शराबी शराब पीता है
घर मै बच्चे हैं भूखे
कनस्तर भी अब तो रीता है
पर न दो रोटी का ही
जुगाड़ कहीं मिलता है
मिल ही जाती है आसानी से
शराब वो ही पीता है
उसको अब फिक्र नहीं है
अपने परिवार की अब
अब वह तो अपने प्याले में
दुनिया बसा के बैठा है
छलकी जाती है अब शराब
ये कैसा विप्लव है
अब शराबी हुआ आबाद
समाज बेढ़ब है
डॉ. निर्मला शर्मा
दौसा, राजस्थान
[5/6, 7:40 AM] कवि सत्य प्रकाश पाण्डेय: संकटों में गर्व से मुस्कुराना सीख लें
परमब्रह्म के जीवन से जीना सीख लें
कारागार में जन्म बंधन मुक्त हो गये
नवजात शिशु से पूतना प्राण सो गये
धेनु रक्षक बन करके गोपाल कहलाये
भक्तों की पुकार सुन दौड़े दौड़े आये
डटकर किया मुकाबला मुसीबतों का
शिकन नहीं चेहरे पर सहचर भक्तों का
गोविन्द से कष्टों को हराना सीख लें
संकटों में गर्व से मुस्कुराना सीख लें।
गोविन्दाय नमो नमः👏👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹🌹
सत्यप्रकाश पाण्डेय
[5/6, 7:51 AM] एस के कपूर
बरेली
डायरेक्टर महिंद्रा कोचिंग: *कॅरोना।।पल भर में चालीस दिन की*
*तपस्या खराब मत कर देना।*
गहरा संकट देश पर कॅरोना
ने पैर पसारा है।
महामारी से निपटने को बस
लॉकडाउन सहारा है।।
अनुशासन अनुपालना दूरी
सामाजिक मंत्रआज के।
उसकी खैर नहीं समझो जिसे
कॅरोना ने निहारा है।।
आज कॅरोना के साथ ही जीने
का ढंग बन गया है।
ये विनाशकारी कॅरोना सम्पूर्ण
विश्व का अंग बन गया है।।
मास्क लगाकर धो धो कर हाथ
पीछे पड़ना है कॅरोना के।
विकास करना हरा कर कॅरोना
को अब जंग बन गया है।।
कोविड वायरस ने बड़ी विकट
दुविधा रचाई है।
कोई प्रलय जैसी समस्या पूरी
दुनिया में छाई है।।
एक भूलऔर लापरवाही पड़ेगी
मंहगी बहुत ही।
ये विपदा पूरी दुनिया को एक
साथ ले आई है।।
चालीस दिन की तपस्या यूँ ही
खराब मत कर देना।
नशे नशे मेंअपनी इस जिंदगी को
शराब मत कर देना।।
बहकते हुऐ तेरे कदम कहीं फंस
ना जायें कॅरोना के जाल में।
पल भर में ही चल रही जिन्दगी को
यूँ ही निराश मत कर देना।।
*रचयिता। । एस के कपूर "श्री हंस"*,
*बरेली।*
मो। 9897071046
8218685464
[5/6, 8:03 AM] भरत लाल नायक: *"रहो तजकर दानवता"*
(कुण्डलिया छंद)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
¶मानवता के भान से, होता मानव-बोध।
लक्षित होती दनुजता, करता है जब क्रोध।।
करता है जब क्रोध, दर्प का थामे दामन।
विकसे अधम-अधर्म, धर्म का जलता कानन।।
कह नायक करजोरि, रहो तजकर दानवता।
छोटी सी ही बात, नष्ट करती मानवता।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
*"सोचकर बोली बोलो"*
(कुण्डलिया छंद)
****************************
■दहलाता दिल को कभी, छोटा कड़वा बोल।
कारण बनता बैर का, देता है विष घोल।।
देता है विष घोल, सोचकर बोली बोलो।
बोली बने न बाण, शहद वाणी में घोलो।।
कह नायक करजोरि, स्नेह मन को सहलाता।
करो न वह परिहास, हृदय को जो दहलाता।।
***************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************
[5/6, 8:32 AM] कवि देवानन्द साहा कोलकत्ता: 👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍
सुप्रभात:-
मन चंचल रहता है,दिल प्रायःस्थिर रहता है।
अतःदिल का फैसला प्रायः गम्भीर रहता है।
-------देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
[5/6, 8:37 AM] निशा अतुल्य गुप्ता देहरादून: चलते चलते
6.5.2020
चलते चलते जीवन का
विराम गति को दे जाना
जीवन की अंतिम सीढ़ी है
जीवन की गति चलते जाना।
फूलों का खिलना उपवन में
खिल कर फिर मुरझा जाना
नही रुकता जीवन पौधों का
जीवन है बस चलते जाना।
चिड़ियों की चूंचूं सुनकर
जीवन को गति मिल जाती है
सूरज का रोज निकलना भी
जीवन की रीत सिखाती है ।
चलते रहना अविराम यहाँ
नए आयाम बनाती है
रुक जाना यूँ ही जीवन का
अंतिम पहर कहलाती है ।
चलते चलते मंजिल मिलती
जीवन को सफल बनाती है
रुक जाना किसी भी जीवन का
बस अंतिम पहर कहलाती है ।
बस अंतिम पहर कहलाती है ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
[5/6, 9:12 AM] कालिका प्रसाद सेमवाल: *🌹⚜️अपनी मां⚜️🌹*
*******************
अपनी मां जन्नत की नूर होती है
अपनी मां की प्रार्थना प्रिय होती है
अपनी मां त्याग तप की खान होती है,
अपनी मां चारों धामों सी होती है।
अपनी मां प्रेरणा की मूर्ति होती है,
अपनी मां समर्पण की सूरत होती है,
अपनी मां हिमालय से ऊंची होती है,
अपनी मां पतित पावनी गंगा होती है।
अपनी मां परिवार की रीढ़ होती है,
अपनी मां परिवार में संस्कार दात्री होती है,
अपनी मां घर की रौनक होती है,
अपनी मां कुल का मार्गदर्शक होती है।
अपनी मां वैदिक ऋचाएं होती है,
अपनी मां गुरु ग्रंथ की वाणी होती है,
अपनी मां परिवार के धर्म
न्याय के संस्कार देती है,
अपनी मां परिवार की प्रार्थना होती है।
अपनी मां बासन्ती बयार होती है,
अपनी मां ही गुनगुनी धूप सी होती है,
अपनी मां ईश्वर की प्रतिनिधि होती है
अपनी मां ही इस धरा के सारे तीरथ होती है।
हर भारतीय की पांच मां होती है,
धरती,भारत,गंगा,गाय व जन्मदात्री मां,
दूसरों की मां भी अपनी मां ही होती है,
पर सबसे दुलारी अपनी मां होती है।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
[5/6, 10:25 AM] Yd 26 डॉ रामकुमार झा निकुंज: 🌅सुप्रभातम्🙏🏜️
सत्य सदा से माँगता , रक्षण नित बलिदान।
राम स्वयं घनश्याम हों , तज परहित सम्मान।।
नवप्रभात अभिलाष में , रवि सहता तम घोर।
आवाहन सत्कर्म का , कर तप लाता भोर।।
कवि✍️डॉ. निकुंज
474
नैना नैनन के प्यासे ।
अधर अधरन के प्यासे ।
प्रीतम की इन यादों में ,
स्पंदन साँसों के साजे ।
आ जाएं प्रीतम मोरे ,
भा जाऊँ मैं मन में ।
ये मन भागे ,
मन के आंगे ।
राह तकी है जन्मों से ,
जन्म जाने कितने आंगे ।
नैना नैनन के प्यासे ।
अधर अधरन के प्यासे ।
पा जाऊँ एक छवि प्रीतम की ,
खो जाऊँ मैं बस प्रीतम में ।
आज नयन से ,
नैना इतना मांगे ।
बंद हुये मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे गिरजा के दरवाजे ।
करने निकले धन के उजियारे सोम सुरा के मतवाले ।
कैसे कह दे पैसार हुआ नही अभी कलयुग का ,
भूल गए है मर्यादाएं सारी पड़ते धन के लाले ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
*रोज नया दिन*
विधा: गीत
आशा और निराशा लेकर आता,
हर रोज नया एक दिन।
जहाँ जीने का हर कोई ढूढता,
एक नया ही ठंग।।
आशा और निराशा लेकर आता,
हर रोज नया एक दिन।।
सूरज की पहली किरणों से,
जिस घर का होता सबेरा।
जिस घर में पूजा भक्ति के,
गीत सदा ही गूंजे।
और बढ़े बूढ़ों का मिलता रहे,
सबको आशीर्वाद सदा।
उस घर में सदा सुख शांति,
बनी रहती है हमेशा।।
आशा और निराशा लेकर आता,
हर रोज नया एक दिन।
जिस गांव और शहर में गूंजे,
गुरुवाणी और आज़ान।
और आरती के दीपो से,
घर घर मे पहुंचे प्रकाश।
उस गांव और शहर में,
बनी रहती सुख शांति सदा।
हिल मिलकर सब जातीधर्म के,
लोग रहते यहाँ।।
आशा और निराशा लेकर आता,
हर रोज नया एक दिन।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
06/05/2020
पहले प्यार की खुशबू से तर हर दिल होता है।
प्यार में सब कुछ दे देना भी मुश्किल होता है।।
सच्चा प्रेमी पढ़ लेता है नैनों की भाषा ,
मौन निमंत्रण जो न समझे जाहिल होता है।
आए लहरा कर छू ले फिर वापस हो जाए,
इंतजार में लहरों के बस साहिल होता है।
कौन कहां कब मिल जाए यह किसको है मालूम,
दिल में बसकर दिल तोड़े,पत्थर दिल होता है।
प्रेम भाव से उपवन से चुनकर के जो लाएं,
फूल वही उसकी पूजा के काबिल
लघुकथा
सिर्फ तुम
"सुना है तुम्हारी माँ तुम्हारे लिये लड़कियां देखते देखते थक गयी थी फिर मुझ जैसी काली लड़की को तुमने अपना जीवन साथी क्यों चुना? उनका कहना था कि तुम्हे कोई लड़की पसंद ही नही आती थी 'हसते हुऐ नीलम ने अंकुश से पूछा। तुम्हे मालूम है मैं जिस तरह की लड़की को अपनी पत्नी के रुप में तलाश कर रहा था वह सभी गुण तुझमें दिखे। सहनशीलता, सेवा, रिश्तों की मर्यादा का मर्म सब कुछ देखा तुझमें और हां कर दी बस, मेरे लिये यही खूबसूरती सबसे बड़ी थी ।"यहीं शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे कि तभी किसी की आवाज ने जैसे उसके कान पर हथौड़े से वार कर दिया " यह लीजिये मृत्यु प्रमाणपत्र " ओह, हे भगवान क्या यह हकीकत है? फिर आँखों की कोरो से आँसू पोछते हुऐ वह फफक कर रो पड़ा यह कहते हुऐ कि" तुमसे बिछड़ कर जीना मुश्किल होगा हर पल अब हमारा लेकिन फिर भी खुश हूँ कि तुम इस कोरोना की जंग में लाखों लोगों की सेवा करते करतें शहीद हो गयी।
रचना सक्सेना
प्रयागराज
स्वरचित
6/5/2020
दिनांकः ०६.०५.२०२०
दिवसः बुधवार
विधाः कविता( मुक्तक)
शीर्षकः चूड़ियाँ
माँ बहनें वधू तनया , खनकती हाथ चूड़ी से।
प्रिया हँसती लजाती सी सजन मनहार चूड़ी से।
लगा बिंदी सजी मेंहदी पहन चूड़ी चहकती है।
ख्वावों की सजा महफ़िल चूड़ियों से दमकती है।
चली शीतल हवा फागुन , अवनी कलसी महकती है।
घने बादल खुले अम्बर बिजलियाँ चूड़ी चमकती है।
सागर की लहरें सलिल निर्मल नदियाँ पा दमकती हैं।
चातक सी प्रिये प्यासी चूड़ियाँ सज आश मचलती है।
चूड़ियाँ गहने सुहागन की मनोहर चित्त साजन की।
माँ सुना लोरी हृदय टुकड़े खनकाती हाथ की चूड़ी।
फुदकती सी इतराती आ मुदित बेटी पहन चूड़ी।
कलाई रेशमी डोरी भाई बहन आयी पहन चूड़ी।
सजावत मात्र न समझें है नारी सम्मान ये चूड़ी,
साधन नित सुहावन तनु मनोरम दिलदार ये चूड़ी,
मनोभावन न है केवल , सुहागन प्रतीमान है चूड़ी,
मधुर सुन्दर सजन मनहर प्रिया उपहार ये चूड़ी।
दिनांकः ०६.०५.२०२०
दिवसः बुधवार
विधाः गीत
शीर्षकः आओ जोड़ें दिल तार सखी!
दुर्गम दुखदायी राह बहुत,
अतिजोरों से है हवा चली ,
घनघोर घटा छायी अम्बर ,
विकराल जलद सौन्दर्य घड़ी।
है कठिन मार्ग विस्तार बड़ा ,
गढ्ढे गह्वर सूखी झाड़ी,
बन पीत गात्र इन पत्तों के,
विपरीत दशा लखि मन भारी।
है प्रेम परीक्षा आन पड़ी,
दिल चाह मिलन परवान चढ़ी,
हो स्मृतिपटल लम्हें अविचल,
हे कमलनैन कचनार कली।
गलहार बने एकान्त सजन
विश्वास हृदय अहसास करें,
शनैः शनैः रस प्रिय पान सुधा,
मिल मुदित मना अनुराग करें।
निश्चल कोमल मनुहार प्रिये ,
मुख चारुतमा चन्द्रहार हिये ,
लता लवंगी कृश मधुमासी ,
मिल प्रेमयुगल अभिसार प्रिये।
नवजीवन की माला गूँथें,
अन्तर्मन भाव सलिल सींचें,
बन हरित भरित प्रिय धीर ललित,
हास भाष मृदुल उदात्त बनें।
विपरीत प्रकृति में प्रीत मुखर ,
हर्षित विलसित अवसाद ज़हर ,
देंखें महकें मन सूर्यमुखी,
आओ जोड़े दिल तार सखी।।
कवि✍️डॉ..राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नवदिल्ली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें