आशा त्रिपाठी

पर्यावरण दिवस पर मेरी नव कविता।


 


जल,थल,नभ,वन,तरुवर,


दिव्यकोश है धरती के।


इन्हें बचाना धर्म हमारा,


देवत्व बोध है धरती के।।


 


जल ही जीवन जल ही सब धन,


जल से ही है सृष्टि हरित।


जल से ही सुराभित वन उपवन,


मृदुल धार मधु बहे सरित।।


 


पर्यावरण हो शुद्ध धरा का,


नव आभा नव प्रीत बहे।


प्रदूषित वायु,निर्जन उपवन,


धरा कहॉ ये कोढ़ सहे।। 


 


सजल चेतना जन जन मन मे,


अलख प्रकृति जगानी होगी।।


नही चेते यदि प्रकृति संरक्षण को,


विभत्स सभी की कहानी होगी।।


 


मृदुल महकती अनुपम बगियाँ,


दिव्य रश्मि पूरित अरूणांचल।


कल-कल छल-छ्ल शीतल सरिता


जल जीवों का है स्वर्गंचल।।


 


जल ,जंगल आधार प्रकृति के,


परिशुद्ध पवन आधार हमारे।


धरा सुशोभित हरियाली से।


पशु-पक्षी जन गण को प्यारे।।


 


स्वच्छ हरितिम हो धरा हमारी,


यह संकल्प उठाना है।


पर्यावरण के संरक्षण को


घर घर अलख जगाना है।।


 


देख दुर्दशा सुन्दर प्रकृति की,


हृदय मे उठ रहा गहन विषाद।


यही समय है यही प्रलय है।


राष्ट्र जागरण का हो शत नाद।।


 


प्राण वायु देती जन-जन को,


वन उपवन से पूरित धरती।।


सकल जगत की भूख मिटाती,


मूल्यवान औषध की धरती।।


 


पर्यावरण हो शुद्ध हमारा,


यह संकल्प करे प्रतिपल।


प्लास्टिक का प्रयोग न हो तो,


सुन्दर सुरक्षित होगा कल।।


✍आशा त्रिपाठी


      05-06-2020


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