" विश्वपर्यावरण दिवस "
काटते जंगल वे बनाते हैं,
कंकरीटों के फिर महल ।
दिलो दिमाग़ पर हावी है ,
धन दौलत की बस चाह।
रखना उन्हें सजाकर फिर
दीवारों में ,छतों में ,फर्श में।
रहते कभी थे एक घर मे ,
चार भाई मिलकर के साथ ।
आज चार कमरों में आ गये ,
बस एक माता पिता दो बच्चे।
सबको पड़ी है दिखावट की ,
चार जन तो चार कार चाहिए।
एक घर में चार जन हैं फिर ,
चार एसी भी लगा हो जरूर।
कहते हो बौद्धिक सब बेकार,
करे जब काम सभी बेबुनियाद।
फैक्टरियों की जग में भरमार ,
बमबारूदों का बढ़ता कारोबार।
मनाते विश्वपर्यावरणदिवस तुम,
कहो क्यो,ये तो निरा दिखावा ।
डॉ.सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
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