डॉ. राम कुमार झा

दिनांकः ०१.०६.२०२०


दिवसः सोमवार


छन्दः मात्रिक


विधाः दोहा 


शीर्षकः प्रकृति मुदित माँ भारती 


चमक रही पूरब दिशा , सूर्योदय आलोक।


बदलो जीवन सोच अब , मिटे सभी मन शोक।।१।।


रंग बिंरगी चहुँदिशा , वन सम्पद हिमराज।


कुसमित सुरभित अवनिका,नवजीवन आगाज़।।२।।


खोल पंख चहकें विहग, भरते व्योम उड़ान।


घिरे सकल पशुवृन्द से, हर्षित सिंह महान।।३।।


हरियाली भू विहँसती , लहराते नव पौध। 


पंचम स्वर पिकगान से, प्रिय प्रवास हरिऔध।।४।।


रिमझिम रिमझिम बारिशें, मन्द वात आनंद।


रसिक भँवर मंडरा रहे , खिले पुष्प मकरंद।।५।।


विमल क्षीर शीतल मधुर , गौ दोहन गोपाल।


उषाकाल लखि लालिमा , मृदुल बाल खुशहाल।।६।।


नव आशा ले नव किरण , कामगार रत कर्म।


अरुणोदय नव प्रगति का , सभी निभाए धर्म।।७।।


समता ममता नेह हो , शान्ति सुखद मुस्कान। 


समरसता सद्भाव ही , नव प्रभात दे ज्ञान।।८।।


नवप्रभात दे प्रेरणा , परहित जीवन दान।


रखें स्वच्छ मन प्रकृति को, राष्ट्र भक्ति सम्मान।।९।।


पा निकुंज अरुणिम शिखा, गन्धमाद मन मोह।


मुदित प्रकृति माँ भारती , सुखद कीर्ति आरोह।।१०।।


 


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक(स्वरचित) 


नई दिल्ली


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