संजय जैन (मुंबई )

*फर्याद..*
विधा : कविता


करे फर्याद हम किस से, 
सभी तो एक जैसे है।
जब रक्षक बन जाये भक्षक,
 तो फिर किस से करे फर्याद।
कितना कुछ बदल दिया,
हुए जबसे हम होशियार।
की पहले तरह वो आत्मीयता, 
नही बची अब घरों में।।


सब के सब लूटने को,
 बैठे है तैयार यहां पर।
नियत ऐसी हो रही,
हमारे समाज की लोगों।
फिर किस से आत्मीयता की,
रखे उम्मीदे अब हम सब।
ऐसे माहौल में क्या गाँव,  
और शहर बच पायेगा।।


कलयुग में सतयुग की उम्मीदे,
हमें रखना बेकार सी लगती है।
जहाँ बेटा बेटी भी साथ,  
छोड़ देते है माँबाप का।
कितना कुछ बदल गया है,
इस कलयुगी समाज का।
अब तुम ही बताओ कि,
करे किस से फर्याद हम।
की बदल जाये हमारी सोच।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई )
01/05/2020


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