सुहानी शाम होते ही दलान पे खड़ी होगी,
टहलते ही सही हमारी राह देखती होगी।
सुबहे शाम का सपना बड़ा मोहक रहा होगा,
आइना देख के वो हर बार सजती होगी।
जब़ मेरा ज़िक्र उसके ख्वाब में हुआ होगा,
आँखों के अश्क सी पिघलती होगी।
ख्व़ाब दिल में सजा कर रखा होगा,
तमाम दुआएं फलती - फूलती होंगी।
ठंडी हवाओं ने तुझको प्यार किया होगा,
उसमें हमारी यादों की आरज़ू महरती होगी।
रचना गीतिका :-
दयानन्द त्रिपाठी
महराजगंज उत्तर प्रदेश।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें