डॉ.सरला सिंह स्निग्धा दिल्ली

" विश्वपर्यावरण दिवस "


 


काटते जंगल वे बनाते हैं,


कंकरीटों के फिर महल ।


दिलो दिमाग़ पर हावी है ,


धन दौलत की बस चाह।


रखना उन्हें सजाकर फिर


 दीवारों में ,छतों में ,फर्श में।


 रहते कभी थे एक घर मे ,


 चार भाई मिलकर के साथ ।


आज चार कमरों में आ गये ,


 बस एक माता पिता दो बच्चे।


 सबको पड़ी है दिखावट की ,


 चार जन तो चार कार चाहिए।


एक घर में चार जन हैं फिर ,


चार एसी भी लगा हो जरूर।


कहते हो बौद्धिक सब बेकार,


करे जब काम सभी बेबुनियाद।


फैक्टरियों की जग में भरमार ,


बमबारूदों का बढ़ता कारोबार।


मनाते विश्वपर्यावरणदिवस तुम,


कहो क्यो,ये तो निरा दिखावा ।


 


डॉ.सरला सिंह स्निग्धा


दिल्ली


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