क्रमशः....*प्रथम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-7
रावन-राज बढ़ा अघ भारी।
सुर-नर-मुनि सभ भए दुखारी।।
मातु-पिता कै बड़ अपमाना।
साधु-संत-सज्जन नहिं माना।।
पर दारा, पर धन जन लोभी।
कुकरम करहिं न मन रह छोभी।।
राच्छस असुर-राज रह बाढ़ा।
अधरम-कुकरम-प्रेम प्रगाढ़ा।।
चहुँ दिसि बिलखहिं जे जन सज्जन।
हरषहिं,बेलसहिं जे रह दुर्जन ।।
धरम-ह्रास अरु सज्जन-नासा।
अघ बड़ भारहिं मही उदासा।।
परम बिकल अकुलाइ असोका।
गऊ रूप महि गइ सुर-लोका।।
नैन अश्रु भरि ब्यथा बतावा।
पर नहिं कछुक सहयता पावा।।
तब सभ मिलि गे ब्रह्मा पासा।
हिय महँ धरे उछाह-उलासा।।
ब्रह्मा गए समुझि अभिप्राया।
पर नहिं सके बताइ उपाया।।
कह बिरंचि नहिं कछु बस मोरे।
कटिहइँ कष्ट सकल प्रभु तोरे।।
दोहा-सुनहु धरनि धीरजु धरउ,धरहु मनहिं महँ आस।
प्रभु जानहिं बिपदा सकल,कटिहइँ रखु बिस्वास।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372 क्रमशः.....
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