डॉ निर्मला शर्मा

पर्यावरण दिवस 


 


पर्यावरण के साये में रहने वाले मनुष्य ने 


पर्यावरण का ही विनाश कर डाला 


हरितिमा से अच्छादिन वन सम्पदा को 


स्वंय के लालच की भट्टी में झौंक डाला 


वनौषधियों का भंडार थी हमारी पर्वतमालाएँ


मानव ने खनन कर अवैध उन्हें बिल्कुल उजाड़ डाला 


कभी बहती थी कल - कल नदियाँ उन वनों में


बजरी खनन की अवैध बानगी ने 


उन्हें बियावान जंगल में बदल डाला 


पहाडों में कभी बहते थे झर - झर झरने


मानव के दिए अब जख्म रह गए वो कभी न भरने


वन्य जीव कर रहे शहरों की ओर पलायन


मानव के अतिक्रमण ने लूट लिया उनका आँगन


सिसकती है धरती उजड़ते है जब वन 


कहाँ है वो संस्कृति कहाँ है वो उपवन 


विचरते थे वन में सभी वन्य जीव पावन 


पर्यावरण को सदैव हमने शिरोधार्य माना


सभी जीवों का जीवन है आवश्यक ये जाना


तो अब क्यूँ ये मानव बना आततायी?


सुविधाओं की चाह में पर्यावरण को आग लगाई


काटता है पेड़, मारता है पशु-पक्षी निर्दयता से


तब भी रहता है असन्तुष्ट रहता नहीं सदाशयता से


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


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