"मनुष्य और प्रकृति के बीच बिगड़ता सन्तुलन"
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मनुष्य और प्रकृति के बीच सम्बन्ध आदिकाल से ही चला आ रहा है।कालांतर से ही मानव प्रकृति के सानिध्य में ही जीवन यापन करता रहा है।मानवीय विकास की धारा और संस्कृति तथा सभ्यता के उन्नयन की प्रक्रिया में प्राकृतिक संसाधनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।अतः प्रकृति के साथ तालमेल को ही जीवन का सूत्र कहा गया है।
जैसे- जैसे मानव प्रकृति का आँचल छोड़कर भौतिकतावादी संस्कृति की ओर उन्मुख हुआ है ।वैसे- वैसे प्रकृति और मनुष्य के बीच का संतुलन बिगड़ने लगा है।मनुष्यों ने अपनी सुविधा एवं सरोकार के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है।उसकी इस मनमर्जी के फलस्वरूप महामारी और आपदाओं का ग्राफ अद्यतन बढ़ता ही जा रहा है।विश्व पर बढ़ते पर्यावरण संकट को देखकर संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रोग्राम के चीफ साइंटिस्ट और डिपार्टमेंट ऑफ साइंस के डायरेक्टर' जियान ल्यू' का कथन है कि-"मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन गड़बड़ा रहा है और इसमें सुधार नहीं किया गया, तो महामारियाँ और आपदाएँ बढ़ती जायेंगी।
अपनी और अपनी आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए हमें सँभलना होगा।मानव को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हवा,पानी, भूमि, खाद्यान्न सभी की परम आवश्यकता है।परन्तु बढ़ते हुए प्रदूषण एवं घटते संसाधनों के कारण साल दर साल पृथ्वी का पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है।
पूरी दुनिया में भूजल का स्तर गिरता जा रहा है।साथ ही साथ जल के बढ़ते प्रदूषण के कारण पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है।भूमि पर हो रहे अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भूमि की उर्वर परत सिकुड़ती चली जा रही है।परिणामस्वरूप मानव के सामने खाद्यान्न की विकट समस्या उठ खड़ी हुई है।चारों ओर बढ़ते वायु प्रदूषण ने मानव को स्वच्छ वायु से महरूम कर दिया है।तदुपरांत भीविश्व भर के संभ्रात वर्ग के लोगों की मानसिकता में कोई अंतर दिखलाई नहीं पड़ता।उनकी उपभोगवादी प्रवृत्ति ने पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है।
जंगलों के दोहन के प्रभाव-
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जब मानव ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ प्रारम्भ की और स्वहित में जंगलों को उजाड़ना प्रारम्भ किया। तो ऐसी स्थितिसे जो संकट उपजा उसके परिणाम आज दुनियाभर के सामने स्वतः ही आ रहे हैं।
जंगलों की बेलगाम कटाई, शहरी क्षेत्रों का विस्तार, सड़क निर्माण के लिए जंगलों का विनाश तथा वन्यजीवों के शिकार की बढ़ती प्रवृत्ति ने मानव जीवन को वर्तमान में चुनौतीपूर्ण बना दिया।परिणामस्वरूप जंगली जानवरों ने मानव बस्तियों का रुख करना प्रारम्भ किया जिससे जानवरों द्वारा वायरस और बैक्टीरिया का मानव जीवन पर संक्रमण के रूप में घातक प्रभाव पड़ने लगा।जानवरों के लिए सामान्य वायरस मानव जीवन के लिए जानलेवा सिद्ध होते हैं।चेन्नई के प्रो.राजन पाटिल के अनुसार"स्वाइन फ्लू का सूअरों पर मामूली इंफेक्शन होता है लेकिन जब यह म्यूटेंट होकर इंसानों पर आता है तो जानलेवा सिद्ध होता है।मानव की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता भी इसका मुकाबला नहीं कर पाती।
वातावरण परिवर्तन के परिणाम एवं निवारण-
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दुनियाभर में इस समय कोविड- 19 और टिड्डियों की समस्या का असर दिखलाई दे रहा है।इस असर का मूलभूत कारण जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग है।
मानवों के खान पान के तरीकों की वजह से जंगली जानवरों और मनुष्य के रिश्ते तेजी से परिवर्तित हो रहे हैं।
अतः हमें अपने अनाज उगाने के तरीकों एवं खान पान की आदतों में आवश्यक रूप से बदलाव की महती आवश्यकता है।मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन की अवस्था में यदि सुधार नहीं किया गया तो महामारियों एवं आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी होती चली जायेगी।
पर्यावरण को बचाने के लिए सर्वप्रथम हमें पहल करते हुए प्लास्टिक का उपयोग बन्द करना होगा।प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हुआ है।प्लास्टिक के समुद्र में मिलने से समुद्र का खारापन निरन्तर बढ़ रहा है।यह समुद्र में एसिडिटी बढ़ाने का कार्य करता है।
दूसरी ओर वन्यप्राणियों पर होने वाले हमलों को रोकना होगा और जानवरों की अवैध तस्करी पर रोक लगानी होगी।
उत्पादन और खपत के के तौर तरीकों को जलवायु परिवर्तन के अनुसार बदलना होगा।
इन्हीं सावधानियों के चलते हम प्रकृति और मनुष्य के बीच के सन्तुलन को बिगड़ने से बचा सकते हैं।यही सही समय है जब हमें चेतना है ताकि हम प्रकृति के सन्देशों को समझ सकें।स्वयं की देखभाल हेतु हमें प्रकृति की देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है।
डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
प्रतियोगिता हेतु प्रस्तुत मौलिक एवं अप्रकाशित निबंध रचना🙏🙏
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