छोड़कर पंछी उड़ा पिंजर पुराना
ढूंढने फिर से नया इक़ आशियाना
दूर रहकर भी हमेशा पास ही है
दे गया अनमोल यादों का खज़ाना
व्यर्थ हैं सारे ज़खीरे प्यार वाले
गर नहीं मिलता किसी दिल मे ठिकाना
टूट जाते हैं शज़र जब आँधियों से
फिर परिंदों को नहीं मिलता ठिकाना
जो लिखा तक़दीर में मिटता नहीं
हर अदा में ज़िंदगी हो शायराना
मौत की तारीख़ होती है मुक़र्रर
ज़िंदगी ये सोचकर ही आज़माना
मोह क्या करना सुनहरी तीलियों से
ये दिखावे का कवच है टूट जाना।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या
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