भरत नायक "बाबूजी"

*"पाठशाला"* (कुण्डलिया छंद)


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


●अपना जगत किताब है, मिलता इससे ज्ञान।


हरपल होता है यहाँ, नित-नव अनुसंधान।।


नित -नव अनुसंधान, पाठशाला है धरती।


सदा करे उपकार, बुद्धि की जड़ता हरती।।


कह नायक करजोरि, पूर्ण करना हर सपना।


कर लेना स्वीकार, हितैषी जो हो अपना।।


 


●धरती-अंबर से मिले, सीख हमें तो नित्य।


पर चमके जिज्ञासु का, परम ज्ञान-आदित्य।।


परम ज्ञान-आदित्य, भाग्य होता है उज्ज्वल।


सँवरे उसका आज, साथ आने वाला कल।।


कह नायक करजोरि, बुद्धि श्रद्धा से भरती।


विद्या हो शुचि ग्राह्य, पाठशाला है धरती।।


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...