डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सुरभित आसव मधुरालय का*11


शुद्ध सोच के आसव का यदि,


यह दुनिया नित पान करे।


सकल भेव रँग-रूप-जाति का-


चले नहीं चतुराई है।।


       करती है गुणगान लेखनी,


       आसव की इस महिमा का।


        नहीं लेखनी लिखती कोई-


         आसव ही लिखवाई है।।


प्रबल प्रभावी यह द्रव आसव,


आसव इक द्रव निर्मल है।


हितकर सोच रचे यह मन में-


इसमें गुण अधिकाई है।।


       मंद बुद्धि का है वह मानव,


       जो इसको बस पेय कहे।


       पेय तो है यह लेकिन अमृत-


       की इसमें बहुताई है।।


कहना-सुनना लगा ही रहता,


यही रीति है दुनिया की।


मग़र लेखनी मतिमंदों को-


सच्ची राह दिखाई है।।


        आसव-आसव-आसव ही है,


        प्रीति-पुस्तिका का शिक्षक।


        पा प्रेमी ने शिक्षा जिससे-


        प्रीति की रीति निभाई है।।


आसव की ही करें प्रशंसा,


ऋषि-मुनि-ज्ञानी-ध्यानी सब।


इसका नित-नित पान ही करके-


सरिता-ज्ञान बहाई है।।


        लेकर डुबकी ज्ञान-सरित में,


        सरल प्रकृति-साधारण जन।


        निज तन-मन को शुद्ध हैं करते-


        दुर्गुण-रेख मिटाई है।।


सुरभित आसव मधुरालय का,


वेद-मंत्र सम उत्प्रेरक।


निष्क्रिय तन-मन-वाचा स्थित-


भ्रम से मुक्ति दिलाई है।।


      मधुरबोल जन मधुरालय के,


      मृदुल हृदय तन धारी हैं।


      देव तुल्य यह लगता आलय-


       मुदित मोद-मृदुलाई है।।


अति सुरम्य है आबो-हवा औ',


मलयानिल इव पवन ढुरे।


प्रकृति कामिनी ढल प्याले में-


स्वयं छटा बन छाई है।।


       मनमोहक नित नवल छटा सी,


       छवि मधुरालय की लगती।


       पुष्प-गंध-मकरंद मस्त चख-


       भ्रमर-गीत मधुराई है।।


सुरभित आसव पीकर राही,


का हिय हुलसित हो जाता।


उसको लगता किसी ने जैसे-


लय सप्तम की गाई है।।


                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


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