काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार सोनी कुमारी पान्डेय

 सोनी कुमारी पान्डेय 


शिक्षा: एम.ए, बी. एड


शहर :अहमदाबाद


राज्य : गुजरात 


रुचि : लेखन


कविताएं


(1)


विषय : जीवन की पतवार आपके हाथो में 


छंद : सरसी 


*****************


तुम जगत पिता जगदीश्वर हो, 


          हम बालक नादान, 


क्षमा करो अपराध हमारे, 


             रूठो ना भगवान, 


हाथ जोड़ जग करे प्रार्थना, 


         सुन लो करुण पुकार, 


त्राहि त्राहि सब मानव बोले ,


            भय में है संसार। 


 


आस का सूरज नहीं दिखता, 


              कैसे होगी भोर! 


घोर अंधेरा छा रहा है, 


          जाए हम किस ओर? 


जीवन नैया डगमग होती, 


             लहरें करती वार, 


व्यथा किसको सुनायें अपनी,


             जाएं किसके द्वार? 


 


प्रभु सबका सहारा तुम हो, 


           तुमसे ही है आस, 


जिसकी पतवार पकड़ लो तुम,


                तन पाए वो श्वास, 


दे पतवार आपके हाथो, 


           सौंप दिया सब भार, 


पकड़ लो पतवार जीवन की, 


            कर दो नैया पार।


जय द्वारिकाधीश श्री कृष्ण की 


(2)


विषय : किनारा कीजे


 


मीटर: 21 22 11 22 22


 


नाम हरि हरषि पुकारा कीजे,


भक्ति में जीवन न्यारा कीजे,


 


मंद मुस्कान भरी छवि हिय धरि, 


कृष्ण छवि नित्य निहारा कीजे,


 


रोज दर्शन गिरधर के होवें, 


बस यही खाब सँवारा कीजे,


 


पुण्य के द्वार सभी खुल जाएं, 


पाप से नित्य किनारा कीजे,


 


भाव का भोग लगाती 'सोनी',


ले शरण प्रभु सहारा दीजे।


     जय गिरधर गोपाला 


       (3)


विषय : हे ईश्वर! अब दया करो। 


(मानव छंद) 


 


कमल नयन हे मनमोहन, 


धरा आधार मधुसूदन, 


हाथ जोड़ करते वंदन,


सफल करो अब ये जीवन।


 


आओ अब हे गिरिधारी,


विपदा आन पड़ी भारी,


राह दिखे नहीं मुरारी, 


कष्ट मिटाओ बनवारी।


 


भव बंथन सब नष्ट करो, 


दुष्ट दैत्य का अंत करो, 


मानव की सब व्यथा हरो,


हे ईश्वर! अब दया करो।


 


तीनो लोको के दाता, 


तुम्ही हो भाग्य विधाता,


जब-जब मन है घबराता, 


हे कृष्ण! तुमको बुलाता।


 


जग का अब उद्धार करो, 


चित्त अवगुण अब ना थरो,


पाप दोष सब दूर करो,


शरणागत की रक्षा करो।


 


हे ईश्वर! अब दया करो। 


जय श्री कृष्ण 


(4)


जय सरस्वती माँ 


 


शीर्षक : यादों की बारिश 


 


तेरी यादों की बारिश में, 


       मैं खुद को भिगोने लगी हूँ, 


करके याद तुझे मन ही मन


          मैं तो मुस्कुराने लगी हूँ। 


 


 


जब से पढी़ आँखे तुम्हारी, 


       गीत प्यार के गाने लगी हूँ,


 खोकर आँखों में तुम्हारी,


          सपन नये सजाने लगी हूँ।


 


 


होश में नहीं अब दिल मेरा, 


          नशा तेरा छाने लगा है, 


जैसे चंचल भ्रमर कोई,


       कुमुदिनी भरमाने लगा है। 


 


 


धीरे धीरे मन की बातें ,


       इन लबो पर लाने लगी हूँ, 


आज दिल मे छुपाकर तुम्हें, 


        तुम्ही से मैं शरमाने लगी हूँ। 


            (5)


जय सरस्वती माँ 


 


मीटर : 2122 2122 2122


 


मैने देखा जब दर्पण वो याद आए,


हाल- ए- दिल पूछा फिर वो मुस्कुराए,


 


कश्तियों को कौन तूफां से बचाए, 


खा़ब है तो नींद से कोई जगाए।


 


दीप जलते है दिलो में रोशनी है, 


पास आकर बिजलियाँ अब ना गिराए। 


 


मुस्कुराए कैसे जब गमगीन है फिजा*


फूल से दिल पर वो शमशीरें चलाए।


 


दूर गर खुश है तो कहो खुश ही रहे अब, 


खाब में आकर मिरा दिल ना जलाए । 


 


सोनी कुमारी पान्डेय


 


 


 


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