*पिता हूँ मैं*
हाँ पिता हूँ मैं
देता हूँ बीज
कोख ए जमीन को
सहेजता हूँ
नेह सिंचन से
पनपता है वंश
उऋण होता हूँ
पिताऋण से
पुत्र नहीं पुत्री पाकर
वंशबेल सी
बढ़ती जब बिटिया
18 साल
मन बनिया बन
जून-जून जोड़-
घटा करता हूँ
सच मानो या ना मानो
पल पल युग-सा
जीता हूँ
दिखता हूँ बाहर से
शांत
भीतर ही भीतर
रोता हूँ
एक दिन ये
वंशबेल चढ़ जायेगी
ससुराल मुंडेरे
तभी............
देता हूँ संस्कार,
संस्कृति,सुज्ञान
बनाता हूँ सशक्त,
देह और अर्थ से
के........
जाकर पर देश
ना कहे
काहे को बियाही बिदेस।
डा.नीलम
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