*" पिता "* (दोहे)
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*भीतर से मीठे-नरम, ऊपर लगें कठोर।
श्रीफल सम होते पिता, लेते सदा हिलोर।।१।।
*परिजन पालक हैं पिता, खुशियों के आगार।
उद्धारक परिवार के, होते खेवनहार।।२।।
*साथ रहें शासित रखें, पितु होते हैं खास।
आँगन में परिवार के, हरपल करें उजास।।३।।
*जो आश्रय-फल-छाँव दे, अक्षय वट सम जान।
कुल पालक होेते पिता, सबका रखते ध्यान।।४।।
*सहनशीलता के सदा, पितु होते प्रतिमान।
शिशु को जो सन्मार्ग की, करवाते पहचान।।५।।
*अपनों का हित सोचते, तजकर सारे स्वार्थ।
बगिया के माली-पिता, करते हैं परमार्थ।।६।।
*गूढ़-गहन-गंभीर अति, होता पितु का रूप।
कोर-कपट से दूर वे, होते अतुल-अनूप।।७।।
*संबल होते हैं सदा, पितु आनंद-निधान।
पाते पिता-प्रताप से, परिजन प्रेम-प्रतान।।८।।
*पावन-परिमल-प्रेरणा, अद्भुत अनुकरणीय।
पितु अनुपम आदर्श बन, होते हैं नमनीय।।९।।
*जागृत जानो विश्व में, पिता परम भगवान।
सागर नेह-दुलार के, रखना उनका मान।।१०।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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