है दमखम
तो कर अपना हौसला बुलंद
क्यों गिर पड़ा हो खड़ा
संभल और कदम बढ़ा
चल रही हवा मंद मंद
है दमखम
तो कर अपना हौसला बुलंद
व्यर्थ है दौड़ना
साथ किसी का छोड़ना
ना बना तू अपनी पसंद
रुक जरा ले चल संग
है दमखम
तो कर अपना हौसला बुलंद
यह कैसा वेग है
हवा से भी तेज है
झुकना तेरा व्यर्थ है
अभी तू समर्थ है
पड ना मंद मंद
है दमखम
तो कर अपना हौसला बुलंद
यह तो सत्य है
भेदना लक्ष्य है
छोड़ दे पच्छ है
देख ले प्रत्यक्ष है
नहीं तुझ पर प्रतिबंध
है दमखम
तो कर अपना हौसला बुलंद
ना कोई मित्र है
मनुष्य यह विचित्र है
लक्ष्य चाहे दूर है
तू ना मजबूर है
दिल में तेरे जोश है
जोश में ही है आनंद
है दमखम
तो कर अपना हौसला बुलंद
डॉ. बीके शर्मा
उच्चैन (भरतपुर )राजस्थान
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