##प्रकृति के #हनन पर मेरे लेखन✍️
द्वारा प्रस्तुतिकरण!!
##HINDI__##POETRY!!!!
**आओ वृक्ष को बचा ले**
इस जग का कल्याण कर
प्रकृति पर एक एहसान कर
कांपती अब यह भू_,घरा
बचा ले इसकी वजूद को
उठा ले तू कुदाल को
अपने श्रम का दान कर
क्यों पेड़ों को तुम काट रहे हो
मौत को क्यूं तुम बांट रहे हो
मानव जाति के सीढ़ी को
आने वाले एक पीढ़ी को
उसपर अपना बस एक उपकार कर
अब मिलकर एक हुंकार भर
हर डाल को काटा गया
टुकड़ों में है बांटा गया
कुछ पौधों को रोप लो
मंडराते खतरे को रोक दो
तुम्हें प्रकृति की हरियाली का वास्ता
चुन लो पौधारोपण का रास्ता
आ मिलकर एक व्यापार कर
अपने श्रम का दान कर
पौधारोपण की नारों से
जंगल के उस किनारों से
विश्व के करोड़ों लोगों की जुबान पर
अपनी उस ऊंची मकान पर
कुछ टहनियों को जोड़ दो
पर्यावरण को एक नई मोड़ दो
प्राणवायु अब जहर बन गई
तेरी ये कैसी नजर बन गई
तू प्रकृति का जंगल डूबा रहा
धरती को क्यूं श्मशान बना रहा
आज एक प्रयास कर
अपने श्रम का दान कर
क्यूं पर्यावरण को रुला रहे हो?
दर्द उसका बढ़ा रहे हो
अपना एक फर्ज निभाओ ना
पेड़ _पौधे लगाओ ना
आओ अब वृक्ष को बचा लें
चल आज एक काम कर
अपने श्रम का दान कर
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✒️दीपक कुमार "पंकज"
मुजफ्फरपुर (बिहार), हिंदी शिक्षक सह कलमकार✍️!!!!!!
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