अतिवीर जैन पराग  मेरठ,

मेरे बाऊजी :- (पितृ दिवस पर )


बाऊजी के चरणों में रोज वंदना करता हूँ,


शीश अपना उनके चरणों में रखता हूँ.


रहते थे गम्भीर कम ही मुस्कराते थे,


आँखो से ही सब कुछ कह जाते थे.


 


सुबह उठ अपना पानदान फेलाते थे,


खाना लेकर ही ऑफीस को जाते थे.


रात को खाना कभी नहीँ खाते थे,


दिन छिपने पर ही घर में आते थे.


 


ऑफीस से आ रोज हमें पढ़ाते थे,


अँग्रेजी गणित अच्छे से समझाते थे.


डाट भी बड़ी जोर की लगाते थे,


सोने से पेहले हम उनके पेर दबाते थे.


 


दिखते थे कठोर पर कोमल ह्रदय थे,


माँगने वाले को खाली नहीँ लौटाते थे.


ना आये उधार वापस तो,कर्जदार 


पिछले जन्म का खुद को बताते थे.


 


समय के पाबंद थे, सुबह ही उठ जाते थे,


साइकल पर ही रोज ऑफीस जाते थे.


घर के सारे काम खुद ही निपटाते थे,महीने 


भर का राशन रविवार को ले आते थे.


 


मुशायरे शेरों शायरी के शौकीन,


कवि सम्मेलन सुनने जाते थे.


अँग्रेजी की ऐतिहासिक किताबें


पढ़ते थे,ज्ञान हमारा बढ़ाते थे.


 


रेडियो में रोज ख़बरे ही लगाते थे,


बिनाका गीत माला जोर से बजाते थे.


पुराने गानो के शौकीन,गीत गुनगुनाते थे, धार्मिक किताबें पढ़ते रोज मंदिर जाते थे.


 


मंदिर में पूजा करते रथ यात्रा में ले जाते थे,


बाजार में ले जा कपड़े खिलौने दिलाते थे. मेहनत,ईमानदारी,संघर्ष के मंत्र सीखा गये,


जिन्दगी भर आगे बढ़ने की राह बता गये.


 


ऐसे थे मेरे बाऊजी ,रोज याद आते हैं, बाऊजी के चरणों में रोज वंदना करता हूँ,


शीश अपना उनके चरणों में रखता हूँ.


 


स्वरचित 


अतिवीर जैन पराग 


मेरठ,


9456966722


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