दयानन्द त्रिपाठी महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

आज मैं चुप-चाप हूँ.....


 


हृदय के पोर में कसक सा भरा


तन - मन दोनों शिथिल सा परा


बादलों की उमड़-घुमड़ छाप हूँ,


              आज मैं चुप-चाप हूँ।


 


रात भी दिन सा जला


तम हृदय का हो भला


प्रेम निश्छल विह्वल आप हूँ,


          आज मैं चुप-चाप हूँ।


 


विरह का अपना मजा है


मिलन का पल सजा है


सजल नयनों का छाप हूँ,


      आज मैं चुप-चाप हूँ।


 


रचना-दयानन्द त्रिपाठी


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


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