निशा"अतुल्य"

गीत 


धर्म


28.5.2020


 


मानवता का धर्म निभाओ


 


इंसान अब सच में बन जाओ


मानवता का धर्म निभाओ


जहाँ दिखे कोई भूखा तुमको


उसको तुम भोजन करवाओ।


 


मानवता का धर्म निभाओ


 


गर्मी की जब तपन बढ़े तो


और प्यास से व्याकुल हो मन


ढूंढे जब जल की कोई धारा


ठंडा जल उसको पिलवाओं।


 


मानवता का धर्म निभाओ ।


 


थका हुआ हो कोई पथिक जब


इधर उधर ढूंढे कोई छाँव


मन में तनिक संकोच करो मत


थोडा अपने पास बैठाओ


 


मानवता का धर्म निभाओ ।


 


मिट गया विश्वास जो जग से


उसको कैसे वापस लाएं


करें मंथन हम मिलकर 


चलो मिलकर कुछ वृक्ष लगाएं।


 


मानवता का धर्म निभाएं


 


ठंडी छाँव सड़क पर हो जब


कोई पथिक न फिर घबराएं 


पाकर जीवन ये बहुमूल्य


अपने हमें कर्तव्य निभाएं।


 


मानवता का धर्म निभाएं ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...