दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

केरल की घटना जिसमें हथिनी को फल में ही पटाखा खिलाकर हत्या की गयी जिसमें मानवता शर्मसार हो गयी । उस वेदना पर एक कविता प्रस्तुत करने का प्रयास आशा है आप सबका आशिवार्द मिलेगा:-


 


""""""""""""""""""""""""""""


मानवता को घोर पी गया,


शर्मसार हृदय द्रवित हो गया!


 


इन हत्याओं की कब परिणति होगी


जो खड़ी जून में जीवन की थी


माँ की ममता को घोंट दिया


भूख के बदले उदर में पटाखा फोड़ दिया।


 


क्या अब नरपिचाश ऐसा होगा


जीवों पर कुटिल घात करता होगा


क्यों माँ की ममता को कलंकित करता है


अपने जन्मों पर प्रश्नचिन्ह करना होगा।


 


वह दर्द से आँसुओं को पी गयी 


बहती नदी के नीर में चिरनिद्रा में सो गयी


तड़प कर अपने को विसर्जित कर दिया


आँखों में लिये गर्भस्थ सपने घुट खो गयी।


 


क्षमा करना सभी को हे! प्रकृति,


व्याकुल फफक कर रो पड़ा आँचल तेरा


जन्म से पहले ही अजन्मा सो गया


हत्या की नई परिभाषा गढ़ा पालक तेरा।


 


 


 मौलिक रचना:-


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश ।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...