1मई मजदूर दिवस कविता
माथे की सिलवटों के बीच मोतियों सी चमकती बूंदों को हाथ से खीच कर एक लंबी सास लिया ।
पानी की एक धारा , धरा पर पहुंची और इसी के साथ उसने आत्मसंतुष्टि का ऐहसास किया ॥
धूप की तपिश को अपने चौड़े पृष्ठ भाग पर समेटते हुऐ , आसमान को निहारा ।
बेशर्म उष्णता को सम्मान देते हुऐ उसने पुकारा ॥
तेरी तपिश हमारे इरादों और हमारी मजबूरियों का मजाक तॊ जरूर उड़ा सकती हैं ।
लेकिन हमारे आत्मबल और इच्छाशक्ति को तॊ बिल्कुल भी नहीं डिगा सकती है ॥
क्योकि तपिश मेंं तप कर हमने इन फौलादी बाजुओं को बनाया है ।
आधे पेट भोजन को भी छक कर मैने , धोखेबाज गरीबी को गजब का छकाया है ॥
तपते पहाड़ो पर, जलते खेतों मेंं , बर्फ़ीली वादियों मेंं ,भीगते और भागते तुफानो के बीच, मेरे पुष्ट कंधो ने मजबूरी को हराया है ।
राष्ट्र और समाज के निर्माण मेंं हम मजदूरो ने प्रभावी फर्ज निभाया है ॥
अपनी हुनर कला , विज्ञान , कौशल के दम पर हमने अपना जलवा हर और दिखलाया है ।
अपनी मेहनत के दम पर ही आज हमने भारत को बुलंदियों तक़ पहुचाया है ।
हम भिक्षुक नहीं , हमारी प्रतिष्ठा और पहचान तॊ मेहनतकश इंशान के रूप मेंं होती है ।
एक मजदुर इतिहास लिखना और बदलना बाखूबी जानता है , इसी लिए इसकी इबादत साक्षात श्रम के भगवान के रूप मेंं होती है ॥
मेरा पहचान का यह दिवस प्रतिवर्ष भीषण गर्मी के महीने मेंं इसी लिए आता है ।
श्रमयोगी के इस कर्मयोग को पूरा विश्व मजदूर दिवस के रूप मेंं मनाता है ॥
*विश्व मजदूर दिवस की बधाई ।*
🙏 *राजेश* मेरी एक कविता ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें