निधि मद्धेशिया कानपुर

*लघुकथा*


*मानसिकता*


हेलो ..हेलो
क्षिति
कैसी हो  ?
ठीक 
और कैसा चल रहा लॉक डाउन ?
वापस वैसा ही जैसा नई शादी में चलता था..
मतलब
फिर से....
कुछ हुआ है क्या  ?
हाँ , वापसी हुई यहाँ तो पुरानी सभी बातें फिर से दोहराई जा रहीं, और पतिदेव की चुप्पी मुझे अब बहुत बुरी लगने लगी है, किशोरावस्था का बेटा और सास की वही पुरानी कहानी...
इतने सालों में सब बदल गया बस एक तेरी सास का छिछोरापन नहीं बदला।
जब बेटे बहु के बीच ही सोना रहता है उन्हें
क्यों ऐसी माएँ बेटे का विवाह करती हैं
तेरे ससुर क्या कहते है  ?
कुछ नहीं वो दूसरे कमरे में पोते के साथ सोते हैं....


निधि मद्धेशिया
कानपुर


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...