*गीत*(पावस-आगमन16/14लावणी छंद)
थलचर-नभचर सब हैं व्याकुल,
कहीं न मिलती छाया है।
अब पुनि सबकी प्यास बुझाने-
रिम-झिम पावस आया है।।
खुशियों की सौगात लिए यह,
सबकी झोली भरता है।
करता नहीं निराश किसी को,
मगन-मुदित यह करता है।
जहाँ देखिए उछल-कूद है-
सबने जीवन पाया है।।रिम-झिम पावस....
बरखा रानी भरती रहती,
महि-आँचल जल बूँदों से।
पौध अंकुरित होने लगते,
पावस बदन पसीनों से।
हरी-हरी घासों ने देखो-
अब कैसा मुस्काया है।।रिम-झिम पावस......
हलधर परम मुदित हो-हो कर,
जाते खेत-सिवानों में।
निज थाती को सौंप अवनि को,
रहें उच्च अरमानों में।
झम-झम पड़तीं जल-बूँदों ने-
चित-मन को हर्षाया है।।रिम-झिम पावस......
गोरी पेंग बढ़ाकर झूले,
झूला-कजरी-योग भला।
पावस की मदमस्त फुहारें,
और बढ़ा दें विरह-बला।
निरख बदन निज भींगा-भींगा-
गोरी-मन शरमाया है।।रिम-झिम पावस........
प्रकृति कामिनी महि की शोभा,
प्रेम-भाव-उल्लास भरे।
अति नूतन परिधान पहनकर,
मन को नहीं निराश करे।
लगे सभी को पावस ने ही-
चादर हरी बिछाया है।।रिम-झिम पावस..........।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें