2122. 2122. 212
*राम बाण🏹*
अब अलग संवाद होना चाहिए।
शोषितों की बात होना चाहिए।
ये कलम की लेखनी कहने लगी।
बिन पढ़े ही ज्ञान होना चाहिये।।
क्यों गधों के सींग होते हैं नहीं।
क्यों उन्हें सम्मान मिलता है नहीं।
कष्ट का उपचार होना चाहिये।
बिन पढ़े ही ज्ञान होना चाहिये।।
ढो रहा है बोझ सदियों से यहाँ।
मौन रहकर भार सहता है यहाँ।
हक मिले ये मांग होना चाहिए।
बिन पढ़े ही ज्ञान होना चाहिये।।
क्यों गधे कहते गधों को गधा।
ये गले में खूंट जैसों को सधा।
खूँट से ये मुक्त होना चाहिये।
बिन पढ़े ही ज्ञान होना चाहिये।।
क्यों कुपोषित ये गधे ही हो रहे।
चोर चारा खा मजे ही ले रहे।
जानवर इंसान होना चाहिये।
बिन पढ़े ही ज्ञान होना चाहिये।।
ताकते बंदर बिना ही बोल के।
मुफ्त का राशन खरीदें बोल के।
बँद उछल ये कूद होना चाहिये।
बिन पढ़े ही ज्ञान होना चाहिये।।
जब सभा में भौंकने कुत्ते लगे।
दुम दबाये कुछ सगे सच्चे लगे।
दुम कभी टेढ़ी न होना चाहिये।
बिन पढ़े ही ज्ञान होना चाहिये।।
राम कवियों की कहानी पढ़ रहे।
आत्मनिर्भर की जुबानी गढ़ रहे।
कुछ चुटीले व्यंग्य होना चाहिए।
बिन पढ़े ही ज्ञान होना चाहिये।।
*डॉ रामकुमार चतुर्वेदी*
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