डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

दिनांकः २८.०६.२०२०


वारः रविवार


विषयः बदरा


विधाः दोहा


छन्दः मात्रिक


शीर्षकः बरसो बदरा झूमकर


उमड़ घुमड़ बादल करे , वृष्टिवधू से प्रीत।


बूंद बूंद अनुपम मिलन , नच मयूर नवगीत।।१।।


नवपरिणय आतुर मिलन,हुआ व्योम घनश्याम। 


मेढक शहनाई बजे , वधू वृष्टि अभिराम।।२।।


सखी बनी हरिता धरा , प्रकृति मातु नवरंग।


मृगद्विज कुटुम्ब चारुतम , अलिकुंज मीत संग।।३।।


विद्युत चहुँदिक गर्जना , रवि शशि तारकवृन्द।


मेघराज गिरि घोटिका , स्वागत सर अरविन्द।।४।।


कर निनाद कलकल सरित् , जलप्रपात मृदुगान। 


वर्षा बन सुन्दर परी , सागर कन्यादान।।5।।


श्वाति समागम चारुतम , सारस युगल प्रसन्न।


नगर नर्तिका बन मयूर , नाच वधू आसन्न।।६।।


सूखी है चारु धरा , शुष्क पड़ा नीलाभ। 


भौतिकता आघात से , भू तापित अरुणाभ।।७।।


कृषक मानस हो मुदित , हरे भरे सर खेत।


पा जमाई बादल सफल , हरियाली हो रेत।।८।।


हो निकुंज अति मुदित बन,हरित ललित वनकुंज।


नीर क्षीर पूरित ज़मी , धनधान्य सुखपूंज।।९।।


बरसो बदरा झूमकर, सूखी धरणी नींव ।


सुनो कृषक सम्वेदना, धरा करो संजीव।।१०।।


रचनाकारः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक(स्वरचित)


नयी दिल्ली


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