*हर भारतवासी अब चाहे,*
*मान और सामान देश का*।।
देश की माटी, देश का पानी
देश की थाती देश का धन हो।
नही रहे निर्भरता कोई ,
श्रमयोगी सा साधक मन हो।
नही चलेगा अब भारत में,
चीनी चाल के क्रूर वेष का।
*हर भारतवासी अब चाहे*,
*मान और सामान देश का*।।
अपनी हो श्रम गति स्वदेशी,
आत्मविश्वास का प्रखरित बल हो।
दृढ संकल्प ले बढ़े सतत हम,
अटल कर्म से सभी सबल हो ।।
परदेशी आयात बन्द हो,
स्वदेशी से सम्मान देश का।।
*हर भारतवासी अब चाहे*,
*मान और सामान देश का*।।
आत्म शक्ति से निखरे भारत,
ग्राम,नगर,घर-घर कौशल हो।
विदेशी निर्भरता को त्यागकर,
जय किसान का अद्भूत बल हो।
अपना खाना,अपना पानी,
अपना हो परिधान देश का।
*हर भारतवासी अब चाहे,*
*मान और सामान देश का*।।
परदेशी वैसाखी लेकर,
विश्वगुरू ना बन पायेगे,
स्वदेशी मंत्र की प्रतिज्ञा से,
माटी में सोना उपजायेगे।
ग्राम-ग्राम उद्योग लगाकर,
बचायेगे स्वाभिमान देश का।
*हर भारतवासी अब चाहे*,
*मान और सामान देश का*।
घर-घर में खुशहाली होगी,
देश प्रेम का भाव जगेगा।
जन-जन की किस्मत बदलेगी,
हर घर को अब काम मिलेगा।
चरण चूमती मंजिल होगी,
समृद्धि और सोपान देश का।।
*हर भारतवासी अब चाहे*,
*मान और सामान देश का*।।
✍आशा त्रिपाठी
28-06-2020
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