शुभ संध्या
साहित्यिक
सहयात्रियो
🌞🌹 स्वप्न 🌞🌹
आयी कर सोलह श्रंगार
नवयौवन उन पर वार
उत्सुक नवजीवन को तैयार
खुला कंकन न जूड़ा गिरी गाज
स्वागत हुआ ऐसा........
तिखंडा मकान,
दीवारें न है आसमान
बिठाया गया उस हाल
दिया गया गुड़-भात
अगहन की रात...
दी गयी फटी चटाई
जिसपर नींद न आई...
ओढ़ने को था पास
मायके से ओढ़ आयी
जो शाल...
दिया जो माँ ने पलंग
परिवार सोया रानी ननद
दहेज आया भरपूर
भूरि-भूरि हुई प्रसंसा
चहु ओर...
सोचा नन्दोईयो ने
सगुन मिलेंगे ढेर
सास ने उतावलेपन
पर दिया पानी फेर....
लड़ीं समधिने
हुई पटकिम-पटका
दे न रही, मिला है इतना...
पी गए हो समझ जो
सम्मान को पानी
वो होते है लतखोर जानी...
पग-फेरे हुए सात दिन बाद
वर-वधू का न क्षण भर का साथ...
प्रश्न है ईश्वर से आज...
बनाता है ऐसे सपूतों को क्यों
किसी कवारी का सोलह श्रृंगार..
समझी जाती है उस दर पर
नारी सिर्फ बिन मोल की मजदूर ......
निधि मद्धेशिया
कानपुर
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