काव्यरंगोली व्हाट्सएप्प समूह 15 मई 2020 चयनित रचनाये


सुप्रभात:-
जो कर सकता है  समस्याओं  से  सामना।
वो कर सकता है सफलताओं की कामना।


-----------देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी


*गुरु चरणों में प्रेम हो जाये*
********************
जीवन की धारा मुड़े
पाकर  सद् गुरु संग,
कलुषित मन निर्मल बने
पुलकित हो हर अंग।


मन सम कोई मीत नहीं
और न मन सम कोई वैरी,
अगर गुरु की कृपा हो जाए
ये जीवन  हीरा सा हो जाए।


गुरु सेवा सम पुण्य नहीं
पर पीड़ा का बोध कराए,
भले बुरे का बोध कराते
गुरु चरणों में प्रेम हो जाये।


गुरु सत् चित् आनन्द है
नेक राह   बताते  है,
गुरु का आशीष मिला है तो
न हो सकता कोई बाल बांका।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


😌 हालात तो यही कहते हैं 😌


जीना सीखें हम सभी,
                     'कोरोना' के साथ।
मगर याद ये भी रहे,
                     नहीं मिलाएॅ॑ हाथ।
नहीं मिलाएॅ॑ हाथ,
              दैत्य ये जब तक रहता।
बचने का तो तौर,
              यही  है  हमसे  कहता।
चलो सभी निज़ काम,
                तानकर अपना सीना।
बिना किए कुछ काम,
               नहीं  है  संभव  जीना।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कविता:-
     *"इम्तिहान बाकी है"*
"गुज़र गया तूफान साथी,
जीवन का अभी-
इम्तिहान बाकी है।
बीत गया मधुमास साथी,
अभी तो उसका-
अहसास मन में बाकी है।
कैसा-भी हो जीवन -पथ साथी,
अपनत्व का अहसास अभी-
इस जीवन में बाकी है।
कौन-अपना-बेगान जग में,
जान न पाया मन-
संग चला जो साथी यही अहसास बाकी है।
भटके जो कदम राह से साथी,
मंज़िल का पता लगाना-
जीवन में अभी बाकी है।
गुज़र गया तूफान साथी,
जीवन का अभी-
इम्तिहान बाकी है।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilguptaःःःःःःःःःःःःःःःः्           15-05-2020


रक्षक बनकर आओ.......


सारा विश्व बाट जोह रहा
कोई तो ऐसा मिले उपाय
प्राणी मात्र हुआ बंधन में
कोई तो आके करे सहाय


कोई टीका बने जगत में
कोरोना से मिल जाये मुक्ति
पट बंद किये बैठे ईश्वर
घायल हुई आज यहां भक्ति


कामधाम भूल गया मानव
बना रहा सामाजिक दूरी
पास न आय मानव मानव के
देखो कैसी यह मजबूरी


कोई किसी से बात करे न
नहीं कोई दुख सुख की चिंता
आमदनी का गणित बिगड़ गया
जीवन की कैसी अनियमितता


परम ब्रह्म बस आश्रय तेरा
जीवन ज्योति जलाओ निरन्तर
सकल विश्व शरणागत तेरा
रक्षक बनकर आओ गिरिधर।


श्री जगन्नाथाय नमो नमः👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


इंसान अँधा ,बहरा ,गुगा हो गया सच सुनने ,देखने ,बोलने से बचने लगा है।                              


गांधी जी के तीन बन्दर को इंसान तिलांजलि दे गया है ।।         


इंसान आँख खोलता है मतलब मौको पर खुद के लिये ,।    


जबान खोलता हैं नाज़ और गुरुर में ,भूखे भेड़िये बाज़ कि तरह शिकार के लिये।।


कान खोलता है बुराई सुनने के लिये ।।                          


महात्मा कि आत्मा हर शहर ,गली चौराहों पर बूत बनी देखती है।


इंसान के बदलते ईमान का तमाशा।।                         


कोफ़्त से धिक्कारती है खुद को सत्य के आग्रह, सत्य अहिंशा का मार्ग क्यों खुद का सिद्धान्त क्यों बनाया ।                          


जमाने को क्यों सत्य अहिंषा का मार्ग दिखलाया  जीवन मूल्यों में नैतिकता का पाठ क्यों पढ़ाया।।                    


आजका नौजवान जहाँ के भरोसे का भाग्य कुछ ज्यादा ही है अक्लमन्द ,समझदार ,होसियार।


पैदा होते ही देने लगता है  माँ बाप दुनियां को शिक्षा।।                  


राम और कृष्णा उसे आम इंसान लगने लगते खुद में उसको भगवान दिखने लगते ।         


गांधी जी के तीन बन्दर अन्धे बहरे बेजुबान लगने लगते ।।   


गंगा, अँधा, बहरा होते हुये भी जहाँ में खुद को समझदार लगाने लगते ।                        


इंसानियत का इल्म ईमान से वास्ता नहीं ।                         


खुद को ही सत्य का  साक्षात्कार कहने लगते।।                    


हिंसा हद तक करते अहिंशा के अलमदार बनने लगते।     


शहर ,नगर की गलियां नहीं सुरक्षित दुनियां में जमाने के खारख्वाः लगने लगते ।।      


माँ बाप को बताते जनरेसन का के अंतर में संस्कृति संकार बदल जाते ।               


 
धर्म और ज्ञान कि मर्म मर्यादा को बैकवर्ड ऑर्थोडॉक्स बताते।।  


माँ बाप  महात्मा ,ऋषियों, मुनियों कि शिक्षा ,दीक्षा की त्याग त्याग तपस्या का धर्म शास्त्र बताते ।


देश कि माटी के गौरव गाथा के इतिहास का वर्तमान बताते ।।


आज का नौजवान कल देश की भविष्य का अभिमान कल का इंसान का ईमान ।             


बहरा बन जाता जैसे कि उसे देश समाज कि विरासत से नहीं कोई वास्ता।।                          


हसरत पीढ़ियों कि नए जहाँ का नए उत्साह में जोश  का नौजवान सत्य के अर्थ कि दुनियां नई बनाये ।              


आँखों के रहते अँधा हो गया है आज इंसान  नए समाज का नौजवान  ।।                         


देखता नहीं, देखना चाहता ही नहीं ,जिंदगी और जिंदगी के रास्तो में बेगाना सा बन जाता अनजान।                            


जैसे कि उसे कोई लेना देना ही ना हो अन्धे क़ानून का मांगत है न्याय ।।                           


कितने अत्याचार अन्याय हो जुबान खोलता ही नहीं ।      


जुबान खोलता है जब हलक सुख जाती अटक जाती जुबान।।  


गांधी जी के तीन बन्दर बुराइयों को देखते सुनते  नहीं बुरा बोलते नहीं ।


आज के जमाने का नौजवान इंसान सच्चाई देखता नहीं सच्चाई  सुनता नहीं सच बोलने कि हिम्मत रखता नहीं ।।        


आज का इंसान नौजवान बन्दर सा हो गया है अपने स्वार्थ में अँधा बहरा गंगा  हो गया है।          


कभी इधर कूदता ,कभी उधर कूदता ,कभी स्वार्थ के इस डाल पर ,कभी उस दाल पर।।


पर कभी खुद का खून पिता कभी कभी दुनीयाँ समाज का बहसि दरिंदा सा खुद भी परेशान दुनियां को करता परेशान।।                      


महात्मा कि आत्मा होती शर्मशार कहती मैंने तो बंदरों को भी ईमान से जीना सिखसलया उन्हें भगवान राम के दौर का हनुमान बनाया ।


आज तो इंसान बन्दर से भी बदतर हो गया है मान मर्यादा का कर रहा नित्य हैं नित्य हनन निर्लज्ज हो गया है।।


अँधा,गुगा ,बहरा हो गया है अपनी बेमतलब कि जिंदगी को अपने काँधे पर अर्थी कि तरह अर्थ हिन्  बे मतलब ढोरहा है।।            


नन्द लाल मणि त्रिपाठी पितसम्बर


शेर-
मस्ती सी छा रही है फ़िज़ा में शराब की
ख़शबू बिखर गयी है रुख-ऐ-लाजवाब की


🖋विनय साग़र जायसवाल


*"पर्दा"* (वर्गीकृत दोहे)
.............................................
*पर्दा जब रहता घिरा, लगे नहीं अनुमान।
जाने कब किस कर्म को, करता है इंसान।।१।।
(१५गुरु, १८लघुवर्ण, नर दोहा)


*परदे की ही आड़ में, रहकर हैं कुछ लोग।
करते अनुचित कर्म से, जीवन का है भोग।।२।।
(१४गुरु, २०लघुवर्ण, हंस/मराल दोहा)


*बेपर्दा जो जन करे, प्रीत प्रगट पहचान।
पावन पर्दा कामना, सज्जन मान विधान।।३।।
(१५गुरु, १८लघुवर्ण, नर दोहा)


*आडंबर को ओढ़कर, करना नहीं अनर्थ।
पोल खुलेगी जब कभी, मान घटेगा व्यर्थ।।४।।
(१५गुरु, १८लघुवर्ण, नर दोहा)


*पश्चिम की है सभ्यता, बेपर्दा पहचान।
पर्दाहीन कभी न हो, बचा रहे सम्मान।।५।।
(१८गुरु, १२लघुवर्ण, मण्डूक दोहा)


*अनुचित करना तुम नहीं, लेकर पर्दा आड़।
पूरे होते काम को, देना नहीं बिगाड़।।६।।
(१६गुरु, १६लघुवर्ण, करभ दोहा)


*ढँक मत अपने दोष को, उस पर पर्दा डाल।
हटता ही है आवरण, नहीं बचेगी चाल।।७।।
(१४गुरु, २०लघुवर्ण, हंस/मराल दोहा)


*पर्दे में है भूमि के, छिपे बहुत से राज।
मानव-प्रतिभा कर रही, बेपर्दा है आज।।८।।
(१७गुरु, १४लघुवर्ण, मर्कट दोहा)


*जंगल धरती में रहें, ये हैं पर्दा जान।
वृक्षों का तो काटना, खतरे का है भान।।९।।
(१९गुरु, १०लघुवर्ण, श्येन दोहा)


*तन पर पर्दा डालकर, मन बेपर्दा होय।
"नायक" कलुषित कर्म कर, काहे अपयश ढोय??१०??
(१२गुरु, २४लघुवर्ण, पयोधर दोहा)
................................................
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
................................


******
🌞सुबह🙏🏼सबेरे🌞
     ^^^^^^^^^^^^^
          *मँहगाई*
   (मनहरण घनाक्षरी)
            """""'"""''''
मार      रही     मँहगाई,
आती   सबको    रुलाई,
मौज     करे     हरजाई,
           सब घबराये हैं।
0
अन्न   दूध   जल   कहाँ,
सुखदाई     पल    कहाँ,
जाने क्या हो कल कहाँ,
          सिर चकराये हैं।
0
सुनती     न      सरकार,
मुकरी     है    हर   बार,
फिर  भी   है   जयकार,
         नेता मुसकाये हैं।
0
पेट   भी  ये   कैसे  भरे,
सोच    कर   मन    डरे,
दिल   धक - धक   करे,
       कैसे दिन आये हैं।


*कुमार🙏🏼कारनिक*


*न रुकना न टूटना न थमना और*
*न ही बिखरना है।हमें अब*
*आत्म निर्भर बनना है।*


न रुकना न  बिखरना न झुकना
और न ही   थमना है।
बढ़ कर आगे    हमें  स्वदेशी  से
आत्मनिर्भर बनना है।।
कॅरोना के चक्रव्यूह को तोडकर
करनी    है   प्रगति ।
इस महामारी   के   मध्य  प्रगति
के काम में लगना है।।


मेड इन इंडिया   को    विश्व   में
अब ब्रांड  बनाना  है।
भारत की गौरव  गाथा  को  पूरी
दुनिया को सुनाना है।।
लोकल को वोकल   करके   हमें
फिर बनाना है ग्लोबल।
हर भारतीय  को  अब    सामान
स्वदेशी   अपनाना   है।।


अब आश्रित भारत   की  तस्वीर
को     बदलना     है।
हम नहीं कर सकते  इस तकरीर
को     बदलना     है।।
स्वदेशी अभियान को    हमें    है
बनाना इक आंदोलन।
भारतीय कलाकौशल के बल पर
तकदीर को बदलना है।।


*रचयिता।एस के कपूर " श्री हंस"*
*बरेली।*
मो     9897071046
         8218685464


🌅🙏सुप्रभातम् 🙏🌅


दिनांकः १५.०५.२०२०
दिवसः शुक्रवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः नवनीत माला
चले  गेह    नित  मातु  से,  पिता   चले   परिवार।
गुरु    गौरव   समाज   का , चले   देश   सरकार।।१।।


कारण  सब   हैं    नव सृजन , चाहे   देश समाज।
निर्माणक   परिवार का , कुप्त   प्रलय    आगाज।।२।।


प्रतिमानक      संघर्ष   के ,  आवाहक     युगधर्म।
मातु पिता    अरु गुरु भूपति, सम्वाहक   सत्कर्म।।३।।


सदाचार   मानक     सदा ,   मानवीय     संस्कार।
उषा काल    जीवन   प्रभा, आलोकित    संसार ।।४।।


जीवन   हो   साफल्य तब,  तजे  स्वार्थ   परमार्थ।
खुशियाँ मुख मुस्कान बन,समझो सुख जन सार्थ।।५।।


जन सेवा  प्रभु प्रीत   है , राष्ट्र  भक्ति  प्रभु ध्यान।
सत्य सहज पथ मुक्ति का, अमर सुयश  वरदान।।६।।


नित  निकुंज  कवि  काकली,मातु पिता गुरु गान।
राज  काज  रत भोर से ,  राष्ट्र भक्ति  मन   ध्यान।।७।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक( स्वरचित)
नयी दिल्ली


पीड़ा
15.5.2020


हैरान हूँ जिंदगी
तेरी बेरुखी से
अभी तक खेलती रही
मुस्कुराती रही न जाने कैसे कैसे
लुभाती रही नित नए लुभावन से ।
ऐसा हुआ क्या तुझे अकस्मात
आँख तूने चुराई न जाने किन हालात
बेवफ़ा हो गई तू
क्यों अचानक से ?
मैं पकड़ भी ना पाई तुझे
देखती रही हाथो से फिसलते
फिसलती है रेत जैसे
धीरे धीरे बंद मुठी से ।
मृत्यु शाश्वत होती है
जो सँग चली आती है जन्म के
फिर भी बन अनजान
भागते रहते हम जिंदगी के लिए
और एक दिन बन बेवफ़ा
छोड़ जाती हो तुम
अचानक से यूँ हीं ।
तुझे सजाने में मैंने ख़ुद को गला दिया
बेवफ़ा तूने मुझे क्या सिला दिया
एक अंनत पीड़ा और भावनाओं का सैलाब बस।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


*मूल बात*
विधा : गीत


किसीको क्या दोष दे हम,
जब अपना सिक्का ही खोटा।
दिलासा बहुत देते है,
स्वार्थी इंसान दुनियां के।
समझ पाता नहीं कोई,
उस मूल जड़ को।
जिसके कारण ही दिलोमें,
फैलती है अराजकता।।


समानता का भाव तुम,
जरा रखकर तो देखो।
बदल जायेगी परिस्थितियां,
इस जमाने के लोगों।
बस थोड़ी सी इंसानियत, दिलोमें जिंदा तुम कर लो।
खुशाली छा जाएगी,
हमारे प्यारे भारत में।।


मोहब्बत वतन से करोगे,
तो जन्नत तुम्हें मिलेगी।
अमन शांति का माहौल,
देश के अंदर बनेगा।
और लोगो के दिलो से,
नफरत खुद मिटा जाएगी।
फिर विश्व में भारत का
ही सिक्का सदा चलेगा।।


विश्व परिवार दिवस पर मेरी रचना आप सभी को समर्पित है।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
15/05/2020


दिनांकः १५.०५.२०२०
दिवसः शुक्रवार
छन्दः मात्रिक
विधाःदोहा
शीर्षकः सृष्टि बनी अभिराम


निर्मलता    चहुँमुख  प्रकृति, सृष्टि बनी अभिराम।
स्वच्छ  सरोवर  नदी    जल , नीलांचल  श्री धाम।।१।।


हंसवृन्द    प्रमुदित  हृदय , नीलाम्बर   को   देख।
रैनबसेरा  विमल जल , किया   नमन  विधिलेख।।२।।


दिव्य   मनोरम दृश्य है , विमल   शान्त  परिवेश।
पवन स्वच्छ बहता  मुदित , रोग   मुक्त    संदेश।।३।।


रम्या  वसुधा    निर्मला , बनी  आज    सुखसार।
हंसराज  परिवार   सह , करे   प्रकृति    आभार।।४।।


रोमाञ्चित अभिसार रत,स्वच्छ सलिल अवगाह।
प्रीति मिलन  निच्छल  हृदय,  निर्भय   बेपरवाह।।५।।


आज सरित बन चारुतम , इठलाती  लखि तोय।
पुलकित मन स्वागत खड़ी,हंस चरण रज  धोय।।६।।


बदला जन   आचार  जग , धरा    प्रदूषण   दूर।
निर्मल नभ जल भू अनिल, प्रीति प्रकृति दस्तूर।।७।।


तजो स्वार्थ पथ नित गमन , रक्षण करो निकुंज।
वृक्षारोपण  सब   करो  , खिले प्रकृति रसपुंज।।८।।


रहे वायु जल नभ धरा , स्वच्छ  विमल  संसार।
रोग मुक्त जीवन सुखी , निर्मल मनुज   विचार।।९।।


तरु गिरि नद कर्तन सरित ,बंद करो खल पाप।
जीवन  धारा    श्वाँस  ये ,  बचो    रोग  संताप।।१०।।


रच निकुंज कवि कामिनी,सुन्दर जल नीलाभ।
जल विहार  हंसावली,हो जग सुख अरुणाभ।।११।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


*प्रेम*
***************
प्रेम की ईक रेशमी डोर
बंधे थे हम तुम जिस रोज
वो लम्हा,वो पल अभी तक
जिंदा है
तेरे मेरे बीच समंदर फिर भी
गहरा है


पर्ण-पात,फूलों से महकते
घने तरावटी साहिल हैं हम
खट्टी-मीठी यादों की चादर में लिपटे अपने प्रेम के किस्से अभी तक जिंदा हैं
तेरे मेरे बीच समंदर फिर भी गहरा है


कितने-कितने बंधन अब
प्यारे रिश्तों के  बन गये
बेटी से बहु,बहु से माँ मैं
बन गई
बेटे से दामाद,दामाद से पिता तुम बन गये
पर एक परिवार के हिस्से हम ना बन सके
प्रेम के इतिहास में मगर नाम हमरा जिंदा है
तेरे मेरे बीच समंदर फिर भी गहरा है।


          डा.नीलम


*_विश्व परिवार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ।_*🙏🌹🙏


शीर्षक - प्रेम,
विधा - हाइकु


जज्बातों से
   गीत मधुर गायें
        प्रेम फैलायें ।।


पुलकित हो
     जीवन हो सुगंध
           प्रेम फैलायें ।।


ना रखें बैर
     जात-पात मिटायें
             प्रेम फैलायें ।।


सरस मन
   कटुता को भगायें
           प्रेम फैलायें ।।


जग ये देखे
      वसुधैव  जगायें
            प्रेम फैलायें ।।


मीरा दिवानी
     सा अलख लगायें
              प्रेम फैलायें ।।


रचना - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
लक्ष्मीपुर, महराजगंज उत्तर प्रदेश।


तुमसे जबसे ये दोस्ती    कर ली।
गमज़दा अपनी ज़िन्दगी कर ली।
***
डूबते   जा  रहे .....किनारे   पर।
यूँ  लगे  हमने खुदकुशी कर ली।
***
आ रहा अब नहीं नज़र कुछ भी।
अपने हिस्से में    तीरगी कर ली।
***
जगमगाए गगन     सितारों से।
अपने आंगन में चाँदनी कर ली।
***
प्यार बेकार का   फ़साना   है।
हमने बेवज्ह आशिकी कर ली।
***
सुनीता असीम
15/5/2020


दुःख है इतना की
सुख सारे मौन हुए
कल तलक जो अपने थे
आज सभी कौन हुए।
अपने पराए लगने लगे जब,
परायों से अपनापन मिले
दर्द ही दर्द हो चारो ओर
काँटो से जब ये तन मिले
सर का पसीना लुढ़क कर
पैरों तक जब आ जाए
उम्मीद न जगे कहीं पर
जब घोर अंधियारा छा जाए
तब आँख बंद कर अपना तुम
जपो प्रभु का नाम......
मिलेगा तुमको आराम बंदे
मिलेगा बहुत आराम....


सम्राट की कविताएं


चीनी मीटर :


बिजली मीटर,कोरोना मीटर
दोनों चीन से आयातित,
दोनों की गति तेज ??


अतिवीर जैन पराग
मेरठ


*प्रकाश*
*********
प्रकाश चाहते हो तो
दीपक के समीप रहो
दीप के समीप सिर्फ
बिल्कुल समीप तो
एक अंधकार है।


दीपक से दूर रहो
बहुत बहुत दूर नहीं
दीपक से बहुत दूर
घोर अन्धकार है।


घोर अन्धकार है
दीपक  समीप भी
बहुत बहुत दूर भी
और प्रकाश है
दीपक के आस पास।


प्रकाश पाने के लिए
दीप के बिल्कुल नजदीक
और बहुत दूर ना जाओ
आसपास ही प्रकाश है।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


कभी मैं भूल जाऊंगा
*****************
प्रिये!जब याद आती है,
सुनहरी याद आती है,
कि जैसे चांद अम्बर में,
लगाता मैन   फेरी  है,
चली एक बार आओ री,
यहां छाया  अंधेरी  है,
न घूंघट खोलती पीड़ा,
सताती रात दिन मन को,
कहो क्या बात ऐसी है
भुलाती  हो सजनि, जन को,
हृदय में स्नेह घिरता है,
धधकती प्रेम बाती है,


भुलाने हेतु मन पीड़ा,
पगों में चाल देता हूं,
जहां रुकती कहीं मंज़िल,
दिया इक बाल देता हूं,
सुबह फिर कारवां चलता,
बना राही सदा मग में,
शलभ दीपक शिखाओं का,
उमर के स्वप्न पर बनता
विरह बलवान गाती है।


कभी तुम भूल जाओगी,
किसी से प्यार तेरा था,
कभी मैं भूल जाऊंगा,
मधुर अधिकार मेरा था,
प्रिये, तुम दूर छाती हो,
अंधेरा -राज छाया है,
बहुत दिन की उदासी है,
किसी ने दिल दुखाया है,
भले सजती दीवाली हो
बिना संगिन न भाती है।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


या खुदा गर मुझे मौत देना ,


तो जन्नत ही देना ,


कफन हो या न हो तन पर ,


पर जहन्नुम कभी न देना ,


बाद मरने के जन्म लूं फिर ,


तो मुझे वतन मेरा भारत ही देना ,


कैलाश , दुबे ,


विषय :  🌹विश्व परिवार दिवस"🌹
दिनांकः १५.०५.२०२०
दिवसः शुक्रवार
छन्दः मात्रिक
विधा     दोहा
शीर्षकः 🗺️विश्व धरा परिवार🏜️


भारतीय   सिद्धान्त  है , विश्व  धरा    परिवार।
लघुतर है  पर चिन्तना, अपना  पर    आचार।।


हो नीरोग शिक्षित सभी , उन्नत धन    विज्ञान।
सहयोगी  परहित बने ,  दें  सबको    सम्मान।।


अपनापन के भाव हों , खुशियों  का    अंबार।
रोम रोम पुलकित श्रवण,प्रीत मधुर    परिवार।।


हो शीतल   निर्मल हृदय, खिले  मनोहर  बोल।
अर्पण तन धन आपदा ,शुभदायक   अनमोल।।


मददगार सुख   दुःख में,  दृढ़तर हो    विश्वास।
आत्मीय तन मन वचन, खड़े   साथ  आभास।। 


शक्ति।  बड़ी   है  एकता ,  करे  आपदा  मुक्त।
देश,  विश्व , परिवार में , संघ शक्ति  है    सूक्त।। 


हरि अनंत है हरि कथा , जग  अनंत   व्यवहार।
देश   काल   पात्रस्थली , दर्शन   भेद    विचार।।


मति विवेक दिव्यास्त्र से ,प्रीति रीति  चढ़ यान।
दूर  करें   मतभेद  को , सबको    दें   सम्मान।।


सँभल चलें   परिवार  में , है  नाज़ुक   सम्बन्ध।
तुला तौल रख   बोल को , मौन बचे   तटबन्ध।।


सबका सुख मुस्कान मुख,अमन सुखद संचार।
खुशी  प्रेम के  रंग   से ,  रंजित   घर   परिवार।।


शान्ति  प्रेम  मय हो धरा ,नीति  प्रीति    संसार।
मानवता     परिवार  हो , राजधर्म     सुखसार।।


कवि निकुंज शुभकामना, विश्व दिवस परिवार।
तजो  स्वार्थ  मनभेद  को, बनो  एक  गलहार।।


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली


*वो फिर शरारत कर गए*


वो फिर शरारत कर गए
सड़कों पर भोले-भंडारी
सियासतदां धर्म की अफीम
घोंट,मरने को उन्हें छोड़ गए


आंकड़ों में आंक मजलूम मजदूरों  को
हवाई पटरियां चला रहे
जबान की रेल चला-चला
मीडिया में पीठ अपनी थपथपा रहे


बैठ वातानुकूलित कमरों में
दर्द से लबरेज पाँवों केछालों
पर, सियासत का नमक छिड़क रहे
अपने को गमगुसार कह -कह वो फिर शरारत कर गए।


        डा.नीलम


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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...