अविनाश सिंह

*कुछ तो परिवर्तन होना चाहिए*


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यूँही कुछ मन में आज ये ख्याल आया


देख संग्रहालय को एक सवाल आया


क्यों न इसका रूप ही बदल दिया जाए


इसमें रखें चीजों में ये जोड़ दिया जाए


 


क्या है संग्रहालय यह जानना जरूरी है


इसके मकसद को पहचानना जरूरी है


रखें जाते इसमें इतिहास के प्रमुख अंश


जो दिखाते है हमें अतीत के हमारे कर्म


 


कही राजा के तोप देखने को हैं मिलते


तो कही उनके पहनावें के वस्त्र मिलते


देख इनसब को मन में ये विचार आया


क्यों न किसी ने इसमें परिवर्तन लाया 


 


क्यों नही इसमें रेप के कपड़े रखे जाए


जो समाज को ये असली चेहरा दिखाए


क्यों नही इसमें वे पत्थर रख दिये जाए


जो हत्या के उद्देश्य से प्रयोग किये जाते


 


आखिर यह भी तो हमारा इतिहास ही हैं


जो इस समाज के लिए एक मिशाल हैं


लोगों को यह बात तो पता होना चाहिए


कितने कुकर्मी है लोग ये दिखना चाहिए


 


क्यों न खून से सने कपड़े रखे दिए जाते


आखिर यह भी लोगों के कर्म का फल है


क्यों न उसके अस्थियों को संजोया जाए


उसपे जो बीती है वो कहानी लिखी जाए


 


देख बंदूक हम अक्सर यह सोचने लगते


आखिर कैसे लड़ते होंगे यह पूछने लगते


फिर जब ये मासूम के कपड़े लोग देखेंगे


तो उसकी उम्रका सवाल तो जरूर पूछेंगे


 


असली मकसद संग्रहालय का पूरा होगा


इस पीड़ा को देख मन आग बबूला होगा


फिर कल किसी बेटी बहु का न रेप होगा


यही इस कविता का असली संदेश होगा


 


*अविनाश सिंह*


*8010017450*


*लेखक*


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