हुए हैं रात के साए भले घनेरे भी।
चले चलो कि मिलेंगे तुम्हें सबेरे भी।
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समझ नहीं पा रहे हम हिसाब तुम्हारा।
बनाए हमने तो थे प्यार के जजीरे भी।
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ढली हुई ये जवानी लिए चलोगे जब।
तुम्हें ज़रा भी दिखेंगे नहीं सहारे भी।
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निकल रहा ही नहीं नाग का जहर बिल्कुल।
लगे हुए हैं हजारों यहां सपेरे भी।
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नहीं तुम्हें आ रही नींद क्यूं बताओ तो।
कि आसमाँ में सभी सो रहे सितारे भी।
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सुनीता असीम
२९/५/२०२०
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