एक कविता...
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विषय:- "असहिष्णुता.. संवेदनहीनता"
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मैं एक
दिये जलाया अनेक
कुछ श्रद्धा का... कुछ भावना का और फिर....
माँग-पत्रों की लम्बी सूची
स्वास्थ्य का...सम्पत्ति का
समृद्धि का, यश का, भोग का
विलास का... वैभव का।
अचानक सोचा
अरे! ये क्या?
अभी प्रकाश का.. ज्ञान का
सत्य और अहिंसा का
दीप जलाना शेष है।
फिर... कुछ और जलाया
और.... पुन: स्मृति में आया
क्या यार... मैं भी..
कुछ और दिये जलाया
कलबुर्गी के लिए...
अख़लाक़ के लिए.. टीपू के लिए।
विस्मय से भर उठा
व्यथित हुआ मन
सोचते-सोचते थक गया
मेरे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी...
परदादा.... की सहज स्मृति।..
पत्नी ने जोर से चिल्याया.....
क्या राष्ट्र के नाम दीप जलाया?...
लक्ष्मीबाई, झलकारी, शिवाजी..
महात्मा गांधी का नाम
याद आया??
क्या .. यही है.. असहिष्णुता...
हमारी संवेदनहीनता।.....
मौलिक रचना -
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'
(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297
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