भरत नायक "बाबूजी"

*"मैं तो हूँ मजदूर"*


  (सरसी छंद गीत)


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विधान - १६ + ११ = २७ मात्रा प्रतिपद, पदांत Sl, युगल पद तुकांतता।


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*श्रम करता सुख देता सबको, मैं साहस परिपूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


है सोपान सजाये मैंने, अनगिन भव भरपूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*थम जाएगी गति इस जग की, कंधे जब दूँ डाल।


हाथ हिला दूँ सृष्टि सजे तब,भाग्य लिखूँ मैं भाल।।


कैद करूँ मैं प्रबल-पवन को, मैं हूँ वह भू-शूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*पर्वत तोड़ूँ, नदियाँ जोड़ूँ, करता नव निर्माण।


बाँधा मैंने बाँधों को भी, पानी पूरक प्राण।।


एक किया है धरा- गगन को, मैं हूँ क्षितिज सुदूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*लाली भरता सूरज में जो, मैं ही नवल प्रभात।


बना विश्वकर्मा का संबल, देता हूँ सौगात।।


अन्न-वसन-छत देता सबको, थककर तन कर चूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*मैं जागूँ जब जग जग जाता, सोऊँ जग सो जात।


वर्षा-गर्मी ओले-शोले, स्वेद बहे मम गात।।


साधूँ दम के दम पर दम को, जोर लगा भरपूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*किस्मत गढ़ता हूँ नित नव मैं, उन्नति का हूँ राज।


मैंने कुबेर का कोश भरा, पूरण कर हर काज।।


काश! मुझे भी कोई समझे, सुविधा से हर दूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*बदहवास मैं फिर भी क्यों हूँ, दबंग से दब आज?


टूटे मेरे सपने सारे, हत मेरी आवाज।।


नित-नित नत नम नैन निहारूँ, मैं तो हूँ मजबूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


 


*प्रगति सकल सह परिवर्तन का, मैं ही शिक्षा सार।


खटता-बँटता-कटता-मिटता, नहीं मिले आधार।।


अपलक राह निहारूँ मैं भी, मन आशा ले पूर।


मैं हूँ श्रमिक इकाई श्रम की, मैं तो हूँ मजदूर।।


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भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


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