संजय जैन मुंबई

मेरी 5 कविताये
आंखों आंखों में*
विधा: कविता


तेरी आँखों में हमें, 
जाने क्या नज़र आया।
तेरी यादों का दिल पर,
शुरुर है छाया।
अब हम ने चाँद को,
देखना छोड़ दिया।
और तेरी तस्वीर को,
दिल में छुपा लिया।।


दिल की धड़कनो को,
पढ़कर तो देखो।
दिल की आवाज को,
दिलसे सुनकर देखो।
यकीन नहीं है तो,
आंखों में आंखे डालकर देखो।
तुम्हें समाने दिख जाएंगे,
और दिल में तेरे बस जाएंगे।।


जो बातें लवो पर न आये,
उन्हें दिल से कह दिया करो।
मुझे चेहरा पढ़ना आता है,
एक बार समाने दिखा दो।
जब में तन्हा होता हूँ तो,
तुम्हें दिलसे आवाज़ देकर।
अपने दिल में बुला लेता हूँ।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)



*फर्याद..*
विधा : कविता


करे फर्याद हम किस से, 
सभी तो एक जैसे है।
जब रक्षक बन जाये भक्षक,
 तो फिर किस से करे फर्याद।
कितना कुछ बदल दिया,
हुए जबसे हम होशियार।
की पहले तरह वो आत्मीयता, 
नही बची अब घरों में।।


सब के सब लूटने को,
 बैठे है तैयार यहां पर।
नियत ऐसी हो रही,
हमारे समाज की लोगों।
फिर किस से आत्मीयता की,
रखे उम्मीदे अब हम सब।
ऐसे माहौल में क्या गाँव,  
और शहर बच पायेगा।।


कलयुग में सतयुग की उम्मीदे,
हमें रखना बेकार सी लगती है।
जहाँ बेटा बेटी भी साथ,  
छोड़ देते है माँबाप का।
कितना कुछ बदल गया है,
इस कलयुगी समाज का।
अब तुम ही बताओ कि,
करे किस से फर्याद हम।
की बदल जाये हमारी सोच।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई )



*निगाहें*
विधा: कविता


निगाहें बहुत कातिल है,
किसी को क्या मरोगी।
और इसका इल्जाम तुम,
न जाने किस पर डालोगी।
जबकि कातिल तुम खुद हो,
क्या तुम अपने को पहचानोगे।
और अपनी कातिल निगाहों से,
और कितनो को मरोगी।।


तेरा यौवन कितना अच्छा है,
जो सब को लुभाता है।
देख तेरे होठो की लाली,
दिलमें कमल सा खिलता है।
चलती हो लहराकर जब तुम,
दिल फूलों से खिलते है।
देखने तेरा हुस्न को यहां,
लोग इंतजार करते है।।


टूट जाएगी लोगो की आस,
जब तू किसीकी हो जाओगी।
और छोड़कर अपना घर,
उसके शहर चली जाओगी।
और चाँद सा सुंदर चेहरा,
उसके आंगन में चमकाओगी।
चाँद देखकर वो भी,
तुम से शर्मा जाएगा।
और तेरा दीवाना वो
हमेशा के लिए हो जाएगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)



*पहचान बनो*
विधा : कविता


स्वंय के काम करके,
बनो स्वाभी लम्बी तुम।
तभी जिंदगी महकेगी,
स्वंय के किये कार्यो से।
जो तुमने किये है कार्य,
वो सारी दुनियां देखेगी।
उन्ही कामो से तुम्हें,
मरणउपरांत याद किये जाओगे।।


ये ऐसा युग है लोगो,
जहाँ कोई किसीका नही।
सभी अपने स्वार्थी में,
सदा लिप्त रहते है।
तभी तो भाई बहिन भी,
माँ बाप से लड़ते है।
और सभी मर्यादाओ को, 
ताक पर वो रखते है।।


बस पैसा ही उनका,
माई बाप होता है।
जिसकी खातिर वो लोग,
छोड़ देते अपने माईबाप।
परन्तु भूल जाते है,
आने वाले भविष्य को।
तुम्हारे साथ भी लोगो,
यही दौहराया जाएगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)


 



जैन धर्म की शान है*
विधा : गीत भजन


जैन धर्म की शान है,  
विद्यासागर जी।
महावीर के अवतार है, 
विद्यासागर जी।
भक्तो की भक्ति भी,
कोई काम नहीं।
हम सब तुम पर,
कुर्वान है विद्यासागर जी।
जैन धर्म की शान है,  
विद्यासागर जी।
धरती पर भगवान है,  
विद्यासागर जी।।


आपकी वाणी की,
बड़ी कल्याणकारी है गुरुवर।
आपका हर शब्द ही,  
जिनवाणी है गुरुवर।
आप हो तप बाण, 
ज्ञानी, आप योगेश्वर।
आपने कृपा दिखाई,
सदा अपने भक्तो पर।
गुरुवर गुरुवर गुरुवर,  
-------- गुरुवर गुरुवर।
हो गुरुवर मेरे हो गुरवर हो  
मेरे गुरुवर ...........।
दया धर्म की खान है,  
विद्यासागर जी।
धरती पर भगवान है, 
विद्यासागर जी।।
जैन धर्म की शान है,  
विद्यासागर जी।


एक मधुर सी मुस्कान,  
चहेरे पर सजी रहती।
आपके मुख से तो,
गंगा ज्ञान की बहती।
आप तो हर तीर्थ से भी,  
पावन हो गुरवर।
आपके चरणों में,
कोटि कोटि है नमन।
महासंत तपोवन है,  
विद्यासागर जी।
धरती पर भगवान है,  
विद्यासागर जी।।
जैन धर्म की शान है,  
विद्यासागर जी।।


उपरोक्त भजन आचार्य श्री के चरणों समर्पण


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई )  
04/05/2020


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