" *एक शाम गीत गज़लों के नाम"*
काव्यकुल संस्थान (पंजी.) के तत्वावधान में एक ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय काव्य आयोजन 'एक शाम गीत गज़लों के नाम' संस्था के अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय के संयोजन में किया गया। जिसमें भारत ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के नामचीन कवियों ने अपने गीत गज़लों से कविसम्मेलन को ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
कविसम्मेलन की अध्यक्षता क्रांति धरा मेरठ से गीत गज़लों के सुप्रसिद्ध गीतकार,शायर कृष्ण कुमार "बेदिल" ने की। जिन्होंने अपना अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए उम्दा शेर पढ़े तो वाह अपने आप निकलने लगी-
ज़िन्दगी से भी तू मिला है क्या।
शाइरी का तुझे पता है क्या।
गुनगुनाने से होंठ जल जाएं,
शेर ऐसा कोई कहा है क्या ।
कविसम्मेलन का प्रारम्भ माँ वीणा की आराधना से हुआ । ये पंक्तियां माँ की आराधना में फिरोजाबाद से देश की अग्रिम पंक्ति के नवगीतकार डॉ रामसनेही लाल शर्मा "यायावर" ने पढ़ी-
तार वीणा के जब कसमसाने लगे।
पत्थरों के नगर गुनगुनाने लगे।
श्री यायावर ने अपने काव्यपाठ में कुछ इस प्रकार गुनगुनाया-
निष्क्रियता और विराग गया।
सोया था पौरुष जाग गया।
जिस दिन हमने डरना छोड़ा
डर हमसे डरकर भाग गया।
गीतों की शाम में रसराज श्रृंगार की बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। दिल्ली से गीतों की गंगा बहायी ओंकार त्रिपाठी ने-
एक फूल ही नहीं दे दिया मधुवन का मधुमास तुम्हें।
एक चन्द्रमा नहीं दे दिया पूरा ही आकाश तुम्हें।
फिर भी तुमको रही शिकायत,बोलो क्या उपचार करूँ।।
कार्यक्रम की मुख्यअतिथि सिडनी ऑस्ट्रेलिया से डॉ भावना कुँवर ने अपने मुक्तक के माध्यम से वर्तमान व्यवस्था को रेखांकित करते हुए कहा।
क्यूँ सड़कों पर ...लगा मेला ...जरा कोई... बता देना
कहाँ ये जा ...रहे राही ...कोई मंज़िल... दिखा देना
बड़े भूखे, बड़े प्यासे सभी बेघर ये दिखते हैं
ना लो तस्वीर ही केवल इन्हें रोटी खिला देना।
सिडनी से ही कवि श्री प्रगीत कुँवर की इन पंक्तियों को काफी सराहना मिली-
कभी बन के घटा आयी कभी बनके धुआँ आयी
बहुत दिन बाद फिर से दिल में उनकी दास्ताँ आयी ।
अपने गीतों से देश में अलग पहचान बनाने वाले चन्द्रभानु मिश्र ने रिश्तों पर सम्वेदना का गीत पढ़ा-
मेरे बेटे तुम्हें पता क्या कैसे कैसे तुम्हें पढ़ाया।
कहाँ नही मैं मन्नत मांगा किसे नहीं मैं शीश झुकाया।
वासिंगटन अमेरिका से डॉ प्राची चतुर्वेदी ने अपने काव्यपाठ में पढ़ा-
प्रियवर मैंने तुमको अपना सब कुछ माना है।
बसते हो गीतों में मेरे गीतों में नया तराना है।।
सिएटल अमेरिका से वरिष्ठ कवयित्री डॉ मीरा सिंह ने पावस ऋतु वर्णन इस प्रकार किया-
बरसात की बौछार से ,भींगे सभी के पंख हैं।
पंछी शिथिल तरू डाल पर,बैठे हुए आज मौन हैं।
कार्यक्रम के संयोजक एवं संचालक डॉ राजीव पाण्डेय ने वर्तमान में आई रिश्तों की गिरावट पर एक गीत के माध्यम से गुनगुनाया-
अंग्रेजी संस्कृति ने जब से घर में पैर पसारे।
मात्र शब्द दो अंकल आंटी खा गये रिश्ते सारे।
दादी माँ के कहानी किस्से झेल रहे प्रतिबंध।
प्रेम की फैले कैसे गन्ध।
भगवान राम की नगरी अयोध्या से डॉ हरिनाथ मिश्र ने एक ग़ज़ल पढ़कर वाहवाही लूटी।
काव्यकुल संस्थान द्वारा आयोजित डिजिटल काव्य समारोह 'एक शाम गीत गज़लों के नाम' के सफल आयोजन पर संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय ने सभी का आभार प्रकट किया।
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