*माटी*
माटी माटी करता हो
माटी को न जाने हो
माटी होकर देखो तो
माटी क्या है जानोगे
एक बीज रोपके देखो
श्रम बिंदुसे सींच के देखो
माटी के हमदम बन जाओ
भर झोलियां वो देगी देखो
माटी माटी करते हो.......
माटी से ही तेरा तन बना
माटी से ही तेरा घर बना
ये संपूर्ण जगत जो दृश्या
माटी से ही सबकुछ बना
जिस तन पर इतराता है
जिस धन पर इतराता है
बदला वक्त माटी होगा
क्यों मिथ्या इतराता है
माटी माटी करता है........
ये जो शान ओ' शौकत है
कुछ ही दिन की रौनक है
इक दिन सब लुट जायेगी
जो तन ओ' धन की दौलत है
जन्म मिला है माटी से
परण हुआ है माटी से
जब होगी पुकार यम की
मिलन होगा फिर माटी से
माटी माटी करता है.........
डा.नीलम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें