डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सुरभित आसव मधुरालय का*14


आसव राग-रागिनी-निर्झर,


है प्रपात-जल-शुद्धिकरण।


इसे छिड़क कर सज्जन-दुर्जन-


सबने शुचिता पाई है।।


       पीपल-पात सरिस मन डोले,


       जब भी डोले कलुषित मन।


       मधुरालय जा करें सफाई-


       आसव-पान सफाई है।।


हो हिय मुक्त सके वासना से,


पुण्य-प्रताप-कपाट खुले।


करता पावन आसव-निर्झर-


पुनि शुचि पौध सिंचाई है।।


     हिय-मन-वन में हो हरियाली,


     खोट-सोच-तरु स्वस्थ रहे।


     बढ़े निरंतर शुचिता मन में-


      जिसमें रही खटाई है।।


मन-तरुवर की विषमय डाली,


पी पय आसव हरी बने।


बने मिठास खटास तत्त्व भी-


आसव दुग्ध-मलाई है।।


      देव-धेनु के पय समान ही,


      मधुरालय का आसव यह।


      जितना चाहो पी लो जाकर-


      कामधेनु सुखदाई है।।


खग-मृग वन के जीव-जंतु सब,


मुदित मना अति स्वस्थ रहें।


जीवन-मरण-स्वतंत्र सोच ले-


उनकी अरणि-रहाई है।।


       मधुरालय भी मुक्ति-केंद्र इव,


       करे मुदित संताप मिटा।


      दैहिक-दैविक-भौतिक-बाधा-


      इसने सदा भगाई है।।


मधुरालय का दर्शन कहता,


जीओ और जिलाओ सब।


साथ-साथ मिल पीओ-खाओ-


वर्ण-भेद लघुताई है।।


     करो प्रकाशित अँधियारे को,


     जिसका हृदय बसेरा था।


    आ मधुरालय-संस्कृति सीखो-


     जो लाती उजराई है।।


ईश्वर-आभा-मंडित-स्थल,


यह मधुरालय इक आलय।


इसी की शिक्षा-दीक्षा देती-


जीवन में कुशलाई है।।


      अमृत-आसव मधुरालय का,


       सदा दिव्यता-शुचिता दे।


       अंतरचक्षु-कपाट खोल कर-


        उत्तम ज्योति जलाई है।।


मधुरालय का आसव मित्रों,


कभी नहीं मादक मदिरा।


अति पवित्र यह सोच निराली-


शुचि पथ सदा दिखाई है।।


       स्वागत-स्वागत-स्वागत इसका,


       शुभकर सोच सुहानी यह।


       अपनाएँ सब खुलकर इसको-


        इसमें निहित भलाई है।।


                 © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


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