काव्य रँगोली व्हाट्सएप्प समूह 14 मई 2020

दिनांकः १३.०५.२०२०
दिवसः बुधवार
विधाः मुक्त
विषयः मंजिलें
शीर्षकः मंजिलें
जीवन्त  तक  बढ़ते कदम,
चाहत  स्वयं  की   मंजिलें,
नित    बेलगाम     इच्छाएँ,
निरत कुछ भी कर गुजरने,
ख़ो मति विवेक नित अपने,
राहें     अनिश्चित    अकेले,
मिहनतकश  तन रनिवासर
चिन्तातुर  आकुल  मंजिलें।


आएँगी           कठिनाईयाँ,
कठिन   कँटीली   झाड़ियाँ,
विविध      गह्वर    खाईयाँ ,
नुकीले      पाषाण   टुकड़े ,
बाधित अपनों  से  मंजिलें,
धैर्य    आत्मबल      टूटेंगे ,  
सामने      होगी    साजीशें ,
मन   में    जगेगी   नफ़रतें,
बदले  की   आग  जलेंगी,
थक   बैठकर फिर  चलेंगे,
दूर  चाहत    से    मंजिलें।


आशंकित   अनहोनी    से ,
संघर्षशील          यायावर ,
झोंकते  यतन   सब   पाने,
सच झूठ छल कपट धोखे,
सहारे   सब     पगडंडियाँ,
सब कुछ  पाने  की   चाह,
क्षणिक दुर्लभ  इस जिंदगी,
अविरत    परवान   चढ़ती,
ऊँची       उड़ानें    मंजिलें।


हैं   मंजिलें       बहुरूपिये,
धन सम्पदा   शान  शौकत,
सत्ता   यश   गौरव   वाहनें,
अनवरत    चाह   जीने की,
न जाने क्या क्या पाले मन ,
बेबस  जीवन की   मंजिलें,
बढ़े  आहत  अनाहत   पग,
भू जात से  निर्वाण    तक ,
चढ़े  संकल्पित  ध्येय  रथ,
आश बस  चाहत  मंजिलें। 


कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नयी दिल्ली


*गुरु तत्व नित्य है*
*****************
गुरु कोई व्यक्ति नहीं होता,
गुरु कोई शरीर नहीं होता,
गुरु तो व्यक्ति के अन्दर जो गुरुत्वा है,
वहीं गुरु तत्व होता है।


शरीर अनित्य है गुरु नित्य है,
व्यक्ति आज है परंतु कल नहीं है,
गुरु तत्व आज भी है और कल भी
गुरु एक शक्ति है जो नित्य है।


गुरु ईश्वर की कृपा से मिलता है,
गुरु समर्पण से मिलता है,
गुरु भाव से मिलता है,
गुरु प्रभु की अति कृपा से मिलता है।


गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता है,
गुरु ही सद् बुद्धि प्रदान करता है,
गुरु के कारण शिष्य की पहचान है,
गुरु कृपा से भवसागर पार होता है।।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


*दूर से नमस्कार।।आज सुरक्षित*
*जीवन  का यही   आधार।।।।।।*


थाम लो कदम कि बाहर कॅरोना
इंतज़ार      में    है।
बेपर्दा   बेवजह न   जाओ    कि
वो  बाजार    में  है।।
अभी खौफ में    रहो  कल   की
आज़ादी  के  लिए।
मत जाओ    मिलने   को कि वो
मौत के करार में है।।


कॅरोना योद्धा  बनो और  कॅरोना
के   संवाहक   नहीं।
जीवन अनमोल   बनो    कॅरोना
के     ग्राहक   नहीं।।
मास्क हैंड  वाश  दो  ग़ज़    दूरी
सदा ही बनाये रखना।
जान  बूझ कर   बुलाओ  यूँ   ही
मौत को   नाहक नहीं।।


घर में  व्यस्त     रहो    निबटायो
बचे सभी जरूरी काम।
जरा   सी      असावधानी   फिर
समझो   काम    तमाम।।
बस दूर से नमस्कार  बचाव और
यही     है   दवाई     भी।
सलाम करो उन  कॅरोना वीरों को
लगाते जो बाज़ी पर जान।।


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस* "
*बरेली।*
मो     9897071046
         8218685464


कविता:-
       *"आर्थिक प्रतिबन्ध"*
"आर्थिक मंदी का दौर ,
बढ़ने न पाये,
आर्थिक प्रतिबंधो पर-
करना होगा मिल कर विचार।
विदेशी अर्थ व्यवस्था पर अब,
रहना नहीं निर्भर-
स्वदेशी को ही बनाना होगा आधार।
स्थानीय वस्तुओं का करे प्रयोग,
हर हाथ को मिले रोज़गार-
जीवन सपने हो साकार।
छोड़ने होगे लुभावने सपने,
जो भटकाये कदम-
बनाये तुम्हें बेरोज़गार।
आर्थिक सम्पन्नता का हो विकास,
विदेशी नहीं -
स्वदेशी का हो प्रचार।
स्थानीय वस्तुओं का बढ़े प्रयोग,
आत्मनिर्भरता का -
स्वप्न हो साकार।
आर्थिक प्रतिबंधो पर करना विचार,
स्वदेशी अपना कर -
दें हर हाथ को रोज़गार।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          14-05-2020


धनाक्षरी
8+8+8+7


शिवकृपा बरसे तो,तन-मन हर्षित हो,
महादेव भक्ति से,प्रसन्न हो जाईये।


जटाधारी भयहारी,अखिलब्रम्हांडकारी,
ओमकार नादयोग,चिति में जगाईये।


नीलकंठ विषधर,गौरीश नागेश्वर,
सच्चिदानंद स्वरुप, आनंद बढ़ाईये।


सतिप्रियवर शिव,भोले अर्द्ध नारीश्वर,
गंगाधर शंभू शिव,शरण लगाईये।
ममता कानुनगो इंदौर


---- आर्थिक प्रतिबन्ध----
अनायास आई बेकारी
                    टूट पड़ी आपदा बढ़ी लाचारी
नहीं था समाधान बेरोजगारी का अब तक
            पर अब बेरोजगारी बनी खुद बड़ी महामारी
कोरोना वायरस ने विश्व की अर्थव्यवस्था बिगाड़ी
             महाशक्तियों का अहंकार टूट कर बिखर गया
रहता न कुछ भी शाश्वत पंक्ति को सिद्ध कर गया
              अब अर्थव्यवस्था को यदि लाना है पटरी पर
आर्थिक प्रतिबंधों को लागू करना है राष्ट्र पर
             मिलकर हम सभी करें इसकी तैयारी
स्व निर्मित उत्पादों का कर उपयोग बढायें साख हमारी
            आओ विश्व पटल पर अपनी अर्थव्यवस्था को बढायें
स्वावलम्बन का बाना पहन बाहरी तत्वों को भगायें
             आओ लौटें अपनी भरतीय सभ्यता की ओर
कुटीर व लघु उद्योगों का कर शुभारम्भ बनायें नई भोर
            रोजगार मिले सभी को बना रहेगा आत्मसम्मान
आर्थिक प्रतिबन्ध आवश्यक है इसका रखो सम्मान
डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान


शेर--
यह कह के गये पुरखे नस्लों से विरासत में
लम्हों की हिफ़ाज़त ही सदियों की हिफ़ाज़त है


🖋विनय साग़र जायसवाल


!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
🌞सुबह🙏🏼सबेरे🌞
     =========
          *धरा*
(मनहरण घनाक्षरी)
  ^^^^^^^^^^^^^^^
जल-वायु प्राण  देता,
जीवन  को  संवारता,
पर्वत   नदी    तलैया,
       जननी-वंदन है।
💫🌘
प्रभु   का  उपहार  है,
दे   रहे   उपकार   है,
धरती  माता के  रत्न,
      ये अभिनंदन है।
💫🌔
वन   इसकी  साँस है,
मिट्टी इसका  माँस है,
और   समंदर   बिना,
     ये नही जीवन है।
💫🌎
क्षमा  सबको  करती,
प्रणाम   मात  धरती,
सदैव  ही  मुस्कुराती,
     धरा को वंदन है।


*कुमार🙏🏼कारनिक*


🌅सुप्रभातम्🌅


दिनांकः १४.०५.२०२०
दिवसः गुरुवार
छन्दः मात्रिक
विधाः दोहा
शीर्षकः नीति नवनीत
जहाँ नहीं सम्मान हो ,  सुन्दर  सोच विचार।
बचे आत्म सम्मान निज, मौन बने आधार।।१।।


निर्भय निच्छल विहग सम, उड़ें मंजिलें व्योम।
नयी सोच नव भोर हो , मातु पिता भज ओम।।२।।


अहंकार पद सम्पदा , है नश्वर यह देह।
भज रे मन श्रीराम को , यश परहित नित नेह।।३।।


शत्रु बनाना सरल है , कठिन मीत निर्माण।
कपट विरत निःस्वार्थ मन, भाव मीत कल्याण।।४।।


ज्ञान मात्र आभास मन, हो जीवन  चरितार्थ।
कठिन साधना ज्ञान की , मन वश में कर पार्थ।।५।।


विनय शील सद्भावना , संकल्पित हो ध्येय।
शान्त धीर शुभ चिन्तना, सत्य प्रीत पथ गेय।।6।।


नयी भोर नव सर्जना , मानस हो अभिलास।
मंगलमय होगा दिवस , सदा रखें विश्वास।।७।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नवदिल्ली


*आचार्यश्री को जाने*
विधा : भजन गीत


गुरु की महिमा
गुरु ही जाने।
भक्त उन्हें तो
भगवान पुकारे।
जो भी श्रध्दा
भाव से पुकारे।
दर्शन वो सब पावे।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।


कितने पावन
चरण है उनके।
जहाँ जहाँ पड़ते
तीर्थ क्षैत्र वो बनते।।
ऐसे ज्ञान के सागर को।
सब श्रध्दा से
वंदन है करते।।
ऐसे आचार्यश्री की
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।


जिन वाणी के
प्राण है गुरुवर।
ज्ञान की गंगा
बहती मुख से।
जो भी शरण
इनके है आता।
धर्म मार्ग को
वो समझ जाता।।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।


बुन्देखण्ड की
जान है गुरुवर।
घर घर में
बसते है मुनिवर।
धर्म प्रभावना बहाते
शान बुन्देखण्ड की कहलाते।
मोक्ष मार्ग का
पथ दिखला कर।
आत्म कल्याण के
पथ पर चलाते।।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।


कितने पशुओं की
हत्या रुकवाये।
जीव दया केंद
अनेक खुलवाये।
स्वभिलंबी बनाने को
कितने हस्तकरधा लगवाए।
इंसानों के प्राण बचाने
भाग्यादोय आदि खुलवाये।।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।


शिक्षा दीक्षा के लिए
ब्रह्मचारी आश्रम और 
प्रतिभा स्थली खुलवाये।
ज्ञान ध्यान पाकर के
बने तपस्वी और उच्चाधिकारी।
भ्रष्टाचार को ये
लोग मिटावे।
महावीर राज ये
फिर से बसावे।।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
14/05/2020


मातृ दिवस पर.......


माँ
*************---
प्रियम धूप छांव सा अम्माँ का आंचल जहाँ चैन शीतल देता सदाऐं।
सर्द गर्मी या पावस गयीं जाने कितनी हारी अम्माँ से आख़िर  फिजाऐं।।
लड़ गयी काल से दु:ख घुटने बल शिकन की लकीरें नदारद मिलीं,
माँ का सानी नहीं माँ अनमोल भी प्रखर महफूज रखतीं माँ की दुआऐं।।


***********************************
डॉ प्रखर
..


2122/2122/2122/212
गीतिका 🖋


मुखडा ☺️
आज हमने दिल को अपने ग़म ज़दा रहने दिया....।
यादों के पन्ने खुले तो फ़लसफ़ा रहने दिया..।।


अंतरा 🎙
वो कभी जब थे हमारे दरमियाँ कुछ बात थीं
🌹थी सुहानी आरजूयें अरु सुहानी रात थीं
वो गये जब दूर हमसे फासला रहने दिया
यादों के पन्ने खुले तो फलसफा रहने........।।


हुश्न वो शब भर रहा और फासले बनते रहे
🌹जिंदगी के कारवाँ के सिलसिले चलते रहे
आरजू को हमने अपनी भी दबा रहने दिया
यादों के पन्ने खुले तो......।।


डायरी में जो रखे थे गुल कभी हमने दबा
🌹छू सकी कब हाथ कोई छू सकी न फिर हवा
याद में उनकी जो खोले फिर छुपा रहने दिया
यादों के पन्ने खुले तो...।।


ज़िंदगी तो ज़िंदगी है बस में सरिता के कहाँ
🌹प्रेम की है वो पुजारिन मन बना है आसमाँ
इक ऩज़र की चाह का बस आसरा रहने दिया
यादों के पन्ने खुले तो फलसफा रहने .........।।


सरिता कोहिनूर 💎
बालाघाट


कोई नादान किसी को भी डुबो सकता है।
अब किसी पे तो भरोसा भी न हो सकता है।
***
सुर्खरू होता गया वो तो मुसीबत में यूं।
दूर कोई भी दुखों से यूँ न हो सकता है।
***
खुदपे विश्वास किसानों को अगर है होता।
फूल बंजर हो धरा उसपे भी बो सकता है।
***
वो बुढ़ापे में नहीं साथ दिया करते पर।
बोझ उनका पिता ताउम्र भी ढो सकता है।
***
दर्द सारे जो अकेले ही पिये जाता हो।
वो दिखावे को नहीं भीड़ में रो सकता है।
***
सुनीता असीम
14/5/2020


दिनांकः १४.०५.२०२०
दिवसः गुरुवार
विधाः  पीयूष वर्ष छंद गीतिका
शीर्षकः  🤔जिंदगी☝️


जीवन जब टूटकर बिखरने लगे।
अरमान सब बेवफा लगने  लगे।।
अपने इतर का सही पहचान हो।
जिंदगी जीना  यहीं अहसास हो।।


आभास बस जिंदगी हम मर मिटें।
दिल्लगी  अनज़ान  से ली करवटें।।
दे तसल्ली बढ़  चलो हम  साथ हैं।
उत्थान पथ निर्माण को  फिर चलें।। 


सभी रिश्ते स्वार्थ  के अपने  नहीं।
जात हैं हम जिस धरा सपने वही।।
माँ भारती सेवार्थ जो कर्तव्य  हो।
आन बान रक्षण करूँ स्व जिंदगी।।


जिंदगी  पा  चेतना   नव   राह   को।
मंजिलें   फिर  से  सजी उत्थान को।।
धीर  नित  गंभीर   बन  रण बाँकुरा।
ध्येय बस  हो  जिंदगी, जय  राष्ट्र हो।।


मान  तुम  साफल्य ख़ुद की जिंदगी।
सारथी सच का बनो   नित  पारखी।।
प्रेम रथ   मुस्कान  साधें   कोप  को।
कीर्ति गाथा लिख वतन बलिदान को।।


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली


*लाचार बेबस श्रमिक*


मजदूरों की मजबूरी पर
ये कैसा कुटिल प्रहार हुआ।
सड़को पर मजदूर बिलखता,
रोने को लाचार हुआ।।


ऑंख में आँसू तन पर झोला,
भूख- प्यास से बोझिल मन।
पैर मे छाले,अन्न के लाले,
बेबस व्यथित लाचार है तन।।


मजदूरों की व्यथा-कथा को,
आज कोई ना पहचाने।
सत्ताधारी क्रूर बने है,
इनका दर्द नही जाने।।


बेबस सारे श्रमिक चल रहे,
विपत्ति काल से हो लाचार।
भूख-प्यास मन पर छाले है,
किस्मत की कठिन पड़ी है मार।।


दर्द दुःखों की भीषण विपदा,
मजदूरों के जीवन आयी।
बच्चें भी भूरव से बिलख रहे है,
कराह रहा हर एक भाई।।


पैदल ही चल पड़े नियति पर,
मंजिल है बस गाँव की ओर।
थककर सड़कों पर गिर जाते,
दर्द ही दर्द दिखे चहुँ ओर।।


पैरों मे रक्तिम छाले है,
हृदय दर्द से रोता है।
कोई नही विवशता समझे,
श्रमिक बेचारा सब खोता है।


ऐसा कैसा दृश्य भयंकर
भारत माँ की धरती पर।
माँ बच्चें सड़कों पर बिलख रहे है,
मानवता की धरती पर।


ट्रेन की पटरी बनी थी मरहम,
थके श्रमिकों के घावों पर।
क्रूर मृत्यु ने ग्रास बनाया,
पल भर मे उन  छावो पर।।


बड़े-बड़े सपनों को लेकर
श्रमिक शहर मे भटका था।
नव भारत के नये सृजन का
ये कठोरतम झटका था।।


क्या मुफ्त नही कर सकते थे,
गरीब श्रमिक की  राहों को।
झर-झर अश्नु छलक जाते है,
खून भरी उन आँखों को।।


सेवादार बने क्रूर आज,
कुछ भी नजर नही आता।
श्रमिक भटक रहा सड़कों पर,
अब ये सफर नही भाता।।


बवंडर ने उजाड़ दिया
श्रमिको का घरौंदा।
तिनका-तिनका बिखर गया,
भूख ने तनऔर मन रौदा।।


निरीह, बेबस आँखों मे
उमड़ रही अश्क की धार।
मानवता निस्तब्द्ध खड़ी,
नही करता कोई उपकार।।


सूरज ने झुलसाया तन मन,
फिर भी मजदूर चलते रहते।
लूँ की निर्मम लपटों मे भी
मंजिल भूल नही सकते।।


श्रमिक जनो पर रहम करो अब,
राष्ट्र धर्म के शुभ कारो।।
इनकी विपदा अति भयंकर,
इन्हे सड़कों पर यू मत मारो।।
✍आशा त्रिपाठी


इम्तेहान अभी बाकी है
🌻🌻🌻🌻🌻🌻


जीवन के सफर में कुछ
काम अभी बाकी है
अपने इरादों का इम्तेहान
अभी बाकी है
अपने मन के सपनो को
सच कर लूं ऐसे
रोशन होता जग में कोई
सितारा जैसे
उर के भावों का सम्मान
अभी बाकी है
अभी तो नाप पायी हु सिर्फ
मुट्ठी भर जमीन
आगे सारा आसमान अभी
बाकी है
मेरे इरादों का इम्तहान अभी
बाकी है
🌻🌻🌻🌻🌻🌻


स्वरचित ऋचा मिश्रा
      🌹  "  रोली"🌹
  श्रावस्ती बलरामपुर
  उत्तर प्रदेश


*मन*
मन कहीं लगता नहीं
न जाने क्यूं उदास रहता है
मन मेरा होकर भी
न जाने किसके पास रहता है
ऐ मन मेरे बता मुझे
तू दूर मुझसे जाता क्यूं है
छीनकर खुशी मेरी
मुझको यूं सताता क्यूं है
दूर रहकर ही मुझसे
गर तुझको सुकून मिलता है
मुरझाकर मेरे मन को
तेरे मन का फूल खिलता है
तो तू खिले महके मुस्काए
मैं रब से ये दुआ करता हूं
तू खुश है तो मैं खुश हूं
तेरे ग़म से दुखी होता
तेरे हंसने से हंसता हूं
तेरे रोने से मैं रोता
ऐ मन तू मुझसे दूर न जा
समझ तू मेरे जज़्बात
तू कर ले  मुझसे बात
तुझ बिन हूं मैं अधूरा
तुझसे ही रहता मैं भरा पूरा
तू ही मेरा सच्चा साथी है
तुम बिन मेरा जीवन कैसा
मैं दीया तो तू मेरी बाती है।


शशि मित्तल "अमर"


*रुकता नहीं आज मेरा सफ़र*
********************
आज जीवन जलाओ न तुम,
कल्पनाएं अगर डूब जाएं कहीं,
चल रही जिन्दगी जब जाए कहीं,
खोल घूंघट हंसे मौत होकर खड़ी,
पास मंजिल अगर रूठ जाए कहीं,
प्राण देकर चुनौती रुलाओ न तुम।


एक दिन के लिए आज मौका मिला,
क्या प्रणय की तरी हेतु झोंका मिला,
मैं खड़ा इस किनारे तुम्हारे लिए,
प्रीति उर में बसे आज धोखा मिला,
प्राण! सुनकर कहानी भुलाओ न तुम।


प्यार पर जिन्दगी आदमी जी रहा,
प्यार के ही लिए है जहर पी रहा,
प्यार के लिए मन मसोसे  हुए,
आज कौन कफ़न पर कफ़न बुन रहा,
क्या कहूं मैं प्रिये! गीत गाओ न तुम।


बात मन में लगी पीर उर में जगी,
नींद बैरिन हुई, दूर मुझसे बड़ी,
सांझ मन में ललाती उछलती गई,
दीप की लौ जिया को मसलती गई,
स्वप्न मेरे नयन में झलकते रहे,
अश्रु जाने अजाने लुढ़कते रहे।


आज जाने कहां से सपन उड़ रहे,
आज जाने कहां से हृदय जुड़ रहे,
आज जाने कहां की लगन है, प्रिये,
हम अजानी दिशा में अभी मुड़ रहे,
पंथ मेरा सुकोमल नहीं है मगर,
भूलती  है नहीं आज तेरी डगर,
मैं कदम को बढ़ाते हुए चल रहा हूं,
और रूकता नहीं आज़ मेरा सफ़र।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


बदलते  खून के रिश्ते
कलियुग में आज
ये कैसा दौर आया है
पिता के जनाजे को
कंधा देने से पुत्र ही कतराया है
कोरोना के संकट काल में
खून के रिश्ते भी हुए पराये हैं
परिजन हो या रिश्तेदार
उसे देख सभी घबराए हैं
ये दृश्य कौनसी दुनिया का है
जहाँ अपने हुए पराये हैं
वारिस के होते हुए
आज वो लावारिस सा दुनिया से जाए है
कलियुग की चरम सीमा पर
अब क्या क्या मनुष्य देखता जाए है
आँखों से नीर बहे लेकिन
तन जड़ हो स्थिर रुक जाए है
लाचार हुए बेबस होकर
अपना अंतिम फर्ज न निभा पायें हैं
मानवता की रक्षा करने
तब देवदूत बन वे आये हैं
पुलिस, प्रशासन, डॉक्टर मिल
अंतिम क्रियाकर्म करवाये हैं
बेटे को माँ ही रोक रही
कोरोना से डर सोच रही
अब पति लौटके न आएगा
बेटा गर संक्रमित हो जाएगा
उसके तो प्राण बचालूँ मैं
उसको आँचल में छुपालूं मैं
हृदय पर भारी पत्थर रख
देखती है पति को अंतिम क्षण
छाती से लगा के बच्चों को
उस पीड़ा को सह जाती है
ये कैसे खून के रिश्ते हैं
जहाँ मौत अब हुई पराई है


डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...